दस्तक-विशेष

क्या हुड्डा कहेंगे कांग्रेस को अलविदा?

चंडीगढ़ से जगमोहन ठाकन

अगस्त माह के भारत छोड़ो व भारत जोड़ो के नारों के बीच हरियाणा के वर्ष 2004 से 2014 तक लगातार दो पारियों में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे भूपेंदर सिंह हुड्डा की हाल में प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी से हुई मुलाकात ने हरियाणा की राजनीति को एक नई सरगर्मी प्रदान कर दी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि इस मुलाकात से नए समीकरण बनने तय हैं और हुड्डा कभी भी कांग्रेस को अलविदा कह सकते हैं। विरोधी पार्टी इनेलो मानती है कि हुड्डा को जेल जाने का भय उन्हें भाजपा की शरण में जाने को बाध्य कर रहा है। दूसरी तरफ खुद हुड्डा इस मुलाकात को केवल शिष्टाचार भेंट बता रहे हैं। कुछ राजनैतिक विश्लेषक इसे हुड्डा का पार्टी हाई कमांड पर दवाब बनाने का एक तरीका मात्र मान रहे हैं।

क्या है विवाद

अभी सत्रह अगस्त को संसद के सेंट्रल हाल में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भूपेंदर सिंह हुड्डा तथा प्रधान मंत्री नरेंदर मोदी के मध्य एक मुलाकात हुई थी। इसे हाल की दूसरी भेंट बताया जा रहा है। सियासी पारा तब एकदम उछाल खा गया जब हुड्डा समर्थक कांग्रेसी विधायक जय तीर्थ दहिया ने अपने बयान में कहा कि मोदी-हुड्डा की मुलाकात महज शिष्टाचार भेंट नहीं है, बल्कि इसके कई राजनैतिक मायने हैं। भाजपा को एक कद्दावर जाट नेता की जरूरत है। मुझे लगता है सेंट्रल हाल की यह मीटिंग एक महत्वपूर्ण मीटिंग है। राजनीति में कुछ भी संभव है। जिस तरह से हमारी पार्टी हमारे साथ बिहेव कर रही है, हमारी बात को अनसुना किया जा रहा है। हम प्रदेश पार्टी का अध्यक्ष बदलवाना चाहते हैं, पार्टी हमें केवल आश्वाशन दे रही है। प्रदेश में संगठन कमजोर चल रहा है, हुड्डा जैसा नेता आये। हम हुड्डा साहब के साथ हैं, पूरा विधायक दल हुड्डा साहब के साथ है। दहिया के इस बयान को राजनीतिक गलियारों में हुड्डा के विचार का ही प्रतिबिम्ब माना जा रहा है।
19 अगस्त को चंडीगढ़ स्थित प्रदेश के मुख्यालय में मीडिया से रूबरू हुए प्रदेश पार्टी अध्यक्ष तंवर ने स्पष्ट कहा कि यह मामला पार्टी हाई कमान तक जाएगा। दहिया ने यह बयान किसके इशारे पर दिया है, इसकी भी जांच होनी चाहिये। प्रदेश अध्यक्ष को बदलने के बारे में हुड्डा समर्थक विधायकों द्वारा की गयी मांग पर टिप्पणी करते हुए तंवर ने कहा कि अध्यक्ष बदलना या ना बदलना, इसका फैसला केन्द्रीय नेतृत्व को करना है, परन्तु विधायक दहिया ने जिस तरह का बयान दिया है, उससे स्पष्ट है कि वे किसी के इशारे पर बोल रहे हैं। कांग्रेस में हुड्डा विरोधी गुट ने भी दहिया के बयान पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। पूर्व मंत्री कैप्टेन अजय सिंह यादव ने दहिया के बयान को अनुशासनहीनता मानते हुए कहा है कि उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। हुड्डा को भी आड़े हाथों लेते हुए कैप्टेन ने कहा कि हुड्डा प्रधान मंत्री नरेंदर मोदी के साथ दो बार मुलाकात करने का आशय स्पष्ट करें।

क्या कहता है हुड्डा पक्ष

पूर्व विधान सभा स्पीकर तथा वर्तमान में हुड्डा समर्थक विधायक कुलदीप शर्मा कहते हैं कि प्रदेश की जनता भाजपा सरकार से तंग आ चुकी है और बदलाव चाहती है तथा कांग्रेस की सरकार लाना चाहती है, परन्तु इसके लिए पार्टी को अपना नेतृत्व बदलना होगा। प्रान्त में कांग्रेस को सर्जरी की जरुरत है। इन्तजार किया जा रहा है कि पार्टी हाई कमांड यह सर्जरी कब करने जा रही है। एक अन्य हुड्डा समर्थक विधायक करण सिंह दलाल को मलाल है कि तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी हाई कमांड उनकी सुनवाई नहीं कर रही है। पूर्व मुख्य संसदीय सचिव रण सिंह मान प्रश्न पूछते हैं कि आखिर हुड्डा विरोधियों को क्यों तकलीफ हो रही है? अगर देश के प्रधान मंत्री मोदी स्वयं हुड्डा को कद्दावर नेता मानते हुए खुद उनसे मिलने जायें तो इसमें हुड्डा का क्या कसूर है?
हुड्डा खुद अपनी भेंट को शिष्टाचार भेंट बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री से शिष्टाचार के नाते भेंट की थी, पहले भी मुलाकात हुई है और भविष्य में भी होती रहेगी। हुड्डा का यह कहना कि मुलाकात भविष्य में भी होती रहेंगी, अपने आप में काफी कुछ कह जाती है और राजनीति के खिलाड़ी इसे कांग्रेस हाई कमांड तथा कांग्रेस में अपने विरोधी धड़े को हुड्डा की खुली चुनौती भी मान रहे हैं। हुड्डा ने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात के कोई राजनीतिक मायने नहीं हैं। जय तीर्थ दहिया के बयान को हुड्डा उनका निजी विचार मानते हैं।

मुकदमों से डर गए हैं हुड्डा : इनेलो

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी हुड्डा के इस कदम को सीबीआई के मुकदमों से डरकर उठाया गया कदम मानती है। हरियाणा विधान सभा में विपक्ष के नेता तथा ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र अभय सिंह चौटाला कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा अपने ऊपर दर्ज मुकदमों से घबरा गए हैं और जेल जाने के भय से भाजपा की शरण में जा रहे हैं। अभय सिंह चौटाला ने कहा कि वह पहले भी कह चुके हैं कि हुड्डा अपना अलग राजनीतिक दल बनायेंगे, परन्तु वर्तमान हालात से लगता है कि वे भाजपा में जाएंगे। उल्लेखनीय है कि हुड्डा पर नेशनल हेराल्ड अखबार की कंपनी ए जे एल तथा राबर्ट वाड्रा जमीन मामले में मुख्यमंत्री पद के दुरुपयोग के केस चल रहे हैं और हुड्डा को उनकी ही पार्टी के कुछ लोग इन मामलों की आड़ में कांग्रेस का मुख्य चेहरा बनने की राह में रोड़े अटका रहे हैं ताकि इस आधार पर उनका खुद का मार्ग प्रशस्त हो सके।

क्या हो सकता है हुड्डा का अगला कदम?

इतना तो तय है कि हुड्डा तथा उसके समर्थकों में हाई कमांड द्वारा अनदेखी की वजह से आक्रोश तो अवश्य है और वे प्रदेश अध्यक्ष तंवर का बार-बार विरोध कर हाई कमांड को यह जताने का प्रयास भी करते रहे हैं, परन्तु तंवर क्योंकि राहुल गांधी के खासमखास होने के कारण ही प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे इसलिए उनका हटना तो तब तक संभव नहीं है जब तक खुद राहुल गांधी ना चाहें। खुद तंवर भी यह एहसास कराते रहते हैं कि अध्यक्ष को हटाना या ना हटाना हाई कमांड के अधिकार क्षेत्र में है। कांग्रेस हाई कमांड के सामने समस्या यह है कि उसके पास प्रदेश में हुड्डा के कद का कोई ऐसा नेता नहीं है जो खुद के अलावा दूसरी सीटों पर प्रभाव रखता हो। हुड्डा अकेले अपने दम पर लगभग पंद्रह सीटों पर कांग्रेस को जीत दिलवा सकते हैं और कुछ अन्य सीटों पर जिता नहीं तो हरवा अवश्य सकते है। वर्तमान अध्यक्ष तंवर का प्रदेश में व्यक्तिगत कोई प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं हो रहा। आज भी कांग्रेस के 17 विधायकों में से 13 को हुड्डा समर्थक माना जाता है। हुड्डा अपनी ताकत का अहसास गत वर्ष हुए राज्यसभा चुनावों में पार्टी हाई कमांड को करा चुके हैं। उस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने इनेलो समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार आर के आनंद को हुड्डा की असहमति के बावजूद वोट देने का फैसला किया था। परन्तु पार्टी हाई कमांड को बहुमत होने के बावजूद यहाँ मुह की खानी पड़ी, क्योंकि आरोप लगे कि पार्टी के हुड्डा समर्थक बारह विधायकों के वोट मतदान के समय अलग स्याही का पेन प्रयोग करने के कारण रद्द हो गए थे, जिसके कारण भाजपा समर्थित उम्मीदवार मीडिया मुगल सुभाष चंद्रा कांग्रेस इनेलो के कुल गणितीय मतों को फेल करते हुए विजयी हुए थे। कांग्रेस हाई कमांड मन मसोस कर रह गयी थी, उसके पास कोई चारा भी नहीं था। राजनैतिक चिन्तक मानते हैं कि कांग्रेस हाई कमांड अपनी इस हार को भूल नहीं पा रही है और अपने तुरुप के पत्तों को शो नहीं कर रही है। परन्तु हुड्डा खुद इस बात को जानते हैं कि अब दोबारा हाई कमांड का विश्वास जीतना मुश्किल है। शायद इसीलिए हुड्डा चाहते हैं कि पार्टी हाई कमांड पर दवाब बनाकर प्रदेश अध्यक्ष पद हथिया लिया जाए ताकि आगामी विधान सभा चुनाव के समय अधिक से अधिक अपने समर्थकों को टिकट बांटी जा सकें।

कुछ राजनीतिक विश्लेषक अभय चौटाला के इस तर्क से भी सहमति रखते हैं कि अपने खिलाफ दर्ज मुकदमों में सॉफ्ट कार्नर पाने हेतु हुड्डा भाजपा से भी सांठ-गांठ कर सकते हैं। हालाँकि सच्चाई क्या है यह तो हुड्डा साहब ही जानते हैं परन्तु मीडिया में ये तर्क भी उठे थे कि प्रधानमंत्री से मुलाकात में हुड्डा के समक्ष तीन रास्ते रखे गए थे। पहला कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना, दूसरा अलग पार्टी बनाकर अपने कट्टर समर्थकों, विशेषकर जाट मतों को कांग्रेस या इनेलो में जाने से रोकना या तीसरा अपने खिलाफ दर्ज मुकदमों का सामना करना। अब हुड्डा साहब यह बिलकुल नहीं चाहेंगे कि अपने आप को मुकदमों के हवाले कर दें, क्योंकि सत्ता की ताकत का उन्हें बखूबी एहसास है और यह भी उदाहरण सामने है कि प्रदेश के एक पूर्व मुख्य मंत्री पहले से ही अपने पूर्व सांसद बेटे समेत जेल में बैठे हैं।
कांग्रेस से हटकर अलग से अपनी पार्टी बनाकर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाना मात्र स्वप्न के समान है। पूर्व में कांग्रेस को छोड़कर गए पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंदर सिंह, चौधरी बंसीलाल तथा राजनीति के पीएचडी कहलाने वाले भजन लाल के उतराधिकारी पुन: कांग्रेस के दरवाजे पर ही आस लगाये बैठे हैं। अब हुड्डा के सामने अजीब सी स्थिति पैदा हो गयी है ना कांग्रेस छोड़ते बनती है ना अन्दर रहकर मनमसोस कर घुटन में जीना।

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