तवांग (अरुणाचल प्रदेश): तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने सोमवार को यहां अपने श्रद्धालुओं को दौरे के अंतिम दिन उपदेश दिया और आमंत्रित करने तथा उनके दौरे को सुगम बनाने के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार खासकर मुख्यमंत्र पेमा खांडू का शुक्रिया अदा किया। दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश दौरे का चीन ने विरोध किया है। यिद गाचोसिन मठ में ठेठ तिब्बती भाषा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य का उनका दौरा यादगार दौरों में से एक है और इसे वह सदा याद रखेंगे।
उन्होंने खासकर उन लोगों का शुक्रिया अदा किया, जो भारी संख्या में सुदूरवर्ती गांवों से उनका स्वागत करने तथा उनका उपदेश सुनने आए।तवांग के चार दिनों के दौरे के अंतिम दिन तिब्बती गुरु ने यह भी कहा कि दुनिया में दीर्घकलिक शांति व खुशहाली लाने का एकमात्र रास्ता धर्मनिरपेक्ष नैतिकता है।
उन्होंने एक अन्य कार्यक्रम में कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के दिनों में शांति डर पर आधारित थी। लेकिन, असल में शांति मानसिक शांति से ही आ सकती है।” दलाई लामा ने ‘धर्मनिरपेक्ष नैतिकता तथा खुशी’ विषय पर एक व्याख्यान दिया और जोर देते हुए कहा कि मन की शांति मस्तिष्क की शांति से ही आ सकती है। कालावांगपो हॉल में जुटे लोगों को दिए एक भाषण में नोबेल पुरस्कार विजेता ने दोहराया कि धर्मनिरपेक्ष नैतिकता शिक्षा के माध्यम से हासिल करनी चाहिए न कि केवल प्रार्थना या विश्वास से। कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी मौजूद थे।
बौद्धों द्वारा कर्म पर विश्वास के बारे में पूछे गए एक सवाल पर प्रतिक्रिया जताते हुए दलाई लामा ने लोगों से अपील की कि वह बौद्ध उपदेशों का पालन तभी करें, जब वह जांच व प्रयोगों से इस धर्म के प्रति पूरा ज्ञान प्राप्त कर लें। कर्म पर दलाई लामा ने कहा, “यह हमारा आचरण है, जो आराम व परेशानी दोनों लाता है।” इस दौरान उन्होंने ‘मोनयूल’ नामक एक पुस्तक का विमोचन भी किया।