सधा हुआ योगी मंत्रिमंडल
-डी.एन. वर्मा
उत्तर प्रदेश में योगी राज का आगाज दिखने लगा है। धड़ाधड़ फैसले लिये जा रहे हैं। योगी ही नहीं उनके मंत्री भी एक्टिव मोड में हैं। विभाग बंटने के बाद योगी और उनके मंत्रियों को अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के अलावा न तो कुछ दिखाई दे रहा और न कुछ सुनाई। शायद यह लोग जानते हैं कि उनकी सरकार के पास न तो ‘हनीमून’ मनाने का समय है और न ही अपने कर्तव्यों को सच्ची निष्ठा के साथ निर्वहन न करने की कोई गुंजाइश शेष है। सीएम योगी से लेकर पीएम मोदी तक की निगहबानी में इन मंत्रियों को जनता की कसौटी पर खरा उतरना ही होगा। दो वर्षों के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव के समय उनके (यूपी के मंत्रियों) काम से ही मोदी की जीत-हार का फैसला होना है। पहले लोकसभा चुनाव और अब उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में शानदार जीत का सबसे बड़ा श्रेय मोदी और अमित शाह को ही जाता है, जिसे मोदी-शाह जोड़ी कभी गंवाना नहीं चाहेंगे। मोदी इस रिकार्ड को 2019 में भी बरकरार रखना चाहते हैं इसके लिये वह एड़ी-चोटी का जोर भी लगा रहे हैं।
शायद इसीलिये योगी के मंत्रिमंडल का ‘गुलदस्ता’ काफी सोचने-विचारने के बाद बेहद सलीके से सजाया गया है। अपवाद को छोड़कर नये और ऊर्जावान नेताओं को योगी मंत्रिमंडल में ज्यादा तवज्जो दी गई है। कोशिश यह भी की गई कि योगी मंत्रिमंडल का गठन विवादों से बचकर किया जाये। इसीलिये कुछ पुराने चेहरों को किनारे कर दिया गया तो कई नये चेहरे आगे आ गये। मंत्रिमंडल विस्तार में इस बात का भी ध्यान रखा गया कि कहीं गैरों (चुनाव से कुछ माह पूर्व बीजेपी ज्वांइन करने वाले नेताओं) पर करम करने के चक्कर में अपनों (लम्बे समय से बीजेपी के लिये संघर्ष करने वालों) पर सितम न हो जाये। इसे आसान शब्दों में कहा जाये तो मोदी और योगी ने मंत्रिमंडल विस्तार में दलबदलुओं से अधिक तरजीह पार्टी के पुराने वफादारों को दी। तमाम महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी बीजेपी के संघर्ष के समय के साथियों के हिस्से में आई, लेकिन एक हकीकत यह भी है मंत्रिमंडल गठन में कुछ ऐसे चेहरे छूट भी गये जिनके पास किसी बड़े नेता की सिफारिश नहीं थी। यही वजह थी लखनऊ मध्य और पश्चिम के पांच बार के विधायक सुरेश श्रीवास्तव जैसे पुराने नेता खाली हाथ ही रह गये। इसी प्रकार बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी चुनाव भले हार गये हों, लेकिन वह भी लाल बत्ती के हकदार थे। तमाम नेता पुत्र योगी कैबिनेट में स्थान पा गये, आशुतोष टंडन को महत्वपूर्ण विभाग मिलने की एक वजह उनके पिता लालजी टंडन हैं। टंडन यूपी में मंत्री रह चुके हैं और उनके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से काफी घनिष्ठ संबंध थे। राज्यमंत्रियों में पहली बार की विधायक अर्चना पांडेय को खनन, आबकारी, मद्यनिषेध तो संदीप सिंह को बेसिक, माध्यमिक, उच्च प्राविधिक एवं चिकित्सा शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग सौंपने के पीछे भी इनके परिवार की पृष्ठभूमि बड़ी वजह बताई जाती है। अर्चना पार्टी के बड़े नेता रहे स्व.रामप्रकाश त्रिपाठी की पुत्री है तो संदीप सिंह कल्याण सिंह के पौत्र है। सुरेश पासी को आवास एवं व्यावसायिक शिक्षा देने के पीछे केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की भूमिका मानी जा रही है, लेकिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह इस मामले में पिछड़ गये। यही स्थिति कमोवेश कई और जिलों में भी देखने को मिली।
ऐसे नेताओं का निराश होना लाजिमी है, जिन्हें मंत्री पद नहीं मिल पाने से अधिक दुख इस बात का है कि उनकी पार्टी के प्रति निष्ठा दलबदलुओं के सामने तार-तार हो गई। वैसे, कहने वाले यह भी कहते हैं कि इसमें योगी की कोई गलती नहीं है। सब जानते हैं कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका मंत्रियों के विभाग तय करने में काफी महत्वपूर्ण रही थी। 47 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री को छोड़ दे, तो 46 में 34 चेहरें ऐसे है जो पहली बार मंत्री बने हैं इनमें से कई तो पहली बार के विधायक भी हैं।
बात दूसरे दलों से आये नेताओं को लाल बत्ती दिये जाने की कि जाये तो ऐसा लगता है कि इन नेताओं को लाल बत्ती तो मिल गई, लेकिन आलाकमान का विश्वास जीतने में इन लोंगो को समय लगेगा। दलबदलू नेताओं को जो विभाग बांटे गये हैं, वह किसी भी दृष्टि से उनकी पूर्व की हैसियत के अनुसार नहीं हैं। बसपा सरकार में नेता प्रतिपक्ष रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को श्रम एवं सेवायोजना तथा नगरीय रोजगार विभाग दिया गया है। स्वामी की हैसियत को देखते हुए उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि उनके नेताजी को पीडब्ल्यूडी, ंिसंचाई जैसे कोई विभाग दिये जाएंगे। कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी को महिला कल्याण, परिवार मातृ एवं शिशु कल्याण और पर्यटन विभाग दिया गया है। डा. रीता के विभागों को जरूर अहम माना जा रहा है। इसी तरह सपा व बसपा में रह चुके सांसद एसपी सिंह बघेल को पशुपालन, बसपा छोड़कर आए सांसद और मौजूदा विधायक बृजेश पाठक को विधि एवं अतिरिक्त न्याय, अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत एवं राजनीतिक पेंशन विभाग दिया गया है। बृजेश के समर्थक भी जनता से जुड़े अहम महकमे की उम्मीद लगाए बैठे थे।
माया सरकार में कृषि मंत्री रहे लक्ष्मीनारायण चौधरी को दुग्ध विकास विभाग मिला है। उन्हें धर्मार्थ कार्य, संस्कृति और अल्पसंख्यक कल्याण महकमे की जिम्मेदार भी मिली है। जहां करने के लिये बहुत कुछ नहीं है। 2015 में भाजपा में शामिल हुए दारा सिंह चौहान को वन, पर्यावरण जंतु उद्यान विभाग पर ही संतोष करना पड़ा है। नंद कुमार नंदी को स्टांप तथा न्यायालय शुल्क, पंजीयन एवं नागरिक उड्डयन विभाग आवंटित किया गया है जो उनकी पसंद का नहीं बताया जाता है। इसी तरह बसपा छोड़कर आये स्वतंत्र प्रभार के मंत्री अनिल राजभर को सैनिक कल्याण, खाद्य प्रसंस्करण, होमगाड्र्स, प्रांतीय रक्षक दल और नागरिक सुरक्षा विभाग मिला है। उक्त विभाग सीधे तौर पर आम जनता से जुड़े विभाग नहीं हैं।
बात सीएम योगी की कि जाये तो उनके पास गृह, आवास, राजस्व, खाद्य एवं रसद, नागरिक आपूर्ति जैसे करीब तीन दर्जन महत्वपूर्ण विभागों में कई सरकारों में विवादों को जन्म देने और सरकारों की छवि पर असर डालने वाले खनन जैसे विभाग भी रहेंगे। काफी सोचने-विचारने के बाद मुख्यमंत्री ने इन्हें अपने पास रखना ही बेहतर समझा। खाद्य-रसद विभाग को अपने पास रख सीएम योगी अपने प्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सूबे में गरीबों को सस्ता अनाज न मिल पाने की ंिचंता को दूर करने की कोशिश करेंगे।
लब्बोलुआब यह है कि भले ही नये-नवेले चेहरों सिद्धार्थ नाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा, आशुतोष टंडन, मुकुट बिहारी वर्मा, स्वाति सिंह, संदीप सिंह व अनुपमा जायसवाल जो कभी मंत्री नही रहे, को महत्वपूर्ण विभाग दिए गए है और इनमें कोई किसी बड़े नेता का रिश्तेदार है तो किसी पर लंबे समय से पार्टी का कोई बड़ा नेता मेहरबान दिखता रहा है,लेकिन सब कुछ ठोक बजाकर किया गया है। ऐसा लग रहा है बीजेपी आलाकमान युवा नेताओं पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंप कर भविष्य के लिए बड़े नेताओं की नई पौध खड़ी करना चाहती है। इसीलिये नए चेहरों को अपने जौहर दिखाने का पूरा मौका दिया गया है। नये चेहरों को आगे करने का फायदा यह भी रहेगा कि बीजेपी सरकार की पुरानी वाली इमेज भी धुल जायेगी। नये चेहरों को तवज्जो मिलने का प्रभाव दिखाई भी पड़ रहा है। मोदी के स्वच्छता अभियान, भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस, कानून व्यवस्था पर शिकंजा,कसता नजर आने भी लगा है। कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसले शुरुआती दिनों में ले लिये गये जिन्हें पूर्व की सरकारें वोट बैंक के चलते लेने में कतराती थीं।