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इस दिवाली मुख्यमंत्री योगी समेत पूरी सरकार राम के दरबार में झुकाएगी शीश

अयोध्या इस छोटी दिवाली अतीत के घटनाक्रम के अलौकिक आनंद को ही दोबारा प्राप्त नहीं करेगी बल्कि नया इतिहास भी बनाएगी। त्रेता में अयोध्या के जिस प्रवेश द्वार पर वनवास से वापस लौटे भगवान राम का अपने अनुज भरत से मिलन हुआ था। कलियुग में इस बार त्रेता युग की तरह सरयू के तट पर राम और भरत का ही मिलन नहीं होगा बल्कि दो सरकारों के मिलने का भी संयोग घटेगा। राम दरबार में योगी के नेतृत्व वाली पूरी सरकार माथा टेकेगी।
इस दिवाली मुख्यमंत्री योगी समेत पूरी सरकार राम के दरबार में झुकाएगी शीशअयोध्यावासी सरयू नदी में 1.71 लाख दीप प्रवाहित कर उल्लास का संदेश देंगे तो अवधवासियों ने घरों को सजाकर सरकार के इस प्रयास को जीवंत बनाने की तैयारी की है। कलियुग की अयोध्या में त्रेता युग के दर्शन कराने वाले दृश्य ही लोगों को आह्लादित नहीं करेंगे बल्कि नई पीढ़ी को अतीत के महत्वपूर्ण घटनाक्रम आने वाली पीढ़ी के लिए स्मृति पटल में संजोकर रखने का सुअवसर भी देंगे।

पूरा आयोजन होगा तो धार्मिक व संस्कृति के रंग में रंगा हुआ लेकिन इस बहाने कहीं न कहीं यह संदेश देने की भी कोशिश भी दिख रही कि राम मंदिर बनने में भले ही वक्त लग रहा हो लेकिन भाजपा सरकार रामकाज के लिए पूरी तरह समर्पित व संकल्पित है।

विकास को नहीं तरसेगी अयोध्या

यही वजह है कि योगी सरकार ने त्रेता युग में रावण वध के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने वाले दिन अर्थात छोटी दिवाली को यादगार बना देने के लिए सरकार को जुटा दिया है। यह स्वाभाविक भी है।

श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनाकर आज से लगभग तीन दशक पहले श्री राम जन्मभूमि स्थल को भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक बताकर कई प्रमुख संतों को साथ लेकर मंदिर मुक्ति आंदोलन शुरू करने वाले महंत अवैद्यनाथ के शिष्य योगी आदित्यनाथ से यह अपेक्षित भी था।

ऐसा लगता है कि इस बहाने सरकार ने न सिर्फ अयोध्यावासियों बल्कि श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर भव्य मंदिर निर्माण का सपना देखने वाले करोड़ों लोगों को यह भरोसा देने की कोशिश की है कि इस सरकार में अयोध्या विकास को नहीं तरसेगी।

इसीलिए योगी सरकार 133 करोड़ रुपये से ज्यादा की विकास योजनाओं का भी बुधवार को राजा राम सरकार की धरती पर शिलान्यास करेगी। इनके जरिये अयोध्या के विकास को प्रदेश के लिए एक मॉडल बनाने की कोशिश होगी। सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति समर्पण का संदेश देने का प्रयास होगा।

आयोजन के पीछे सियासी संदेश भी

वैसे तो सरकार और भाजपा की तरफ से इस पूरे आयोजन को सांस्कृतिक करार दिया जा रहा है। पर, इसके पीछे कहीं न कहीं सियासी संदेश भी छिपे हैं। जिस तरह त्रेता में भगवान राम व लक्ष्मण सीता के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या लौटने के दृश्य को सजीव करने के लिए हेलीकॉप्टर रूपी पुष्पक विमान से भगवान राम को अयोध्या में उतारने की तैयारी की गई है।

लगभग छह घंटे के अयोध्या प्रवास में उस तरह के तमाम प्रसंग लोगों के सामने दोहराने की तैयारी है। जैसे त्रेता युग भगवान राम की वापसी पर अयोध्या में घटे थे। लेजर शो के जरिये सरयू की नदी में भगवान राम की लीलाओं को दिखाने की योजना है।

रामलीलाओं के मंचन की तैयारी की गई है। यही नहीं, इस पूरे आयोजन को ड्रोन कैमरों में कैद करने की भी तैयारी है। उससे सरकार की मंशा का संकेत मिल जाता है। ऐसा लगता है कि कोशिश यह संदेश देने की है कि अयोध्या व काशी की तरह मथुरा ही नहीं बल्कि हिंदू परंपराओं के अन्य प्रतीक स्थलों को सजाने व संवारने में भी यह सरकार कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।

समझा जा सकता है कि योगी सरकार की यह पूरी कोशिश कहीं न कहीं सांस्कृतिक सरोकारों के सहारे हिंदुत्व को धार देकर सियासी समीकरण भी दुरुस्त करने और लोगों को जोड़ने की है। अयोध्या व फैजाबाद में जिस तरह आम लोग स्वेच्छा से इस आयोजन को भव्यता देेने में जुटे हैं। इससे सरकार की यह कोशिश सफल होती भी दिख रही है।

 

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