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कौन होगा नया भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष!

अब तक जो भी नाम सामने आए उनमें श्याम जाजू ही सबसे मुफीद

संजय रोकड़े

भाजपा में एक बार फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सुना है कि वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह को अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी उनके काबिना मंत्रिमंड़ल में स्थान देकर रक्षामंत्री बनाना चाहते है। इस बात की प्रमाणिकता के रूप में हम अमित शाह के गुजरात से राज्यसभा में जाने को लेकर भी देख सकते है। शाह को अचानक राज्यसभा भेजने की कवायद से राजनीतिक गलियारे में ये कानाफूसी तेज होने लगी है कि उन्हें नरेंद्र मोदी कैबिनेट में जगह देने वाले है। केंद्र में मंत्री बनने के लिए सांसद होना जरूरी है इसलिए उनको ऊपरी सदन में लाया जा रहा है। हालाकि अभी यह कहना जल्दी होगा कि अमित रक्षा मंत्री बन रहे है। खैर, ऐसा होता भी है तो लाख टके का सवाल यह खड़ा होता है कि फिर अमित के स्थान पर राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में बागड़ोर कौन संभलेगा। भविष्य में इस पद को अपनी काबिलियत के बल पर साबित करने वाले लोगों में जिनके नाम सामने आ रहे है वे तीनों इस समय मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है। ये तीनों ही शीर्ष पद की दौड़ में सबसे आगे शुमार है। ये तीन नेता हैं श्याम जाजू, विनय सहस्रबुद्धे और ओम माथुर। तीनों ही अमित शाह के साथ संगठन में हैं और इनको शाह स्टाइल में पार्टी चलाने का अनुभव भी है।

हालाकि जब से मोदी देश में पीएम की कुर्सी पर विराजे है तब से पार्टी में अप्रत्याशित फैसले होने लगे है। ऐसे में कोई भी अनुमान किंतु-परंतु से परे नहीं हो सकता है। फिर भी बीजेपी के आरएसएस से जुड़ाव और जातीय अस्मिता की राजनीति पर जोर देकर देखें तो मौजूदा तीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष में से इस शीर्ष पद के लिए सबसे उपयुक्त और अच्छे श्याम जाजू ही साबित हो सकते है। श्याम जाजू पार्टी संगठन में संघर्ष के उन दिनों के साथी है जिनके खाते में पार्टी विस्तार को लेकर अनेक खूबियां दर्ज है। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि तो ये है कि वह हर समय कार्यकर्ता के लिए सहज रूप से मौजूद रहते है। आज तक के रिकार्ड में कभी भी पद की लालसा नही की है। वरिष्ठों ने जो जिम्मेदारी सौपी उसे सहर्ष स्वीकार किया। जहां भी रहे वहां बिना किसी गुटबाजी व इमानदारी से पार्टी की ताकत को बढ़ाया है। यह उपलब्धियां उनको उनके समकक्ष राष्ट्रीय उपाध्यक्षों से अलग स्थान पर लाकर खड़ा करती है। बाताते चलूं कि जब से उनको दिल्ली का प्रभार सौपा गया है तब से दिल्ली में भाजपा की स्थिति कुछ और बेहतर हुई है। श्याम को दिल्ली का प्रभारी बनाए जाने के बाद से बीजेपी के अंदरूनी संतुलन में भी बदलाव महसूस किया गया है। श्याम ने दिल्ली के एमसीड़ी चुनाव में भी सबको साथ लेकर ऐसी ताकत झोकी की सभी विरोधी दल धराशायी हो गए। उनकी आदत में जो बात शुमार है वह यह है कि कोई भी काम करो तो सबकी सहमति से करो या सबको विश्वास में लेकर करो। इस कारण उनके फैसलों पर विवाद भी कम ही होते देखे गए। वे किसी भी बड़े से बड़े काम को जिस सहजता से अंजाम देते है उसे देख कर कोई यह कयास नही लगा सकता है कि वे अपने कर्म में कितने सफल होगें लेकिन इतिहास उठा कर देखे तो पाएंगें कि उनने बड़े से बड़े काम में सफलता हासिल की है। कार्य के प्रति सहजता और समर्पण के कारण ही जाजू पर शीर्ष नेता आसानी से विश्वास करके कठिन से कठिन जिम्मेदारी सौप देते है।

हम थोड़ा पीछे उत्तराखंड की ओर चलते है। पार्टी ने जब उनको इस राज्य का प्रभारी बनाया था तब कहीं से कहीं तक यह नही लग रहा था कि भाजपा प्रदेश में अपने बल पर सत्ता में आकर सरकार बना लेगी। उस समय राज्य में पार्टी नेता न केवल अनेक धड़ों में बंटे थे बल्कि तत्कालीन सीएम हरीश रावत भी एक बड़ी चुनौती के रूप में सबके सामने खड़े थे। यह श्याम जाजू जैसे व्यक्तित्व का ही चमत्कार है कि चंद दिनों में ही धडों में बंटे पार्टी नेताओं को एकजुट किया और हरीश रावत जैसे ताकतवर सीएम को अपनी रण नीतियां बदलने पर मजबूर किया। आज नजीजा सामने है। यहां भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेन्द्रसिंह रावत सरकार चला रहे है। श्याम उत्तराखंड़ में अपनी उस नीति में बेहद सफल हुए जिसके चलते वह जनता को ये समझाना चाहते थे कि हरीश रावत वन मैन आर्मी की सरकार चला रहे है। वह हमेशा नान इश्यूज को इश्यू बनाकर काम करते है। खुद को बाहुबली दिखाते है। ये बाते जाजू ने वहां की जनता के दिलों दिमाग में उतारकर हरीश रावत को जनता के सहयोग से ही उन्हें उनकी जगह दिखा दी। जाजू अमित शाह के भी चहेते चेहरों में से एक रहे है। श्याम की खासियत यह है कि जब भी शाह उत्तराखंड़ के दौरे पर जाते या रैली करते, उसके पूर्व वे जाजू को तैयारियों की कमान सौपते थे। वे भी शाह की जनसभाओं को सफल बनाने में जी जान से जुट जाते थे। बता दे कि पार्टी स्तर पर और आरएसएस में भी इस समय सबसे अधिक जोर श्याम जाजू के नाम पर ही दिया जा रहा है।

राजनीतिक गलियारों में भी इसी नाम पर चर्चाएं जोरों पर चल रही है। वैसे भी अब तक जो नाम सामने आए है उनमें ओम माथुर को लेकर नरेन्द्र भाई मोदी व अमित शाह इस बात पर राजी नही है कि माथुर अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। ये दोनों नेता माथुर को राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जगह सीएम बनाने की मंशा रखते है। वैसे भी माथुर राजस्थान में ही खुद को सुरक्षित महसूस करते है। इसी कारण से वे वहां से बाहर निकलना भी पसंद नही करते है। ऐसे में अब श्याम जाजू को छोड कर एक नाम बचता है वह है- विनय सहस्रबुद्धे। विनय को यह जिम्मेदारी सौपना वक्त से पहले सब कुछ सौप देने जैसी कवायद ही साबित होगी। वैसे भी विनय पार्टी व संगठन में जाजू से कम तजुर्बा रखते है। उनकी उपलब्धियों में सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के सहयोगी रहे है। आज भले ही वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है लेकिन उनमें वो काबिलियत नही है कि वे पार्टी के शीर्ष पद को सुशोभित कर सके। यह एकमात्र ऐसा पद है जिसको पाने के लिए खुद को सोने की तरह पिघल कर साबित करना पड़ता है। बहरहाल ये राजनीति है इसमें किसी के बारे में भी यह कहना गलत ही साबित होगा कि वही इस पद के लिए सबसे काबिल इंसान है। समय के साथ इस पद को सुशोभित करने वाले अनेक चेहरों के नाम भी जुडेगे। अब देखना यह है कि किसकी नसीब साथ देगी और कौन नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा।

(लेखक मीडिय़ा रिलेशन पत्रिका का संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक विषयों पर कलम चलाते है।)

 

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