मेरी कलम से…
उत्तर प्रदेश का पूर्वी भाग इन दिनों बीमारी और बाढ़ से जूझ रहा है। गोरखपुर व फर्रूखाबाद में इनसेफेलाइटिस और अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से सैकड़ों बच्चे कालकवलिक हो चुके हैं। यह समस्या कोई नई नहीं है। पिछले एक दशक से उत्तर प्रदेश और सीमावर्ती प्रदेश बिहार के कुछ जिलों में यह बीमारी निरंतर भयावह रूप की ओर बढ़ती गई लेकिन इस पर हम कोई खास अंकुश नहीं लगा सके हैं। राजनैतिक गलियारे में पक्ष और विपक्ष के बीच एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हुए राजनैतिक दल जितने गंभीर दिखते हैं उतने समस्या के निदान को लेकर गंभीरता नहीं दिखती। यह सही है कि सभी मामलों में सरकार कई बार नियंत्रण कर पाने में बेबस हो जाती है किंतु अगर गंभीर प्रयास किए जाएं तो समस्या को काफी हद तक कम तो किया ही जा सकता है किंतु हमारे देश और प्रदेश का यह दुर्भाग्य है कि हम समस्याओं के निदान पर दीर्घकालीन योजनाबद्ध तरीके से कार्य नहीं करते बल्कि कोई बड़ी घटना होने के बाद उस पर फौरी तौर से ही तेजी दिखाकर कुछ समय बाद फिर हम उसे भूल जाते हैं। वही हुक्मरान जब सत्ता में होते हैं तो उस समस्या को प्राकृतिक आपदा होने का बहाना करके जिम्मेदारी से बचते रहते हैं लेकिन जब विपक्ष में होते हैं तो सारी जिम्मेदारी सरकार पर थोप कर अपनी राजनैतिक सक्रियता और जनहित के प्रति अपना योगदान प्रदर्शित कर वाहवाही लूटने से बाज नहीं आते।
देश या प्रदेश में जितनी भी पूर्ववर्ती सरकारें रही हैं सबने पूर्वांचल की बाढ़ और इनसेफेलाइटिस जैसी भयावह बीमारी से बचने के लिए कोई दीर्घकालीन योजना बनाकर उस पर अमल नहीं किया जिससे इस समस्या को खत्म न सही कम तो किया ही जा सकता था। गोरखपुर में एम्स बनाने की बात काफी समय से चल रही है कागजी तौर पर इसकी संस्तुति भी हो चुकी है लेकिन लालफीताशाही और राजनैतिक दूरदर्शिता की कमी के कारण समय पर एम्स का निर्माण अभी तक सम्भव नहीं हो सका है, क्योंकि इस बीमारी और बाढ़ से प्रभावित होने वाला वर्ग गरीब और असहाय होने के कारण अपना विरोध भी सशक्त तरीके से दर्ज नहीं करा पाता और होनी की प्रबलता पर अपने को सांत्वना देकर संतोष कर लेता है। गोरखपुर से पूर्व सांसद और वर्तमान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ इनसेफेलाइटिस बीमारी से होने वाली बालमृत्यु से हमेशा द्रवित दिखते थे और देश की संसद में उन्होंने कई बार इस मामले को बहुत गंभीरता से उठा कर इस समस्या की ओर देश का ध्यान आकृष्ट किया किन्तु अब सत्ता की कमान उनके हाथ में है। राजनीति में जनसेवा का उनका संकल्प और गोरक्षापीठ के पीठाधीश्वर होने के नाते जनसेवा का उनका अनुभव देखते हुए सभी लोगों को उनसे यह उम्मीद है कि वह पूर्वांचल के विकास और इस बीमारी पर नियंत्रण के लिए कोई दीर्घकालीन योजना बनाकर समस्या को जड़ से मिटाने का कार्य करेंगे। अगर वे ऐसा कर पाने में सफल होते हैं तभी प्रदेश और पूर्वांचल के लोगों में वे अपनी कथनी और करनी में एक रूपता साबित कर पाएंगे। अभी तक के अल्पकालीन शासनकाल में प्रदेशवासियों के दिल और दिमाग पर उनकी एक संत और ईमानदार व्यक्तित्व की छवि रही है जिसे वे सख्त प्रशासन और जनहित की समस्याओं पर ईमानदारी से अमल करते हुए सकारात्मक परिणाम लाकर दिखाने होंगे, तभी वे प्रदेश में जननायक के रूप में स्थापित हो सकेंगे, क्योंकि घोषणाएं करना तो सभी राजनैतिक दल और नेताओं का सगल रहा है किन्तु प्रयासों को परिणाम में परिवर्तित करने वाला ही नायक बन पाता है।