लखनऊ। यूपी में कल सभी चरण के चुनाव के प्रचार का आखिरी दिन था। 8 मार्च को सातवें और आखिरी चरण का मतदान होना है। 11 मार्च को आने वाले रिजल्ट को लेकर भारतीय जनता पार्टी की धड़कनें बढ़ गई हैं। सभी जानते हैं कि भाजपा अध्यक्ष और पीएम मोदी ने यूपी जीतने के लिए अपना जी-जान लगा दिया है। यूपी में ‘वनवास’ खत्म करने के लिए बीजेपी ने राज्य विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी।
PM अगर वाराणसी को क्योटो बनाएंगे तो हम करेंगे उनकी मदद – अखिलेश
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यूपी जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने हर रोज करीब 28 रैलियां की। वहीं यूपी में लगभग 1,200 रैलियां की। इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी की 20 रैलियों से बीजेपी ने राज्य में वापसी के लिए हर दांव चला है।
बीजेपी ने मतदाताओं को रिझाने के लिए हर संभव दांव चला। कांग्रेस और एसपी के गठबंधन के बाद बीजेपी ने यूपी में अपनी रणनीति बदलते हुए धुआंधार प्रचार किया। बीजेपी ने अपने नेताओं की रैलियों से राज्य की जनता को यह संदेश देने की कोशिश की वह राज्य की भलाई के लिए पूरी ताकत से जुटी है और इस चुनाव में उसे एक मौके की जरूरत है।
बीजेपी के नेताओं ने प्रचार के दौरान भाषा, बॉडी लैंग्वेज समेत हर चीज से जनता को लुभाने की कोशिश की। एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने बताया, ‘हमारे 7 स्टार प्रचारकों ने रोजना 3-4 रैलियां की। इसमें स्थानीय नेतृत्व द्वारा आयोजित छोटे कार्यक्रम शामिल नहीं है।’ यूपी के सीएम रह चुके केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 102 रैलियों को संबोधित किया और करीब 20 हजार किलोमीटर की यात्रा की।
वाराणसी की विधानसभा सीटों पर बीजेपी की हालत पतली होने की खबरों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस इलाकों में वोटरों का दिल जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ा। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री ने इसे प्रतिष्ठा का मामला बना लिया है। अपने ससंदीय क्षेत्र में तीन दिनों के अपने प्रचार अभियान में उन्होंने रोड शो, जनसभाओं, मंदिरों और आश्रमों के दौरे के अलावा गरीबों और किसानों के लिए कई वादे भी किए। इस चुनाव मे बीजेपी मोदी के करिश्मे पर निर्भर है, लेकिन मोदी का करिश्मा क्या वोटों में तब्दील होगा यह देखने वाली बात होगी।
वाराणसी साउथ, वाराणसी कैंट और पिंडरा सीट पर पार्टी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस रीजन की बाकी सीटों पर भी बीजेपी के लिए उत्साहजनक तस्वीर नहीं है। मोदी ने वाराणसी में तीन दिन गुजारे और अपने रोड शो के दौरान लोगों से भी जुड़ने की कोशिश की। बीते 5 मार्च को उनके शॉर्ट रोड ट्रिप को मिली ठंडी प्रतिक्रिया बीजेपी के लिए खतरे की घंटी की तरह है। पार्टी ने इसे रोड शो में बदलने की कोशिश की थी। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में उनकी जनसभा में भी ज्यादा भीड़ नहीं जुटी।
बीजेपी के लिए वाराणसी में गंभीर चिंता की बात है। कुछ शुरुआती उत्साह के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इन चुनावों में ज्यादा सक्रिय नहीं है। टिकटों के बटंवारे को लेकर पार्टी के भीतर नाराजगी है। हिंदू बीजेपी के समर्थन में गोलबंद नहीं हुए हैं, जैसी कि उम्मीद की जा रही थी। मोदी ने बनारस में जो पिछले तीन दिन गुजारे, उसमें हिंदू भावनाओं को भुनाने की कोशिश की।
नोटबंदी के कारण बुनकरों, नाविकों और बाकी छोटे ट्रेडर्स में काफी नाराजगी है। पिछले हफ्ते वाराणसी दौरे के दौरान फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली को ट्रेडर्स से काफी असहज सवालों का सामना करना पड़ा था। मुसलमान पूरी तरह से बीजेपी के खिलाफ लामबंद हैं, जबकि हिंदू पूरी तरह से बीजेपी के साथ नहीं है, जैसा कि 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान हुआ था।