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नई रक्षा नीति से देसी कंपनियों को लगेंगे पंख

रक्षा खरीद परिषद की शनिवार को रक्षा मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में हुई बैठक ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। सरकार ने पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया के तहत चुनी गई निजी क्षेत्र की कंपनियों को पनडुब्बी, लड़ाकू विमान और बख्तरबंद वाहन के सौदे में ग्लोबल कंपनियों के साथ स्ट्रेटजिक साझेदारी में शामिल होने तथा निर्माण की इजाजत दे दी है। भारतीय रक्षा खरीद नीति में इस बदलाव का उद्योग जगत भी काफी पहले से इंतजार कर रहा था। इस तरह से मेक इन इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा देने के क्रम में देसी कंपनियों को पंख लगने की संभावना बढ़ गई है।
नई रक्षा नीति से देसी कंपनियों को लगेंगे पंख
इस नीतिगत बदलाव के बाद टाटा डिफेंस, लार्सन एंड टुब्रो, रिलायंस, महिन्द्रा डिफेंस जैसी तमाम बड़ी देसी कंपनियों को विश्व स्तरीय लड़ाकू विमान, पनडुब्बी, बख्तरबंद वाहन निर्माता कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम के जरिए रक्षा सौदों में भागीदार होने का अवसर दे दिया है। 

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इससे तकनीकी विश्वस्तरीय विमान निर्माता कंपनियों से रक्षा तकनीकी हस्तांतरण, घरेलू रक्षा उपकरणों, तकनीकी तथा निर्माण क्षेत्र में विकास और सप्लाई चैन को विकसित करने में मदद मिलेगी। रक्षा मंत्रालय के विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आने वाले समय में भारत को आटो मोबाइल क्षेत्र की रक्षा क्षेत्र के विनिर्माण हब के रूप में विकसित किया जा सकेगा।

रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार शुरू में यह नीति केवल पनडुब्बी, लड़ाकू विमान और बख्तरबंद वाहन के क्षेत्र में ही लागू होगी, लेकिन बाद में इसे अन्य क्षेत्र के लिए भी खोला जाएगा। हालांकि इस नीति को लेकर डीआरडीओ के शीर्ष वैज्ञानिक अभी कोई भी प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं। नीति आयोग के सदस्य और डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख डा. वीके सारस्वत ने भी कहा कि वह पूरी प्रक्रिया का अध्ययन करने के बाद ही कुछ कहने की स्थिति में होंगे।

यूपीए सरकार ने खोली थी राह

यूपीए सरकार ने रक्षा नीति में उदारता दिखाते हुए देश में बने रक्षा उपकरणों को महत्व देने की नीति अपनाई थी। इसके लिए रक्षा खरीद नीति में आफसेट पॉलिसी को जगह दी गई थी, लेकिन इस नीति को लचीला बनाने की मांग की जारी थी। डीआरडीओ के एक शीर्ष वैज्ञानिक का कहना है कि देश में रक्षा क्षेत्र में वैज्ञानिक, इंजीनियर आदि की भारी कमी है। इतना ही नहीं निजी कंपनियों की क्षमता भी इसके अनुकूल नहीं है। यही वजह है कि सरकार रक्षा नीति को लचीला बनाने से संकोच कर रही थी।

नहीं मिल पाया था एडीएजी को सौदा
रूस के साथ भारत कैमोव हेलीकाप्टर का सौदा किया है। तकनीकी हस्तांतरण की प्रक्रिया के तहत इन हेलीकाप्टरों का देश में भी निर्माण होना है। इसके लिए अनिल अंबानी के स्वामित्व वाला एडीएजी समूह काफी रुचि ले रहा था। सरकार की तरफ से भी आपत्ति नहीं थी, लेकिन रूस ने अडंगा लगा दिया था। रूस की हेलीकाप्टर निर्माता कंपनी का कहना था कि एडीएजी ने के पास हेलीकाप्टर निर्माण का कोई अनुभव नहीं है। सूत्र बताते हैं रूस की आपत्ति के मद्देनजर फिर सार्वजनिक क्षेत्र की विमान निर्माता कंपनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को शामिल किया गया।
 
काफी बड़ी है चुनौती
भारत सरकार ने भले ही निजी क्षेत्र की कंपनियों को उच्च तकनीकी वाले रक्षा संसाधन के तीन क्षेत्रों में विनिर्माण के लिए उतरने की इजाजत दे दी है, लेकिन इसकी राह आसान नहीं है। ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना से जुड़े एक वैज्ञानिक का मानना है कि अभी हमारा निजी क्षेत्र उच्च रक्षा तकनीकी क्षेत्र में काफी अपरिपक्व स्थिति में है। शोध संस्थान, इंजीनियर, वैज्ञानिक आदि की कमी है। इसलिए मौजूदा अभी कुछ साल तक भारतीय कंपनियां ग्लोबल कंपनियों के साथ करार की दशा में केवल संसाधन मुहैय्या कराने में सहयोग दे पाएंगी और रक्षा संसाधनों के विकास का ढांचा तैयार करें सकेंगी।

महिन्द्रा और लार्सन टुर्बो को तात्कालिक फायदा
भारत ने अमेरिका की बीएई सिस्टम के साथ 145 एम-777 तोपों की खरीद का सौदा किया है। यह सौदा फारेन मिलिट्री सेल्स के तहत हुआ है। इनमें से 25 तोपें तैयार हालत में और 120 तोप देश में ही असेम्बल की जानी है। इसके लिए बीएई सिस्टम और महिन्द्रा डिफेंस के बीच सहमति बनी है। इसी तरह से कोरिया से 100 के-9 हॉवित्जर तोपों को लिया जाना है। इसमें लार्सन एंड टुब्रो की भूमिका रहेगी।

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