गजल का एक युग थीं बेगम अख्तर
नई दिल्ली। शास्त्रीय रागों पर आधारित गजल गायकी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाली विख्यात गायिका बेगम अख्तर के परिचय में उर्दू के अजीम शायर कैफी आजमी की कही यह पंक्ति ही काफी है- ”गजल के दो मायने होते हैं-पहला गजल और दूसरा बेगम अख्तर।” बेगम अख्तर अपनी मखमली आवाज में गजल, ठुमरी, ठप्पा, दादरा और ख्याल पेश कर मशहूर होनेवाली एक सदाबहार गायिका थीं। सात अक्टूबर, 1914 को उत्तर प्रदेश राज्य के फैजाबाद में जन्मीं प्रतिभाशाली कन्या अख्तरी बाई यानी बेगम अख्तर आगे चलकर ‘मल्लिका-ए-गजल’ कहलाईं और पद्मभूषण से सम्मानित हुईं। उनका बचपन का नाम ‘बिब्बी’ था। कुलीन परिवार से ताल्लुक रखने वाली अख्तरी बाई को संगीत से पहला प्यार सात वर्ष की उम्र में थियेटर अभिनेत्री चंदा का गाना सुनकर हुआ। उस जमाने के विख्यात संगीत उस्ताद अता मुहम्मद खान, अब्दुल वाहिद खान और पटियाला घराने के उस्ताद झंडे खान से उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की दीक्षा दिलाई गई। अख्तरी ने 15 वर्ष की बाली उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी। यह कार्यक्रम वर्ष 193० में बिहार में आए भूकंप के पीडिम्तों के लिए आर्थिक मदद जुटाने के लिए आयोजित किया गया था, जिसकी मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कवयित्री सरोजनी नायडू थीं। वह अख्तरी की गायिकी से इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्हें उपहार स्वरूप एक साड़ी भेंट की। उनकी गायकी जहां एक ओर चंचलता और शोखी भरी थी, वहीं दूसरी ओर उसमें शास्त्रीयता और दिल को छू लेने वाली गहराइयां भी थीं। आवाज में गजब का लोच, रंजकता और भाव अभिव्यक्ति के कैनवास को अनंत रंगों से रंगने की क्षमता के कारण उनकी गाईं ठुमरियां बेजोड़ हैं। एजेंसी