इस चट्टान का ऋणी रहेगा केदारनाथ मंदिर, जानें क्या किए थे उपकार
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम के कपाट बुधवार को खुलेंगे। इससे पहले भगवान केदारनाथ की डोली पंचकेदार गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर से केदारनाथ धाम के लिए रवाना हुई। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्घालुओं के लिए छह माह के लिए खुलते है और बाद में सर्दियों में भारी बर्फबारी के बाद यहां आने का रास्ता बंद हो जाता है।
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चार धामों में से एक धाम केदानाथ धाम हर साल लाखों की संख्या में श्रद्घालु आते हैं। इस धाम प्रति लोगों की अटूट श्रृद्घा है, लेकिन जून 2013 में यहां आए भयंकर बाढ़ और भूस्खलन के बाद भीम शीला के प्रति भी लोगों की श्रद्घा बढ़ गई। जानिए आखिर कैसे होने लगी चट्टान की पूजा जून 2013 में उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में अचानक ही बाढ़ आ गई। इसके साथ ही भूस्खलन भी होने लगा, जिससे सबसे अधिक प्रभावित केदारनाथ धाम हुआ। यह आपदा इतनी भयावह थी इसके आस पास बने होटल, धर्मशाला सब कुछ अपने साथ बहाकर ले गई। यही नहीं मंदिर की दीवारें भी इससे बच नहीं पाई और बाढ़ के साथ बह गई, लेकिन इस ऐतिहासिक मंदिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहा। प्रलय के बाद भी मंदिर का उसी भव्यता के साथ खड़ा रहना किसी अचरज से कम नहीं था।
आज भी लोग इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मानते। हालांकि मंदिर को उस प्रलय से बचाने में भीम शीला ने अहम योगदान रहा, जिसकी लोग अब पूजा करने लगे। बाढ़ और भूस्खलन के बाद बड़ी बड़ी चट्टाने मंदिर के पास आने लगी और वहीं रूक गई, जो अभी तक जस की तस है, लेकिन उसी में से एक चट्टान भी आई, जो मंदिर का कवच बन गई। इस चट्टान की वजह से ही मंदिर की एक ईंट को भी नुकसान नहीं पहुंचा। जिसके बाद इस चट्टान को भीम शिला का नाम दिया गया। यह चट्टान मंदिर के परिक्रमा मार्ग के बिल्कुल पीछे है।