झींगे और मछलियों के अनुकूल नहीं रहे अंडमान-निकोबार
नई दिल्ली : अंडमान एवं निकोबार से एकत्रित जलीय जंतुओं को रोग-मुक्त नहीं माना जा सकता। अब तक अंडमान एवं निकोबार को भारत की मुख्य भूमि की अपेक्षा मछलियों और झींगे के रोगों के लिहाज से अधिक सुरक्षित माना जाता था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में पाई जाने वाली झींगे की पीनियस मोनोडोन प्रजाति में आइएचएचएनवी वायरस पाया है। यहां पाए जाने वाले झींगों के नमूनों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार अब अंडमान एवं निकोबार से एकत्रित जलीय जंतुओं को रोग-मुक्त नहीं माना जा सकता। इसलिए वहां पर मत्स्य पालन को बढ़ावा देने से पहले उन्हें रोगों से मुक्त करने के लिए एक मजबूत एवं विशिष्ट निगरानी प्रक्रिया को लागू किया जाना जरूरी है। अध्ययन के दौरान मायाबंदर, दुर्गापुर, कैंपबेल-बे, लक्ष्मीपुर, लोहाबैराक, बेतापुर, वंडूर, येर्राटा और जंगलीघाट समेत अंडमान-निकोबार के नौ स्थानों से झींगों के नमूने एकत्रित किए गए थे। इनमें फेनेरोपीनियस इंडिकस, पीनियस मोनोडॉन, पीनियस मर्गिन्सिस और मेटापीनियस मोनोसीरोस प्रजातियों के 175 नमूने शामिल थे, जिन्हें अगस्त, 2015 से मार्च 2016 के दौरान एकत्रित किया गया था। इसके बाद पॉलिमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) नामक डीएनए संवर्धन की तकनीक से नमूनों का विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष निकाले गए हैं।
अध्ययनकर्ताओं में शामिल डॉ. के. सारावणन के मुताबिक, समृद्ध जैव विविधता और अनुकूल पारिस्थितिककी तंत्र के कारण अंडमान एवं निकोबार को जलीय जंतुओं के लिए अच्छा माना जाता था, लेकिन अध्ययन के बाद ऐसा नहीं लगता। उनके मुताबिक, अंडमान एवं निकोबार की इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से नजदीकी भी इसका कारण हो सकती हैं, क्योंकि इन देशों में संवर्धित एवं वाइल्ड पीनियस मोनोडोन की प्रजातियों में यह संक्रमण पाया जाता है। निकोबार द्वीप के करीब होने के कारण इन देशों से वायरस के स्थानांतरण का खतरा बना रहता है। अनुवांशिक अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि अब स्पष्ट हो गया है कि अंडमान में झींगों के संक्रमण के लिए जिम्मेदार आइएचएचएनवी भारत की मुख्य भूमि समेत वियतनाम, चीन, ऑस्ट्रेलिया, ताईवान, मिस्न, इक्वाडोर और अमेरिका में पाए जाने वाले रोगजनक वायरस से अलग नहीं है। पोर्ट ब्लेयर स्थित इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट और चेन्नई स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिशवाटर एक्वाकल्चर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका करेंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। भारत, चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा झींगा उत्पादक देश है, लेकिन संक्रामक रोग झींगा उत्पादन के लिए सबसे बड़ा खतरा माने जाते हैं। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के कई हिस्सों को झींगा उत्पादन के तेजी से उभरते क्षेत्रों में शुमार किया जाता है, लेकिन अब तक झींगा मछली के संवर्धन को यहां व्यावसायिक उद्यम के रूप में बढ़ावा नहीं दिया गया है।