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यूरोप की खूबसूरती से कम नहीं दिल्ली के बेहद करीब यह इलाका, आपने देखा है क्या…!

देखिए, दिल्ली के पास जंगल में बसती है खूबसूरत दुनिया -दिल्लीद-एनसीआर के लिए अरावली का वन क्षेत्र फेफड़े के रूप में काम करता है। लेकिन इस समय इस बेशकीमती जमीन पर नेताओं और बिल्डवरों की नजर लगी हुई है। वह चाहते हैं कि इस क्षेत्र को वन क्षेत्र न माना जाए, जिससे वह यहां कंक्रीट के जंगल उगा सकें। लेकिन उनकी इस मंशा के खिलाफ कई संस्था एं लगी हुई हैं। इनमें से प्रमुख है सेव अरावली। जो लोगों में अरावली बचाने की जागरूकता फैलाने के लिए हर रविवार यात्रा निकालती है। अरावली यात्रा के दौरान इस क्षेत्र की खूबसूरती को जयंत वर्मा ने अपने कैमरे में कैद किया। रिपोर्ट: ओम प्रकाश पर्यावरणविदों का मानना है कि फरीदाबाद, गुड़गांव और दिल्ली से घिरे इस क्षेत्र से ही यहां का पर्यावरण संतुलन बना हुआ है। 

इसमें न सिर्फ पक्षियों की ढेरों प्रजातियां देखने को मिलती हैं बल्कि इसमें गाहे बगाहे तेंदुआ और हिरन भी देखने को मिलते हैं। 

अरावली की पहाड़ियों के बीच कुछ मंदिर बने हुए हैं जिन्हेंस देखते ही आप बरबस की कह उठेंगे कि वाह क्या बात है। 

कुछ मंदिर तो वन और पहाड़ों से घिरे ऐसे लगते हैं जैसे हम दक्षिण भारत के किसी जगह पर हों।अरावली यात्रा आमतौर पर रविवार को सुबह 6 बजे से निकाली जाती है जिसमें लोग परिवार के साथ जाते हैं।

सेव अरावली से जुड़े जितेद्र भड़ाना कहते हैं कि इस समय सेव अरावली से करीब छह हजार लोग जुड़े हुए हैं। इस वन क्षेत्र के गांवों को हम इसके संरक्षण के प्रति जागरूक करने में सफल हुए हैं। 

यात्रा से एक फायदा यह मिलता है कि लोगों ने इसमें से लकड़ियां काटनी बंद कर दीं हैं। वन को खोखला करने वालों पर निगाह रहती है। 

इसमें एक से बढ़कर एक झीलें हैं। हमारी सलाह है कि बस इसकी सुंदरता निहारिए। इसमें उतरिए मत, डूबने का खतरा हो सकता है। क्योंाकि ये झीलें काफी गहरी हैं। 

मांगर बनी में राज्ये सरकार ने बनी से 500 मीटर क्षेत्र में बफर जोन घोषित कर दिया है, ताकि इस खूबसूरत क्षेत्र को बिल्डकरों की ललचाई नजर से बचाया जा सके।

मांगर और पाली बनी में यहां पक्षियों की सबसे ज्याेदा प्रजातियां पाई जाती हैं। जहां बर्ड वाचर लगभग हर सप्तामह पहुंचते हैं। पक्षियों को देखने का शौक पूरा करते हैं। 

बारिश के दिनों में यहां पर झरना फूट पड़ता है। जिसे देखते ही बनता है। इससे जुड़े लोगों की कोशिश है यह क्षेत्र कंक्रीट का जंगल बनने से बच जाए, ताकि दिल्लीस-एनसीआर के लोग साफ हवा में सांस ले सकें। 

 

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