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GST में ये 5 बातें अहम, कहीं कमजोर न पड़ जाए सबसे बड़ा सुधार

देशभर में एक समान टैक्स प्रणाली (जीएसटी-गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) की शुरुआत भारतीय आर्थिक इतिहास में सबसे अहम फैसला है. केन्द्र सरकार 1 जुलाई से देशभर में जीएसटी लागू करने की कवायद के चलते मौजूदा संसद सत्र में जरूरी कानून को पारित कराने की कोशिश में है. इसके लिए देश के सभी राज्यों और केन्द्र में व्यापक सहमति, ट्रांसपेरेंसी के साथ फैसला करने की व्यवस्था और नई कर प्रणाली से राज्यों को होने वाले नुकसान की केन्द्र सरकार द्वारा भरपाई करने की गारंटी के बाद यह फैसला वाकई टैक्स व्यवस्था के लिए अबतक का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला होगा. लेकिन इसे पारित करने के लिए अभी भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर किसी सहमति का ऐलान अभी तक नहीं किया गया है. इन मुद्दों पर सहमति इसलिए भी अहम है क्योंकि इसके बाद ही एक मजबूत जीएसटी देश में जगह लेगा.

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1. जीएसटी की स्टैंडर्ड दर 18 फीसदी रखने के लिए राजनैतिक सहमति बनानी होगी
केन्द्र सरकार यदि जीएसटी का सबसे बड़े फायदा कंज्यूमर को पहुंचाना चाहती हैं तो इसके लिए जरूरी है कि जीएसटी की स्टैंडर्ड दर 18 फीसदी रखने पर आम सहमति जल्द से जल्द बने. फिलहाल राज्यों में स्टेट वैट की स्टैंडर्ड दर 14.5 फीसदी है और सर्विस टैक्स की दर 15 फीसदी है वहीं सेंट्रल एक्साइज की दर 12 फीसदी के आसपास है. अब जीएसटी की दर 20 या 24 फीसदी के प्रस्ताव के बजाए 18 फीसदी रहती है तो यह जीएसटी की सबसे बड़ी सफलता मानी जाएगी और कंज्यूमर को सबसे बड़ा फायदा महंगाई न बढ़ने को होगा.

2. बिजली, पेट्रो उत्पाद और स्टांप ड्यूटी जीएसटी से बाहर हैं- ईज ऑफ बिजनेस के लिए अहम
मौजूदा जीएसटी ढ़ांचे में पॉवर, पेट्रोलियम प्रोडक्ट और स्टांप ड्यूटी को जीएसटी से बाहर रखते हुए राज्यों के क्षेत्र में छोड़ दिया गया है. लेकिन किसी भी तरह की आर्थिक गतिविधि के लिए लैंड और पॉवर सबसे बड़ा खर्च होता है. लिहाजा, जीएसटी से होने वाले नुकसान के चलते राज्यों की कोशिश भरपाई करने के लिए इन चीजों पर अधिक टैक्स लगाने की होगी. ऐसे में देश में कारोबार की न तो लागत कम की जा सकेगी और न ही कीमतों को काबू किया जा सकेगा. लिहाजा, एक मजबूत जीएसटी के लिए अहम है कि देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए इन चीजों को जीएसटी के दायरे में लाने पर सहमति बने.

3. टैक्स टेररिज्म का न हो बोलबाला
मौजूदा जीएसटी बिल के मुताबिक लागू होने के बाद करदातों पर टैक्स असेसमेंट का काम दोनों केन्द्र और राज्य करेंगे. कर दाताओं को एक दर्जन से अधिक पंजीकरण कराने होंगे और टैक्स चोरी अथवा कम टैक्स अदा करने पर सजा का प्रावधान भी किया गया है. जीएसटी के इस पहलू में सुधार नहीं किया गया तो लागू होने के बाद कारोबारियों में टैक्स का खौफ बढ़ने का खतरा है.

4. राज्यों को महज भरपाई नहीं, चाहिए कमाई का नया तरीका

मौजूदा जीएसटी प्रावधान के मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद उन राज्यों को अधिक फायदा होना तय है जहां औद्योगिक गतिविधियां अधिक है. वहीं जिन राज्यों में फैक्ट्री और इंडस्ट्री कम अथवा नहीं है को नुकसान का सामना करना पड़ेगा. हालांकि जीएसटी बिल में ऐसे राज्यों को कुछ समय के लिए टैक्स वूसली में होने वाले नुकसान की भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी. लेकिन जब यह मुआवजा मिलना बंद होगा तो आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों के सामने राजस्व बढ़ाने की बड़ी चुनौती होगी. लिहाजा, केन्द्र सरकार को अभी से कमजोर राज्यों में आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने की कवायद करनी होगी नहीं तो जीएसटी लागू होने के बाद ऐसे राज्यों का पिछड़ना भी तय है.

5. खतरे में पंचायत और म्यूनिसिपल बॉडी का फंड
देश में पंचायती राज और म्यूनिसिपल संस्थाओं की फंडिग राज्य सरकार के खजाने से की जाती है. राज्यों की शक्तियों को ही विभाजित कर देश में लोकल सेल्फ गवर्नेंस का मॉडल तैयार किया जा रहा है. अब जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के राजस्व में भारी कटौती देखने को मिलेगी जिससे चलते संभावना है कि देश में पंचायती राज और म्यूनिसिपल संस्थाओं को राज्य से फंड में कटौती का सामना करना पड़ेगा. केन्द्र सरकार को चाहिए कि इस मामले में भी वह राज्यों के साथ सहमति करे कि जीएसटी लागू होने के बाद राज्य सरकार एक निश्चित बजट इन संस्थाओं के लिए जारी करेंगे.

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