उत्तर प्रदेश

प्रधानमंत्री मोदी की ‘सौभाग्य योजना’ को पूरा करना लक्ष्य: सचिन

बाराबंकी। ऊर्जा प्रबंधन एवं आटोमेशन, श्नाइडर इलेक्ट्रिक इंडिया व सचिन तेंदुलकर के बीच आपसी सहयोग से संचालित स्प्रैडिंग हैप्पीनेस इन दीया फाउन्डेशन ने बाराबंकी स्थित बड़ागांव के 350 घरों में 350 सोलर होम लाइटिंग सिस्टम से रोशन किया है। वहीं फाउन्डेशन के किये गये कार्यों का घर-घर जांच-परीक्षण करने के लिये बुधवार को सचिन तेन्दुलकर सहित संगठन के अन्य अधिकारी भी पहुंचे। सचिन तेंदुलकर ने कहा कि भारत सरकार 2022 तक पूरे देश को बिजली देना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सौभाग्य योजना’ के माध्यम से 2018 तक हर घर बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, जिसके तहत गरीबों को मुफ्त व अन्य परिवारों को कम लागत में बिजली कनेक्शन मुहैया करायी जायेगी। प्रधानमंत्री मोदी के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये दीया फाउंडेशन भी गरीबों को बिजली उपलब्ध करायेगी।

उन्होंने बताया कि अबतक फाउन्डेशन के माध्यम से देश के लगभग 12 राज्यों के 5600 से ज्यादा परिवारों में बिजली मुहैया करायी जा चुकी है और 2022 तक दस हजार परिवारों को बिजली पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है। उन्होंने कहा कि दीया फाउन्डेशन के द्वारा उन गरीबों की मदद करना चाहते हैं, जिनके पास भरोसेमंद व किफायती बिजली उपलब्ध नहीं है। फाउन्डेशन के द्वारा किये गये प्रयास मुझे आत्मविश्वास देते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिये प्रेरित करते हैं। हम चाहते हैं कि ग्रामीण भारत को ऊर्जा समाधान उपलब्ध कराने और बिजली पहुंचाकर उनके चेहरे पर मुस्कान आये।

श्नाइडर इलेक्ट्रिक इंडिया के कन्ट्री प्रेजीडेन्ट व प्रबंध निदेशक अनिल चौधरी ने कहा कि बिजली की उपलब्धता एक मौलिक अधिकार हो गयी है। इससे जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिये विभिन्न स्तरों पर काम किया जा रहा है। उपयुक्त उत्पादों और समाधानों के विकास के साथ ही व्यावसायिक प्रशिक्षण में भी निवेश किया जा रहा है, ताकि दूर दराज के इलाकों में इन समाधानों के लिये तकनीकी संसाधनों की आपूर्ति की जा सके। बताया कि हमलोगों के लिये गर्व की बात है कि बड़ागांव के 350 परिवारों को बिजली मुहैया कराने में कामयाब हो गये हैं। उन्होंने बताया कि स्प्रैडिंग हैप्पीनेस इन दीया फाउन्डेशन ने आन डिमांड, स्वच्छ, किफायती व उज्जवल सौर ऊर्जा मुहैया कराती है। इससे बड़ागांव के लोगों को आजीविका में मदद मिल रही है, जो जरदोजी और हथकरघा बुनाई जैसी पारंपरिक कारीगरी पर निर्भर हैं।

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