ये भी पढ़ें: शादी का झांसा देकर महाराष्ट्र से गोरखपुर लेकर आया, फिर नशा देकर कर दिया ऐसा
इस वजह से इनके आवेदन निरस्त कर दिए गए। इन प्रोजेक्टों में अभी निर्माण कार्य चल रहा है। कई प्रोजेक्ट ऐसे हैं, जिसका अभी ढांचा ही खड़ा हुआ है, वह भी आधा-अधूरा। इसे रहने लायक बनने में अभी लगभग एक वर्ष का समय और लग सकता है। किसी प्रोजेक्ट में अभी निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है तो किसी में अभी जरूरी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं।
इन प्रोजेक्ट के लिए मांगा था कंपलीशन
ग्रुप हाउसिंग
-सेक्टर-45 मैसर्स आम्रपाली सफायर दो
-सेक्टर-44 मैसर्स एसोटेक लिमिटेड
-सेक्टर-46 मैसर्स एम्स मैक्स गार्डेनिया डवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड
-सेक्टर-75 मैसर्स एम्स गार्डेनिया डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के तीन प्रोजेक्ट
-सेक्टर-76 मैसर्स आम्रपाली सिलिकोन सिटी प्राइवेट लिमिटेड
-सेक्टर-76 मैसर्स आम्रपाली प्रिन्सले इस्टेट प्राइवेट लिमिटेड
-सेक्टर-78 मैसर्स अन्तरिक्ष डेवलपर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
-सेक्टर-121 मैसर्स आईवी काउंटी प्राइवेट लिमिटेड
-सेक्टर-135 मैसर्स टुडे होम्स नोएडा प्राइवेट लिमिटेड
-सेक्टर-143 मैसर्स लॉजिक्स सिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड
– सेक्टर-94 मैसर्स सुपरटेक लिमिटेड
– सेक्टर-18, 25ए व 32 स्थित मैसर्स वेब सिटी
(नोट : इन बिल्डरों को अगर कंपलीशन मिल जाता तो ये रेरा से बाहर हो जाते। रेरा के तहत बिल्डरों को 31 जुलाई 2017 तक पंजीकरण कराना अनिवार्य है।)
ये भी पढ़ें: हॉस्टल के बाथरूम में छात्रा के साथ हुआ कुछ ऐसा कि शहरभर में मचा हड़कंप
किसी प्रोजेक्ट को प्राधिकरण द्वारा कंपलीशन प्रमाण पत्र मिलने का मतलब है कि उसमें बिजली, पानी, सीवर, अग्निशमन सुरक्षा, निर्माण कार्य और रंगाई-पुताई का पूरा काम हो चुका है। वह प्रोजेक्ट लोगों के रहने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है और उसमें सभी मूलभूत सुविधाएं मौजूद हैं।
साथ ही, जिस तिथि को कंपलीशन के लिए आवेदन किया जा रहा है, उस तिथि तक का बिल्डर का पूरा पैसा प्राधिकरण के पास जमा होना चाहिए। किसी भी तरह का बकाया होने पर प्राधिकरण कंपलीशन प्रमाण पत्र जारी नहीं कर सकता। शुक्रवार तक नोएडा के 152 प्रोजेक्ट रेरा के तहत पंजीकृत हो चुके थे।
31 जुलाई तक सभी बिल्डर प्रोजेक्ट को रेरा के तहत पंजीकृत करना अनिवार्य है। जानकार मानते हैं कि जिले में करीब 70 फीसदी प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो रेरा के दायरे में आएंगे। प्राधिकरण ने जिन 16 प्रोजेक्ट के कंपलीशन का आवेदन निरस्त किया गया, उनमें अभी निर्माण कार्य चल रहा है।
कई प्रोजेक्ट हैं, जिसका अभी ढांचा ही खड़ा हुआ है, वह भी आधा-अधूरा। इसे रहने लायक बनने में अभी लगभग एक वर्ष का समय और लग सकता है। यही हाल आवेदन निरस्त किए जाने वाले अन्य प्रोजेक्टों का भी है। किसी प्रोजेक्ट में अभी निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है तो किसी में अभी जरूरी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं।
पूर्व में दिए गए कंपलीशन की भी हो जांच
नेफोमा अध्यक्ष अन्नू खान के अनुसार किसी प्रोजेक्ट को कंपलीशन देने से पहले प्राधिकरण आपत्ति दर्ज कराने के लिए एक नोटिस जारी करता है। ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं जिसे कंपलीशन देने के लिए वहां के निवासियों ने आपत्ति दर्ज कराई बावजूद उन्हें कंपलीशन जारी कर दिया गया। पूर्व में प्राधिकरण द्वारा ऐसे कई प्रोजेक्टों को कंपलीशन दिया गया है, जिनमें अब भी काम चल रहा है। प्राधिकरण द्वारा आयोजित बिल्डर-बायर बैठक में भी ये मुद्दा कई बार उठ चुका है। लिहाजा, जरूरी है कि प्राधिकरण पूर्व में कंपलीशन पा चुके प्रोजेक्टों की भी जांच कराए।
रेरा से बचने के लिए फर्जीवाड़ा कर रहे बिल्डर
नेफोवा की महासचिव स्वेता भारती के अनुसार, रेरा बिल यूपी में बहुत देर से लागू किया गया। इससे पूर्व बिल्डरों को पूरा मौका दिया गया कि वह इससे बच सकें। बावजूद बिल्डर अपना काम पूरा कर रेरा से नहीं बच सके। लिहाजा, अब वह रेरा से बचने के लिए फर्जीवाड़ा करने पर उतारू हो गए हैं। जिन प्रोजेक्ट का काम चल रहा है उसके लिए भी कंपलीशन का आवेदन किया जा रहा है। बिल्डर खरीदारों को जबरन बिना कंपलीशन के प्रोजेक्ट में रहने का भी दबाव बना रहे।
ये भी पढ़ें: नीतीश सबसे बड़े ‘विश्वासघाती’, हरा नहीं पाए तो BJP की गोद में बैठ गए: मुलायम सिंह यादव
फैक्ट फाइल
– वर्ष 2000 से 2010 के बीच ज्यादातर बिल्डरों को आवंटित हुई है भूमि।
– वर्ष 2013-14 तक ज्यादातर प्रोजेक्ट में मिल जाना था कब्जा।
– 400 बिल्डर प्रोजेक्ट चल रहे हैं नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना क्षेत्र में।
– कुल आवंटन राशि का मात्र 10 फीसदी लेकर प्राधिकरण ने दी थी जमीन।
– 2000 से ज्यादा शिकायत एनजीटी, पुलिस, प्राधिकरण, उपभोक्ता फोरम और न्यायालयों में लंबित हैं।
– 200 से ज्यादा मामलों में पुलिस बिल्डर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच कर रही है।
बिल्डरों के खिलाफ आने वाली शिकायतें
– प्रोजेक्ट लांच करते वक्त कम फ्लोर बताए जाते हैं, बाद में दस फ्लोर तक अतिरिक्त बना दिए जाते हैं।
– बाजार, ग्रीन एरिया और सामुदायिक केंद्र के स्थान बदल देते हैं या इन स्थानों पर अतिरिक्त टावर खड़े कर दिए जाते हैं।
– बिजली, सीवर का काम किए बिना लोगों को कब्जा दे देते हैं। बाद में इन कामों के लिए रखरखाव चार्ज अलग से लिया जाता है।
– पार्किंग स्पेस पहले बेच दिया जाता है, लेकिन बाद में खरीदार को स्पेस अलॉट नहीं किया जाता है।
– अतिरिक्त एरिया के नाम पर चार्ज वसूला जाता है।
– निर्धारित समय में कब्जा नहीं देते हैं।
– खरीदार से निर्माण के अनुपात की जगह मनमाने तरीके से पैसा वसूलते हैं।
– निर्माण सामग्री की गुणवत्ता बेहद खराब होती है।
– भविष्य में अतिरिक्त एफएआर खरीदने की बात पहले से नहीं बताई जाती है।
– फ्लैट देने में देरी होने के बावजूद उसकी कीमत बढ़ाकर खरीदारों से वसूली करते हैं।