दस्तक-विशेष

बाढ़ ही बाढ़

-दिलीप कुमार

बिहार हर साल बाढ़ का कहर झेलता है। सैकड़ों जाने जाती हैं। अरबों-खबरों का नुकसान होता है। इसके बाद भी इसके स्थायी समाधान की दिशा में कोई कार्य नहीं किया जा रहा है। इस साल आई बाढ़ ने तो कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। बाढ़ की यह त्रासदी नेपाल से आने वाले पानी से तो है ही, प्रकृति के साथ खिलवाड़ भी इसमें कम जिम्मेदार नहीं है। हम सिर्फ अपने हित की सोचते हैं। नदियां अविरल बहें, इसकी फिक्र तक नहीं। उसके साथ हम लगातार खिलवाड़ करते रहते हैं। बांध बनाने के साथ ही उसकी धारा को मोड़ते हैं। अपने साथ हो रहे खिलवाड़ का परिणाम ही है कि जब नदियां इसका बदला लेती हैं तो प्रलय के रूप में सामने आता है। बिहार में आजकल यही दिख रहा है। यहां का आधा से अधिक क्षेत्रफल बाढ़ की मार झेल रहा है। लाखों लोग बेघर हो चुके हैं।

बिहार में बाढ़ से 400 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। यह संख्या और भी अधिक हो सकती है, क्योंकि कई का अभी पता नहीं है। और फिर सरकारी आंकड़ा तो कम ही दिखाया जाता है। वैसे बाढ़ से बिहार के 19 जिले प्रभावित हैं। इससे एक करोड़ 58 लाख 30 हजार आबादी प्रभावित है। इनमें से अधिकतर के आशियाने तो बाढ़ में डूब गए हैं। वे शरणार्थी बन गए हैं। पानी उतरेगा तब वे अपना आशियाना बनाने के लिए फिर वहां पर जाएंगे। इनमें से अधिकतर तो ऐसे हैं, जिनके घर पक्के नहीं हैं। घास-फूस की झोपड़ी या फिर एस्बेस्टश का घर। इन्हें सरकार से कोई मुआवजा तक नहीं मिलने वाला है। फिर वे अपना आशियाना फिर कैसे बनाएंगे, समझा जा सकता है।

बिहार में बाढ़ से प्रदेश के 19 जिले किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सीतामढी, शिवहर, समस्तीपुर, गोपालगंज, सारण, सीवान, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा और खगड़िया प्रभावित हैं। बचाव के लिए एनडीआरएफ की 28 टीम 1152 जवानों और 118 वोट के साथ, एसडीआरएफ की 16 टीम 446 जवानों और 92 बोट के साथ और सेना की 7 कालम 630 जवानों और 70 बोट के साथ बचाव और राहत कार्य में जुटी है। इसके बाद भी इसकी विभीषिका न तो कम है और न ही राहत कार्य पूरी तरह से पूर्ण। वैसे राज्य सरकार की तरफ से बाढ़ में घिरे लोगों को सुरक्षित निकाले जाने का कार्य युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार अब तक 766357 लोगों को बाढ़ प्रभावित इलाके से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है। 696 राहत शिविरों में 229097 व्यक्ति शरण लिए हुए हैं। कई जगहों पर टेंट सिटी भी बनाई गई है। बाढ़ की विभीषिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुजफ्फरपुर शहर तक में इसका प्रकोप रहा। इसके आधे से अधिक वार्ड बाढ़ के पानी में डूबे रहे। स्थिति इतनी खराब हो गई शहर में नाव तक चलाने की व्यवस्था करनी पड़ी। इसी तरह का हाल अन्य जिलों के शहरी इलाकों का है। बाढ़ की भीषण त्रासदी के बीच पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के दौरे पर आए। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई दौरा किया। स्थिति देखते हुए इस त्रासदी पर दुख जताया। 500 करोड़ रुपये देने की घोषणा की। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश ने जितना मांगा था, उसके मुकाबले यह उंट के मुंह में जीरा के समान ही है, लेकिन संतोष की बात यह है कि प्रधानमंत्री ने और मदद देने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि इस आपदा में केंद्र सरकार पूरी तरह से बिहार के साथ खड़ी है।

क्या हैं बाढ़ के कारण

वैसे देखा जाए तो यह पहली बार नहीं है जब बिहार बाढ़ की समस्या से जूझ रहा है। बिहार में बाढ़ के पीछे पांच बड़ी वजहें हैं। पहली बाढ़ प्रभावित इलाकों में हो रही भारी बारिश है। दूसरी वजह नेपाल में हो रही बारिश। तीसरी वजह बारिश की वजह से नदियां उफान पर हैं। चौथी वजह नदियों में पानी भरा तो नेपाल ने अपना पानी छोड़ दिया। और पांचवीं वजह बारिश से पहले से नदी-नालों में पानी भरा होना था। नालों की सफाई नहीं होने से वे बाढ़ के पानी के साथ उफना गए। और कहर बनकर आम जनता पर टूटे।

कोसी का कहर

गौरतलब है कि बिहार में जो हर साल बाढ़ आती है, उसमें नेपाल से आए पानी का सबसे बड़ा हिस्सा होता है। इस बार भी कोसी इलाके में जो बाढ़ आई है, उसकी सबसे बड़ी वजह नेपाल का पानी ही है। सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिंया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, फारबिसगंज और इससे सटे आसपास के जिले इस वक्त कोसी में आई बाढ़ की चपेट में है। कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। करीब हर साल इसमें बाढ़ आती है और पूरा कोसी इलाका उसकी चपेट में आ जाता है। खास बात है कि बिहार के इस शोक की उत्पति बिहार से नहीं होती है, बल्कि नेपाल से होती है। वह वहां से निकलकर बिहार में तबाही मचाती है।

कोसी नदी को सप्तकोसी नाम से भी पुकारा जाता है। दरअसल बिहार में जो कोसी नदी बहती है, उसमें सात नदियों-इंद्रावती, सुनकोसी, तांबकोसी, लिखुखोला, दूधकोसी, अरुण और तामूर नदी का जल मिला रहता है। बरसात के मौसम में नेपाल के तराई वाले इलाकों में भारी बारिश होती है। उस बारिश की वजह से कोसी की सहायक सातों नदियों का जल उफान पर होता है। यहीं से बिहार के बाढ़ का नेपाल कनेक्शन शुरू होता है। कोसी नदी नेपाल के हिमालय से निकलकर भीमनगर के रास्ते बिहार में दाखिल होती है। यहां पर कुछ और छोटी नदियों के साथ इसका संगम होता है और आखिर में ये भागलपुर के पास गंगा नदी में मिल जाती है। कोसी का नेपाल से गंगा नदी का सफर आम दिनों में सामान्य होता है, लेकिन बरसात के दिनों में कोसी की धारा की रफ्तार 150 मील प्रति घंटे से भी ज्यादा तेज हो जाती है। नदी के तेज बहाव की वजह से आसपास के इलाके की क्या हालत होती है, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

कोसी के कहर से बिहार को बचाने के लिए 1954 में भीमनगर बांध बनाया गया था, लेकिन अब तक का यही अनुभव रहा है कि ये बांध भी कारगर नहीं है। दरअसल इस बांध में ज्यादा पानी जमा रखने की क्षमता नहीं है। बरसात के मौसम में जैसे ही बांध में पानी क्षमता से ज्यादा होता है, बांध के 52 दरवाजे जरूरत के हिसाब से खोल दिए जाते हैं। भीमनगर बांध की क्षमता बढ़ाने और इसके रखरखाव को लेकर भारत और नेपाल के बीच कई बार बात हुई। समझौते भी हुए, लेकिन कुछ खास काम नहीं हो पाया है। सच तो ये है कि अगर कोसी के जल को नियंत्रित कर लिया जाए तो बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ को काफी हद तक काबू किया जा सकता है। 

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