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दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने अभिभावकों को दी बेहतर शिक्षा की आजादी

देश आजादी की 70वीं सालगिरह मना रहा है. दुनिया के सबसे महान गणतंत्र में हम अपनी मर्जी से जीने के लिए आजाद हैं. लेकिन आज भी भारत जैसे महान देश में बेहतर शिक्षा स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं हर किसी के बूते के बाहर है. जो समृद्ध है उसके पास सुविधाएं बेहतर हैं जो समृद्ध नहीं है वह किसी तरह गुजर बसर करता है. आजादी की 70वीं सालगिरह पर दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने राजधानी में रहने वाले हजारों उन माता-पिताओं को यह आजादी दी है कि अब वह अपने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों से निकालकर आधुनिक चमचमाते सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दे सकें.दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने अभिभावकों को दी बेहतर शिक्षा की आजादीदिल्ली में सरकारी स्कूलों की हालत अब बदलने लगी है. इस स्वतंत्रता दिवस पर राजधानी के सरकारी स्कूलों ने दिल्ली के अभिभावकों को अपने बच्चों को मुफ्त में बेहतर शिक्षा की आजादी दी है. दिल्ली सरकार का दावा है कि अब तक हजारों बच्चे निजी स्कूलों से नाम कटवाकर सरकारी स्कूलों में दाखिला ले चुके हैं. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इस बदलाव के पीछे वजह क्या है.

यह दिल्ली के रोहिणी इलाके के सेक्टर 21 में बना राजकीय सर्वोदय विद्यालय है. इसी साल अप्रैल में नए बनकर तैयार हुए 18 सरकारी स्कूलों में से इस विद्यालय में लगभग 1200 बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन जो तस्वीर सबसे दिलचस्प है वह यह कि इन 12 बच्चों में से लगभग 900 बच्चे वह हैं जो अप्रैल के पहले तक रोहिणी और इसके आसपास के इलाकों में बने निजी स्कूलों में पढ़ते थे लेकिन इस साल इन 900 बच्चों ने निजी स्कूलों से नाम कटवाकर सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है. सुनने में यह नामुमकिन सा लगता है लेकिन राजधानी के सरकारी स्कूलों ने इस नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया है. नई शानदार इमारत किसी भी निजी स्कूल को टक्कर देती है. आधुनिक क्लास रूम और बेहतरीन सुविधाएं इन बच्चों को यह एहसास नहीं होने देती कि अब वह किसी निजी स्कूल में पढ़ते हैं या फिर अवधारणा में बदनाम सरकारी स्कूलों में.

स्कूल के प्रधानाचार्य डॉ सुखबीर यादव के मुताबिक लगभग 900 बच्चों ने इस नए सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है जो अब तक निजी स्कूलों में पढ़ते थे. सरकार ने बेहतर स्कूल दिए हैं और हम इन स्कूलों में बेहतर शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं.

निजी स्कूलों जैसी यूनिफार्म यूनिफॉर्म पर बना लोगो सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले इन बच्चों को भी एक आत्मविश्वास दे रहा है. लेकिन उस कारण को भी जानना जरूरी है कि आखिर यह आजादी आम आदमी के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है. निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में दाखिला लेकर पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र का मानना है कि निजी स्कूलों द्वारा ली जाने वाली भारी भरकम फीस उनके माता-पिता के लिए सिरदर्द बनी थी.

लेकिन क्या आर्थिक तंगी के चलते बच्चों की अध्ययन की गुणवत्ता से समझौता किया गया? ज्यादातर छात्र इस तरह से सहमत हैं और कहते हैं कि उन्हें इन सरकारी स्कूलों में वही ताली मिल रही है जैसी पिछले स्कूलों में मिलती थी.

स्कूली छात्र-छात्राओं ने बताया कि इस स्कूल में भी हमें अच्छी शिक्षा दी जा रही है. पढ़ाई-लिखाई निजी स्कूलों के मुकाबले जरा भी कम नहीं है. खेलने-कूदने के अवसर भी यहां ज्यादा मिलते हैं.

बात-बात में ‘आज तक’ की टीम ने इतिहास की कक्षा में बैठे छात्रों से रोम साम्राज्य का इतिहास भी पूछ लिया. देखिए कैसे छात्रों ने झटपट हर सवाल का जवाब दिया.

रोहिणी के सेक्टर 22 में भी इसी साल अप्रैल से नया सरकारी स्कूल शुरू हुआ है. प्राइमरी से लेकर 12वीं तक के सरकारी स्कूल में लगभग 800 बच्चों ने निजी स्कूलों से नाम कटवाकर दाखिला लिया है. दिल्ली सरकार के आंकड़ों कि अगर मानें तो इस साल से शुरू हुए नए आधुनिक स्कूलों में हजारों बच्चों ने निजी स्कूलों से नाम कटवाकर सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है.

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया सरकारी स्कूलों में आने वाले इन छात्रों से बड़े खुश हैं. शिक्षामंत्री कहते हैं कि उन्होंने बच्चों को हर वह बेहतर सुविधाएं देने की कोशिश की है जो कोई निजी स्कूल भी नहीं दे सकता.

सरकारी स्कूलों में क्रांति लाने के केजरीवाल सरकार के दावों में कितनी सच्चाई है यह जानने के लिए ‘आज तक’ की टीम पहुंची दिल्ली के ITO इलाके में बने राजकीय सर्वोदय विद्यालय में. दिल्ली सरकार ने कहा था कि वह प्रथम चरण में दिल्ली के मौजूदा सरकारी स्कूलों में से 54 सरकारी स्कूलों को मॉडल स्कूल बनाने पर काम कर रही है. ITO पर बना राजकीय सर्वोदय विद्यालय उन्हीं मॉडल स्कूलों में से एक है. स्कूल की चौखट पार करते ही एक शानदार इमारत स्वागत करती नजर आती है.

स्कूल के प्रिंसिपल डॉक्टर देवेंद्र ने भी बताया कि उनके स्कूलों में भी इस साल कई बच्चों ने निजी स्कूलों से नाम कटवा कर उनके इस सरकारी स्कूल में दाखिला लिया है. और यहां पर भी जो सबसे बड़ा कारण सामने आया वह था मध्यम वर्ग के सामने चुनौती बनी आर्थिक तंगी थी.

राजकीय विद्यालय, राउज़ एवेन्यू के प्रधानाचार्य डॉक्टर देवेंद्र ने कहा, “हमारे स्कूलों में भी कई बच्चों ने निजी स्कूलों से नाम कटवाकर दाखिला लिया है. निजी स्कूलों की महंगी फीस कई माता-पिता के लिए मुश्किल थी. लेकिन उससे भी जरुरी है सरकारी स्कूलों में वह बेहतरीन सुविधाएं मुहैया कराना जो सरकार कर रही है और हम उन सुविधाओं के साथ बेहतरीन और आधुनिक शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं.”

निजी स्कूलों के महंगे फीस के सामने घुटने टेके अभिभावकों ने बच्चों का नाम सरकारी स्कूलों में तो लिखवा दिया लेकिन कहीं यह मुफ्त शिक्षा की आजादी उनके बच्चों के लिए महंगी तो नहीं है?

इस सवाल का जवाब सिर्फ इस स्कूल की इमारत नहीं बल्कि इसके क्लासरूम देते हैं. बैठने के लिए फाइबर की शानदार बेंच और पढ़ाने के लिए स्मार्ट बोर्ड और कंप्यूटर प्रोजेक्टर देख कर लगता है कि जैसे किसी IIT या आई आई एम के क्लास रूम में बैठे हों. व्यायाम के लिए आधुनिक जिम भी हैं तो प्रतिभा निखारने के लिए पेंटिंग की विशेष क्लासरूम भी. आधुनिक शिक्षा के लिए सबसे जरूरी कंप्यूटर शिक्षा के लिए भी विशेष क्लासरूम है जहां प्रोजेक्टर के जरिए बच्चों को कंप्यूटर सिखाया जाता है. स्किल डेवलपमेंट की शिक्षा के लिए इस स्कूल में पूरा गाइड का कोर्स भी है और उसके लिए विशेष क्लासरूम भी हैं.

दिल्ली की एक हजार से ज्यादा सरकारी स्कूलों में लाखों बच्चे पढ़ते हैं. समृद्ध परिवार ज्यादातर अपने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं क्योंकि सरकारी स्कूलों के को लेकर समाज में अवधारणा ठीक नहीं है. आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर हर आम आदमी को शायद बेहतरीन सुविधाओं की आजादी अब तक नहीं मिल पाई है. दिल्ली में एक रास्ता दिखाया है और यहां पर कम से कम आमदनी वाले मध्यमवर्ग को भी बेहतरीन शिक्षा के मामले में वह आजादी जरूर मिल रही है.

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