उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील का भाटिया गांव निवासी लखनलाल की 32 साल से की गई मेहनत रंग लाई। उन्होंने देवदार के आठ हजार पौधे और जंगल पनपा दिया।
बड़कोट: उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील का भाटिया गांव। सड़क सुविधा से वंचित करीब 130 परिवारों वाला यह गांव तहसील मुख्यालय से सात किलोमीटर की दूरी पर है। इसी गांव में रहता है 62 वर्षीय लखन लाल का परिवार। गांव के ऊपर देवदार का घना जंगल है, जो 32 साल पहले ऐसा नहीं था। तब यहां सिर्फ चीड़ के पेड़ हुआ करते थे, जो गर्मियां शुरू होते ही दावानल में भड़क उठते थे। जंगल की यह आग जंगल के ऊपर स्थित गांव वालों के बागीचों को भी अपनी चपेट में ले लेती थी।
नतीजा ग्रामीणों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता था और उनके सामने रोजी-रोटी का संकट तक खड़ा हो जाता है। ऐसे में एक दिन लखन लाल के मन में विचार आया कि क्यों न चीड़ के इस जंगल में देवदार के पेड़ लगाए जाएं। इससे जंगल तो आग से बचेगा ही, ग्रामीणों के सेब, माल्टा, नासपाती व संतरे के बागीचे भी सुरक्षित रहेंगे।
बस फिर क्या था, 30 वर्षीय लखन लाल जुट गए इस दो हेक्टेयर जंगल को देवदारमय करने में। असल में जंगल के ऊपर लखन लाल का भी पुश्तैनी बागीचा है, जिसे बचाने की चिंता उनके लिए जंगल लगाने की प्रेरणा बनी। और…आज वहां देवदार का घना जंगल लहलहा रहा है।
इस जंगल से उठने वाली ठंडी हवा का कोमल स्पर्श अहसास कराता है कि उसमें 62 वर्षीय लखन लाल की मेहनत घुली हुई है। दलित परिवार में जन्मे लखन लाल वर्ष 1984 से बच्चों की तरह इस जंगल को पाल-पोष रहे हैं। हर दिन दो से तीन घंटे उनके जंगल की देखभाल में भी गुजरते हैं। इसी की परिणति है कि आज इस जंगल में देवदार व अन्य प्रजाति के पेड़ों की संख्या आठ हजार से अधिक हो गई है।
लखन लाल बताते हैं कि गर्मियों का मौसम शुरू होते ही वह जंगल के सुरक्षा उपायों में जुट जाते हैं। इस बार भी उन्होंने इसके लिए कमर कस ली है। जंगल के चारों ओर से सूखी घास और खरपतवार को हटा दिया गया है।
साथ ही छोटे पौधों की टहनियों की छंटनी भी कर दी गई है। वह हर रोज सुबह छह बजे उठकर जंगल में चले जाते हैं और पौध की सही ग्रोथ के लिए उसकी टहनियों की छंटनी करते हैं। भाटिया गांव निवासी एवं जिला युवक मंगल दल के अध्यक्ष आजाद डिमरी बताते हैं कि लखन लाल के पास जंगल को बचाने और संवारने का सिर्फ जोश ही नहीं, बल्कि जुनून भी है। इस देवदार के जंगल से गांव के लोगों को वर्षभर ठंडी हवा मिल रही है। साथ ही जल का संरक्षण भी हो रहा है। कहते हैं सरकार के स्तर पर भले ही लखन लाल को कोई सम्मान न मिला हो, लेकिन गांव का बच्चा-बच्चा उनकी मेहनत एवं लगन को सलाम करता है।
जंगल से आई गांव में खुशहाली
लखन लाल खुद पढ़-लिख नहीं सके, लेकिन उनके सभी बच्चे पढ़े-लिखे हैं। बताते हैं कि इस जंगल से उनका भावनात्मक लगाव है। इसी की बदौलत आज गांव में खुशहाली है। अच्छी बात यह है कि गांव का हर व्यक्ति इस जंगल से उन्हीं की तरह स्नेह करता है।