आय से अधिक संपत्ति मामले में वीरभद्र को मिली बड़ी राहत
दिल्ली/शिमला: आय से अधिक संपत्ति मामले में हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए राहत भरी खबर है। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इस मामले में वीरभद्र को पेशी से छूट दी है। जानकारी के अनुसार मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सीएम पक्ष की ओर से हिमाचल विधानसभा चुनाव को देखते हुए पेशी से छूट मांगी गई थी, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया। वहीं, सीबीआई से मामले की चार्जशीट से जुड़े दस्तावेज भी वीरभद्र ने मांगे थे, जिनमें से कुछ दस्तावेज उनको मिले हैं।
अब 30 नवंबर को पटियाल हाउस कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होगी। पहले भी 31 अक्टूबर तक टाल दी थी कोर्ट ने मामले की सुनवाई कोर्ट ने इस दौरान जहां सीबीआई द्वारा दायर की गई चार्जशीट के दस्तावेजों की पड़ताल की, वहीं वकीलों द्वारा पेश की गई दलीलों के बाद मामले की सुनवाई 30 अगस्त के लिए निर्धारित की थी। 30 अगस्त को जब सुनवाई हुई तो कोर्ट ने इस मामले की डेट 31 अक्टूबर तक टाल दी। क्योंकि सीबीआई की दलील थी कि जांच अधिकारी कोर्ट में उपस्थित नहीं हैं, ऐसे में कागजात हैंडओवर नहीं किए जा सकते। इसके चलते कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर तक टाल दी थी। लेकिन अब इस मामले की सुनवाई 30 नवंबर को होगी।
जानिए पूरा मामला
सी.बी.आई. का आरोप पत्र 500 से अधिक पन्नों का है जिसमें दावा किया गया है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह तथा अन्य आय के ज्ञात स्रोत से 10 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति के मामले में फंसे हैं। सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में कहा है कि मुख्यमंत्री ने ये संपत्ति तब अर्जित की जब वे केंद्र के मंत्री थे। साल 2009 से 2012 तक वीरभद्र ने करीब 6.03 करोड़ रुपए अधिक की संपत्ति जमा की थी। ये संपत्ति वीरभद्र ने यूपीए शासन में केंद्रीय इस्पात मंत्री के रूप में अपने और अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर कथित तौर पर एकत्र की। हालांकि वीरभद्र सिंह ने इन आरोपों से इनकार किया है।
आई.पी.सी. की धाराएं 109 (उकसाने) और 465 (फर्जीवाड़ा के लिए सजा) तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों को लेकर वीरभद्र सिंह और 8 अन्य के खिलाफ दाखिल रिपोर्ट में 225 गवाहों और 442 दस्तावेजों का जिक्र है। रिपोर्ट में आरोपी एल.आई.सी. एजैंट आनंद चौहान भी नामजद है जो फिलहाल न्यायिक हिरासत में है। चौहान को धन शोधन से जुड़े एक अलग मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले साल 9 जुलाई को गिरफ्तार किया था। यह विषय उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को हस्तांतरित कर दिया था, जिसने 6 अप्रैल, 2016 को सी.बी.आई. को वीरभद्र को गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया था और उन्हें जांच में शामिल होने का आदेश दिया था।