भावे के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश
नई दिल्ली। निजी क्षेत्र के एमसीएक्स-एसएक्स को पूर्ण शेयर बाजार का लाइसेंस देने के मामले में सीबीआई ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व चेयरमैन सीबी भावे और सेबी के एक पूर्व सदस्य के खिलाफ जांच बंद करने का फैसला किया है। पर एजेंसी ने दोनों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई किए जाने की सिफारिश की है। भावे और सेबी के पूर्व सदस्य के एम अब्राहम के खिलाफ जांच के लिए प्रारंभिक रपट (पीई) दर्ज की गयी थी। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार सीबीआई इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि निजी एक्सचेंज को अनुमति देने के मामले में भावे की भूमिका इतनी गंभीर प्रकृति की नहीं है कि कोई मामला दायर किया। पर उसने महाराष्ट्र कैडर के 1975 बैच के आईएएस अधिकारी भावे के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। भावे ने 1996 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ली थी। सूत्रों ने बताया कि सीबीआई ने इस मामले में अपनी रपट को अंतिम रप दे दिया है और वह सेबी के पूर्व सदस्य के एम अब्राहम के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की सिफारिश वित्त मंत्रालय से करने जा रही है। इसके अलावा जांच एजेंसी ने एमसीएक्स-एसएक्स की मूल कंपनी फाइनेंशियल टेक्नोलाजीज इंडिया लि. (एफटीआईएल) के प्रमुख जिग्नेश शाह और सेबी के कुछ अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ तथ्य छुपाने व निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करने की साजिश के आरोप में नियमित मामला दर्ज करने का फैसला किया है। शाह पिछले साल नेशनल स्पाट एक्सचेंज लि. (एनएसईएल) का घोटाला सामने के आने के बाद से आर्थिक अपराध शाखा व प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी अन्य जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं। एनएसईएल शाह द्वारा गठित फाइनेंशियल टेक्नोलाजीज (इंडिया) समूह का हिस्सा है। एनएसईएल में भुगतान संकट की वजह से करीब 18,000 निवेशकों का करोड़ों रुपया फंसा है। यह घोटाला करीब 5,600 करोड़ रुपये का है। भावे से टिप्पणी नहीं ली जा सकी। वह फरवरी, 2008 में सेबी के चेयरमैन बने थे और उनका तीन साल का कार्यभार फरवरी, 2011 में पूरा हुआ था। अब्राहम का भी सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में तीन साल का कार्यकाल 2011 में समाप्त हुआ था। एमसीएक्स-एसएक्स का गठन एफटीआईएल व उसकी जिंस एक्सचेंज इकाई एमसीएक्स द्वारा किया गया था। इसने सेबी के साथ चली लंबी लड़ाई के बाद पिछले साल पूर्ण एक्सचेंज के रूप में काम करना शुरू किया। एक्सचेंज को शुरुआत में 2008 में करेंसी डेरिवेटिव के सीमित खंड के रूप में अनुमति दी गई थी। इसके लिए शर्त यह थी कि उसे लाइसेंस के लिए हर साल मंजूरी लेनी होगी। पिछले साल एनएसईएल का घोटाला सामने आने के बाद सेबी ने एमसीएक्स-एसएक्स को अपने बोर्ड तथा कामकाज के संचालन ढांचे का पुनर्गठन करने को कहा था। सूत्रों ने बताया कि सेबी द्वारा शाह के एक्सचेंज के नियमितीकरण की पूरी प्रक्रिया की जांच में सेबी के मौजूदा चेयरमैन यूके सिन्हा से पूछताछ भी शामिल थी। इस मामले में सीबीआई की पूछताछ के बाद भावे ने एमसीएक्स-एसएक्स को शेयर बाजार का काम चलाने की अनुमति के लिए लेन-देन के आरोप से इनकार किया था। उन्होंने कहा था, ‘‘मेरे द्वारा लेनदेन का कोई सवाल नहीं उठता। वे (सीबीआई के अधिकारी) यह जानना चाहते थे कि एमसीएक्स-एसएक्स को करेंसी डेरिवेटिव में कारोबार के लिए लाइसेंस दिए जाने को लेकर क्या जनहित था। सीबीआई यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इस फैसले से क्या जिग्नेश शाह की इकाइयों को किसी तरीके का अनुचित लाभ हुआ था। एजेंसी इसे 2009 व 2010 में मिले विस्तार की जांच कर रही है। अब्राहम ने 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय को पत्र लिखकर कहा था कि सेबी पर कुछ कारपोरेट मसलन एमसीएक्स व सहारा के प्रति नरम रुख रखने को लेकर वित्त मंत्रालय की ओर से दबाव डाला जा रहा है। हालांकि वित्त मंत्रालय व सेबी ने इन आरोपों को खारिज किया था। एमसीएक्स एसएक्स को 2008 में करेंसी डेरिवेटिव के सीमित खंड में कारोबार की अनुमति दी गई थी। लेकिन सेबी ने कई साल तक इसे पूर्ण एक्सचेंज के रूप में कारोबार की अनुमति नहीं दी, क्योंकि यह मौजूदा नियमों का अनुपालन नहीं कर पा रहा था। सितंबर, 2010 में एमसीएक्स एसएक्स के पूर्ण एक्सचेंज के रूप में काम करने के आवेदन को अब्राहम के आदेश से ही खारिज किया गया था। सेबी की सभी आवश्यक नियमनों व शर्तों को पूरा करने के बाद ही एमसीएक्स-एसएक्स पिछले साल पूर्ण एक्सचेंज के रूप में कामकाज शुरू कर पाया।