सरकार बदलने पर सता रहा जांच का डर
लखनऊ : कहने को तो उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड का गठन मुसलमानों की धार्मिक सम्पत्तियों की सुरक्षा करने और उसकी आमदनी को मुस्लिम समाज की बेहतरी पर खर्च करने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन आज वक्फ बोर्ड अपने रास्ते से भटककर पूरी तरह से ब्लैकमेलिंग और प्रापर्टी डीलिंग पर आ गया है। वक्फ के जिम्मेदार अब बिल्डरों व प्रापर्टी डीलरों के हाथ की कठपुतली बन चुके हैं।
वर्तमान हालात को देखते हुए लगता है कि बोर्ड इस समय वक्फ सम्पत्तियों को बेचने, खुर्द-बुर्द करने, गैर वक्फ सम्पत्तियों को वक्फ सम्पत्ति बताकर लोगों को ब्लैकमेल करके पैसे ऐंठने का एक अड्डा बन चुका है। ताजा मामला जनपद मुरादाबाद के मोहल्ला किसरौल अलमारूफ, बसन्त विहार एवं उसके आस-पास के स्थानीय निवासियों का है, बोर्ड के कथित ब्लैकमेलरों से आस-पास के निवासियों में दहशत का माहौल है। वक्फ़ संख्या 541, मिर्जा मुजफ्फरबेग, डिप्टीगंज, मुरादाबाद के नाम पर एक गैंग सक्रिय होकर स्थानीय निवासियों दानिश, मुनव्वर जमाल आसिफ, सौरभ टण्डन, श्रीमति मोनिका खन्ना जो कि एक विधवा है, जैसे तमाम लोगों को बार-बार ब्लैकमेल कर रहा है।
बोर्ड का संरक्षण प्राप्त गैंग के नए-नए सदस्यों द्वारा इन लोगों से कहा जाता है कि इनके मकान वक्फ की जमीन पर बने हैं, यदि यह लोग वक्फ बोर्ड के अधिकारियों को सेट नहीं करेंगे तो इनके मकानों पर बुलडोजर चलवा दिया जाएगा। दहशतजदा लोगों द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जांच का अनुरोध किया गया था, जिसके चलते स्वयं जिलाधिकारी मुरादाबाद द्वारा मौके पर जाकर कई चरणां में जांच की गई। इस अति उच्च स्तरीय जांच में हर बार स्पष्ट रूप से पाया गया था कि यह इन लोगों की व्यक्तिगत सम्पत्ति है, जिसका प्रश्नगत वक्फ सम्पत्ति से कुछ भी लेना देना नहीं है। यहां तक की वक्फ सम्पत्ति एवं इन लोगों की सम्पत्ति की चौहद्दी में बहुत बड़ा अंतर है, राजस्व अभिलेखों में कहीं भी यह वक्फ अंकित नहीं है।
उक्त जांच रिपोर्ट चेयरमैन वक्फ बोर्ड जुफर फारूकी एवं कार्यकारी मुख्य कार्यपालक अधिकारी को भी प्राप्त हो चुकी है, लेकिन बोर्ड के जिम्मेदार लोग कान में तेल डालकर बैठे हैं। दरअसल वर्ष 2009 में एक दिन अचानक षडयंत्र के तहत मोनिका खन्ना आदि की व्यक्तिगत सम्पत्ति को ब्लैकमेल करके धन ऐंठने के उद्देश्य से ही मात्र एक बोर्ड मेम्बर के आदेश पर गलत तरीके से इज़ाफ़ी जायदाद वक्फ के रूप में दर्ज कर लिया गया। जबकि इज़ाफ़ी वक्फ जायदाद के रूप में दर्ज करने से पहले मालिकाना हक से काबिज इन लोगों को नोटिस देकर उनका पक्ष जानना चाहिए था। यहां तक कि इज़ाफ़ी जायदाद के रूप में दर्ज करने के लिए प्रस्ताव को बोर्ड मीटिंग तक में नहीं रखा गया।
जांच रिपोर्ट आने के बाद अब बोर्ड के लोगों को लगता है कि उनका खेल ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है, ऐसे में बोर्ड के लोग ‘‘जो माल मिल जाए‘‘ की तर्ज पर कुछ भी वसूली करके मामला निपटाना चाहते हैं। पूरे मामले में बोर्ड के एक कर्मचारी ने बडी मासूमियत से कहा कि हम लोगों को पिछले सात महीने से सैलरी नहीं मिली है, घर में बच्चों को भूखा मारने से अच्छा है कि कुछ रिश्वत ही ले ली जाए, हलांकि बाद में कर्मचारी ने कहा कि अगर मेरा नाम आएगा तो चेयरमैन मेरी नौकरी खा जाएंगे। पूरे मामले पर बोर्ड अध्यक्ष जुफर फारूकी से कई बार बात करने की कोशिश की गई, लेकिन बात नहीं हो सकी। सूत्र बताते है कि नई सरकार की आमद से बोर्ड के लोग दहशत में हैं कि यदि बोर्ड की कारगुजारियां सरकार तक पहंचती हैं तो कई बडे नाम जेल की सलाखों के पीछे होंगे।