मोहब्बत की निशानी है ताज महल. यहां इश्क ही मजहब है और प्यार सबसे बड़ी पूजा. दिल्ली से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर सांवली यमुना के किनारे सफेद संगमरमर से गढ़ी गई इमारत दुनिया का सातवां अजूबा भी है और एक शहंशाह के प्यार की ऐसी दास्तान है जिसका दीदार आज भी हर दिल को धड़कने पर मजबूर कर देता है. लेकिन ताज महल की खूबसूरती की ये कहानी एक विवाद की वजह भी है. विवाद ये कि ताज महल हिंदू इमारत है या मुगलों का ख्वाब?
पहले जानिए वो कहानी जो हम सुनते पढ़ते आ रहे हैं
हमारे और आपके दिलों में बरसों से रची बसी ताज की वो कहानी जो 16 वीं सदी में पांचवे मुगल शासक शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज महल के इश्क से शुरू होती है. इतिहास के पन्नों पर दर्ज ये दास्तान बताती है कि मुमताज महल की मौत के बाद साल 1632 में शाहजहां ने मुमताज महल का ये मकबरा बनवाया और अपनी चाहत को संगमरमर के इस हुस्न में हमेशा के लिए कैद कर दिया. ताज महल को देखने दुनिया भर से जो पर्यटक आते हैं उन्हें यही कहानी जाने कितनी बार सुनाई गई है.
हिन्दू मंदिर भी कहते हैं लोग
ताजमहल के लिए हिंदू संगठनों की ओर से तर्क दिए गए कि संगमरमर की इमारत को साल 1192 में राजा परमार्दिदेव ने बनवाया था. ये इमारत एक मंदिर थी जिसमें अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर शिवलिंग की पूजा होती थी. शाहजहां ने इसे राजपूत राजा मानसिंह के पोते जयसिंह से हासिल किया था. शाहजहां की बेगम मुमताज महल का असली मकबरा बुरहानपुर में था. शाहजहां ने कब्जे के बाद शिव मंदिर को ही मकबरे में बदल दिया था.
ताजमहल मकबरा या तेजोमहालय मंदिर
आखिर क्या है ताजमहल के दरवाजों का रहस्य, आखिर क्या छुपा है ताजमहल के अंदर लगे बंद तालों के पीछे ? जिस दिन ये ताले खुलेंगे बहुत से लोग सदमें में बेहोश ही हो जायेंगे लेकिन यही है बड़ा सवाल आखिर ये दिन आएगा कब ? ताजमहल को लेकर दुनिया भर में चर्चा की जाती रही है लेकिन क्या आप जानते हैं ताजमहल को लेकर उन दफन राजों को लेकर जो आज भी सबसे बड़े रहस्य बने हुए हैं ?
यमुना की धारा ने दफ्न कर दिये राज
दरअसल ताजमहल के दरवाजों में कई रहस्य दफन हैं, और निश्चित रूप से जिस प्रकार विशेषज्ञों ने अपने रिसर्च में ताजमहल को शिव मन्दिर होने की बात कही है, ये बात कहीं न कहीं सही भी हो सकती है… लेकिन ऐसे कोई सबूत सामने नहीं आए हैं जिससे ये पुख्ता किया जा सके की ताजमहल एक मंदिर है। लेकिन ये बात लोगों के सामने आनी भी चाहिए. इतिहासकारों की माने तो जिन रास्तों से मुगल शाहजांह किले से ताजमहल पहुंचते थे, उन दरवाजों को ईंटों से बंद कर दिया गया है. 1980 के दशक तक यहाँ लकड़ी का दरवाजा हुआ करता था और यहाँ यमुना से 18 फीट तक सिल्ट जमा हो चुकी है. जिसको अगर सरकार साफ कराए तो सारे राज सामने आ सकते हैं. साथ ही जो विवाद आज बहस का मुद्दा बन गया है वो भी शांत हो जाएगा। अधिक जाने के लिए देखें ये वीडियो –