हर किसी को जरूर याद आता होगा अपना बचपन, आज हर कोई कितना भी खुश और आराम का जीवन क्यों न जी रहा हो पर बचपन के सुख के सामने ये सब फीका है, भले ही हम झोपड़ी में क्यों न रहे हों, जब भी याद आती है उन पलों की जब माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के साथ व्यतीत करते थे.तो रोम -रोम प्रफुल्लित हो उठता है. इसी के चलते जानें जया बच्चन के बचपन की वो बात,
आज भी मुझे याद आते है बचपन के वो दिन ,आम के पेड़ पर होती थी खूब मस्ती-
कहते है की आम के पेड़ पर चढ़कर ‘चोरी से’ आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर ‘नौ दो ग्यारह’ हो जाना हर किसी को तो याद आता ही होगा. जिसने ‘चोरी से’ आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को ‘जीया’ है.चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में पहले ही याद आता है.
9 अप्रैल 1948 में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जन्मी लाड़ली जया भादुड़ी यानी जया बच्चन अपने बचपन को याद करते हुए कुछ कह रहीं है-
जया कह रहीं है की मेरे बचपन की सहेली, पड़ोसी और क्लासमेट भी रह चुकी डॉ. रश्मि द्विवेदी और मेरी दोस्ती इतनी गहरी थी की हमारा अधिकांश समय साथ में ही व्यतीत होता था, प्रोफेसर्स कॉलोनी में हम दोनों म्यूजिक क्लास साथ- साथ जाया करते थे, ऑल इंडिया रेडियो के बाल सभा कार्यक्रम में भी हम दोनों खूब भाग लेते थे.और भी ऐसी बातें आज भी मुझे याद आती है. पर जॉब भी में अपने बचपन की यादों पर जाती हूँ तो मेरी आखों में आज भी सहेली के साथ आम के पेड़ पर खेलना दिखाई देता है. जो अब तो केवल एक याद बनकर ही रह गया.
सन 1963 की बात है -भोपाल के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल में अध्यनरत जब में 15 साल की थी तब मेने एक्टिंग में करियर की शुरुआत करते हुए निर्देशक सत्यजित रे की सन 1963 की बंगाली फिल्म ‘महानगर’ में सपोर्टिंग एक्ट्रेस का किरदार निभाया था.इसके बाद फिल्म ‘गुड्डी’ से आगे बढ़ते हुए- अमिताभ से मुलाक़ात के बाद, फ़िल्म जगत में बहुत से निभाए किरदार,हंसी ,खुसी और मस्ती के साथ,पर जब आती है बचपन की याद तो-आखों में दिखता है पेड़ और मेरी सहेली का साथ.