योगी हठ के सामने छोटा पड़ा चुनौतियों का पहाड़
‘सबका साथ, सबका विकास’ के मोदी फार्मूले पर ही योगी आगे बढ़ रहे हैं। अब योगी की भाषा में बेबाकी नहीं रह गई है। वह अपना मुंह काफी सोच समझ कर खोलते हैं। इससे उन दलों के नेताओं को झटका लगा है जो सोच रहे थे कि योगी की ताजपोशी से उन्हें बीजेपी को साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर घेरने का सुनहरा मौका मिल गया है। यह वह नेता थे जिनकी पूरी सियासत ही जाति-धर्म के इर्दगिर्द घूमती रहती थी। ऐसा नहीं है कि योगी की सधी हुई राजनीति के बाद विपक्ष ने हथियार डाल दिये हों।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सौ दिन का जश्न धूमधाम से मनाया। जगह-जगह कार्यक्रम हुए। ‘100 दिन विश्वास के’ नाम से एक पुस्तिका का प्रकाशन करके योगी सरकार ने अपने कामकाज की खूब वाहवाही लूटी। पुस्तिका में 100 दिनों की उपलब्धियों का बखान किया गया था। स्वाभाविक था इसमें उन मुद्दों को नहीं छुआ जाना था, जो सौ दिन की योगी सरकार में परेशानी का कारण बने थे और ऐसा ही हुआ भी, जबकि योगी सरकार के लिये सब कुछ ‘हरा-हरा’ ही नहीं था। कई मायनों में सौ दिन योगी सरकार के लिये कड़ी परीक्षा वाले भी रहे। योगी के सत्ता संभालने के बाद जब यह उम्मीद की जा रही थी कि प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार आयेगा तब अचानक कानून व्यवस्था अखिलेश काल से भी बुरे दौर में पहुंच गई। जिस जनता ने अखिलेश राज में प्रदेश में व्याप्त जंगलराज के चलते सत्ता से नीचे उतार दिया था, वही जनता यह सोचने को मजबूर हो गई कि कहीं उसका फैसला गलत तो नहीं था। हर तरह के अपराध में इजाफा हुआ था। छोटी-छोटी आपराधिक घटनाओं की बात तो दूर थी, खून- खराबा, दंगा-फसाद, लूटपाट, गैंगरेप जैसे जघन्य अपराधों से अखबार के पन्ने रंगे मिल रहे थे। यह सब तब हो रहा था जब सीएम योगी अपराधियों को उलटा लटकाकर सीधा करने के दावे कर रहे थे। माहौल खराब था तो वह पूर्व सीएम मायावती को तो छोड़ ही दीजिये अखिलेश यादव भी गरजने लगे, जिनके राज में अपराधी छुट्टा घूमते थे और कानून के हाथ बंधे रहते थे, लेकिन अच्छी बात यह है कि योगी सरकार के सौ दिन होते-होते विपक्ष के लिये अपराध अब चर्चा का मुद्दा नहीं रह गया है। सौ दिन बाद अगर यह बात दावे के साथ कही जाये कि योगी की सख्ती रंग लाई है और अपराधियों के हौसले टूटे हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
बात अपराध तक ही नहीं सीमित है। सौ दिनों में अन्य कई मोर्चों पर योगी सरकार की किरकिरी हुई तो कुछ मुद्दों पर योगी सरकार स्वयं यूटर्न लेती भी नजर आई। चाहें बात एंटी रोमियो दल की हो या फिर अवैध बूचड़खानों की, दोनों को लेकर शुरू की तेजी के बाद सरकार ढुलमुल नजर आने लगी। उस पर भाजपा नेता भी सरकार की किरकिरी कराते रहे। सहारनपुर में एसएसपी आवास पर हंगामे की घटना हुई, जिसमें बीजेपी सांसद लखनपाल पर उंगलियां उठीं। खतौली से भाजपा विधायक विक्रम सैनी ने अपने समर्थकों से कहते सुने गये कि गौ हत्या करने वालों के पैर तोड़ दें। मऊ के बीजेपी विधायक श्रीराम सोनकर ने लखनऊ में सिपाही पर थप्पड़ जड़कर फजीहत कराई। योगी के क्षेत्र के विधायक डॉ. राधा मोहन महिला आईपीएस चारू निगम को सार्वजनिक रूप से अपमानित करते दिखे।
एक तरफ कुछ फैसलों पर ढुलमुल रवैया था तो दूसरी तरफ योगी सरकार द्वारा जनता से जुड़े फैसले लेने में तेजी भी दिखाई। ऐसा करते समय सरकार की छवि का भी पूरा ध्यान रखा गया। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मोदी फार्मूले पर ही योगी आगे बढ़ रहे हैं। अब योगी की भाषा में बेबाकी नहीं रह गई है। वह अपना मुंह काफी सोच समझ कर खोलते हैं। इससे उन दलों के नेताओं को झटका लगा है जो सोच रहे थे कि योगी की ताजपोशी से उन्हें बीजेपी को साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर घेरने का सुनहरा मौका मिल गया है। यह वह नेता थे जिनकी पूरी सियासत ही जाति-धर्म के इर्दगिर्द घूमती रहती थी। ऐसा नहीं है कि योगी की सधी हुई राजनीति के बाद विपक्ष ने हथियार डाल दिये हों। इसीलिये कभी दलितों को भड़काया गया तो कभी मुसलमानों को बरगलाया गया। जिसका परिणाम था सहारनपुर का दंगा। जहां दलितों को ठाकुरों से लड़ाया गया। सहारनपुर में यह नजारा सबने देखा जब बसपा सुप्रीमों के जाते ही वहां 09 मई के बाद 23 मई को एक बार फिर दंगा भड़क गया। कई जगह हिन्दू-मुसलमानों के बीच तलवारें खिंचवाई गईं। अलीगढ़ में एक मस्जिद की गुम्बद के निर्माण को लेकर बिगड़ा माहौल दंगे की शक्ल में सामने आया तो कहीं जानवरों के काटने को लेकर विवाद हुआ। यह सच है कि योगी के सीएम बनने के बाद कट्टर हिन्दूवादी ताकतों ने अपना सिर उठाया था, मगर सरकार का रुख भांपकर यह लोग धीरे-धीरे शांत होते गये।
असल में योगी ने कुछ नया या पूर्ववर्ती सरकारों से अलग हटकर कुछ नहीं किया था, बस पुलिस पर इस बात का दबाव बनाया गया कि वह अपराधियों को पकड़कर जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाये। ऐसा ही हुआ और यूपी में अपराध का ग्राफ घट गया। अफसरों की जवाबदेही तय की गई तो विकास के काम में तेजी दिखने लगी। पुलिस की छवि सुधारने के लिये आनन-फानन में कई कदम उठाये। इसी तरह से सरकारी योजनाओं की लागत न बढ़े इसके लिये समय पर काम पूरा हो, इसके लिये कई कदम उठाये गये। ठेके के लिये ई-टेंडरिंग व्यवस्था लागू की गई। 20 जिलों में विज्ञान केन्द्र खोले गये। ताबड़तोड़ फैसलों से काले कारनामें करने वालों में दहशत पैदा हुई। योगी ने अपनों के भी पेंच कसने में गुरेज नहीं किया। अपनी सरकार के मंत्रियों और नेताओं की पारदर्शिता और ईमानदारी पर जोर दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का रुख अपनाया गया। किसानों का कर्ज माफ किया। तीन तलाक से जूझ रहीं मुस्लिम महिलाओं का विश्वास जीता। पूर्ववर्ती सकार के कई घोटालों की जांच कराई। कई वर्षों के पश्चात यूपी में गेहूं की बंपर सरकारी खरीद देखने को मिली। गन्ना किसानों को चीनी मिलों से उनका भुगतान दिलाया गया। किसानों का कर्ज माफ करने के क्रम में केन्द्र की तरफ से कोई मदद नहीं मिलने के बाद 36 हजार 369 करोड़ रुपये के इस बोझ को उतारने के लिये वित्त विभाग तरकीबें ढूंढ रहा है। राज्य में किसानों की कर्जमाफी के बाद से बिजली के मोर्चे पर योगी सरकार ने कुछ अच्छे कदम उठाये हैं। इनमें केन्द्र के साथ ‘पावर टू आल’ समझौता भी शामिल है। इसके अलावा राज्य सरकार ने जिला मुख्यालयों पर 24 घंटे, तहसील मुख्यालय में 20 तथा गांवों में 18 घंटे बिजली देने का प्रावधान भी किया है। वहीं सातवें वेतन आयोग को लागू करने में आने वाला 34 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय भार भी सरकार को उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा अधिकारियों का तबादला और तैनाती भी मेरिट के आधार पर करने के फैसले की भी सराहना की जा रही है। बात चुनौतियों की की जाये तो पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे जैसी बड़ी परियोजनाओं के लिये धन उपलब्ध कराना भी सरकार के लिये बड़ी चुनौती है। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में विद्यार्थियों को लैपटॉप वितरण का वादा किया गया था लेकिन यह योजना कब शुरू होगी इसका किसी के पास कोई जबाव नहीं है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि योगी हठ के सामने चुनौतियों का पहाड़ छोटा नजर आने लगा है।
अखिलेश-माया की नजर में योगी सरकार फेल
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के 100 दिन के कार्यकाल को बसपा सुप्रीमो मायावती ने निराशाजनक करार दिया। उनके अनुसार हर स्तर पर प्रदेश में अपराध और भ्रष्टाचार लगातार जारी है, जिससे लोग परेशान हैं। इसलिए इस सरकार को 100 दिनों में 100 में से एक नंबर भी नहीं दिया जा सकता है। मायावती ने कहा कि अपने चुनावी वादों के मुताबिक योगी सरकार 10 प्रतिशत भी खरी नहीं उतरी। खासकर कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण के मामले में तो ये सरकार जीरो है। उन्होंने कहा कि किसानों की कर्ज माफी का डंका बजाया गया लेकिन यह सिर्फ कागजी घोषणा ही रह गई। इसमें कोई ठोस शुरुआत नहीं हो सकी है। मायावती ने आरोप लगाया कि बीजेपी के ही गमछाधारी लोग हर स्तर पर कानून व्यवस्था की जबरदस्त धज्जियां उड़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर मोदी सरकार की तरह योगी सरकार भी जनहित व जन कल्याण के महत्वपूर्ण मामलों में आम जनता के साथ धोखा कर रही है।
योगी सरकार पर निशाना साधते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी सरकार के कामों की जांच के बहाने योगी सरकार ने सौ दिन बर्बाद कर दिए। भाजपा सरकार कुछ तो करे, ताकि विकास हो और जनहित के काम आगे बढ़ सकें। अभी तो उन्होंने समाजवादी सरकार के कार्यों की जांच के बहाने तीन महीने बर्बाद कर दिए हैं। प्रदेश का विकास रुका हुआ है। समाजवादी सरकार ने जो कदम उठाए थे, वही विकास का रास्ता है। उन्होंने कहा कि भाजपा समाज को बांटने और नफरत फैलाने की राजनीति कर रही है। वह विकास को सांप्रदायिकता के चश्मे से देखना चाहती है। अखिलेश ने उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के काम काज पर कहा कि अब तक जनहित की किसी नई योजना की शुरुआत तक नहीं की है। जो योजनाएं समाजवादी सरकार ने चलाई थीं, उनका ही नाम बदलकर अपनी विकास योजना बताना कहां की नैतिकता है।