उत्तराखंडराज्य

पीड़ा के ग्रामीणों ने बंजर जमीन पर फसल लहलहाकर हरी पीड़ा

पलायन की मार झेल रहे पौड़ी जिले की एक तस्वीर में भले ही बंजर खेत और घरों की देहरी तक पहुंच रहे हिंसक जीव नजर आते हों, लेकिन इसी जिले की एक सुखद तस्वीर भी है। जिसकी बानगी जयहरीखाल ब्लाक के ग्राम पीड़ा में देखी जा सकती है। गांव के बंजर हो चुके खेतों में आज लेमनग्रास व तेजपात की फसल लहलहा रही है। गांव के 73 काश्तकारों ने पारंपरिक खेती को छोड़ अपने खेतों में लेमनग्रास व तेजपात की खेती कर इससे अपनी आर्थिकी को बेहद मजबूत कर दिया है।पीड़ा के ग्रामीणों ने बंजर जमीन पर फसल लहलहाकर हरी पीड़ा

पीड़ा गांव में कृषि क्रांति की शुरुआत वर्ष 2012 में तब हुई, जब ग्रामीण वीरेंद्र सिंह रावत ने कृषि महकमे के सहयोग से अपने खेतों में मिश्रित दालों व सब्जी का उत्पादन शुरू किया। हालांकि, जंगली जानवर पूरी फसल चट कर गए और हासिल शून्य रहा। 

इसके बाद वर्तमान में प्रदेश की बागडोर संभाल रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 14 मार्च 2013 को सगंध पौधा केंद्र सेलाकुई (देहरादून) के वैज्ञानिक नृपेंद्र चौहान के साथ ग्राम पीड़ा के अलावा ग्राम बेवड़ी व चुंडई में काश्तकारों की बंजर भूमि का स्थलीय निरीक्षण किया। निरीक्षण में भूमि को लेमनग्रास व तेजपात की खेती के लिए उपयुक्त पाया गया। 

इस पर काश्तकार वीरेंद्र सिंह रावत ने अपनी 20 नाली भूमि पर लेमनग्रास की खेती शुरू कर दी। परिणाम उत्साहजनक रहे, लिहाजा वर्ष 2014 में सगंध कृषिकरण के लिए कार्ययोजना तैयार कर ली गई। वर्ष 2015 में 26 काश्तकारों ने अपनी करीब छह हेक्टेयर भूमि में लेमनग्रास और 122 कृषकों के लगभग 11 हेक्टेयर भूमि में तेजपात का रोपण किया। 

लेमनग्रास की खेती बहुत अच्छी रही, नतीजा गांव में लेमनग्रास के आसवन के लिए 10 क्विंटल क्षमता का एक आसवन संयत्र स्थापित कर 30 किग्रा तेल प्राप्त किया गया। वर्ष 2016 में इसी कलस्टर में 25 कृषकों की 11 हेक्टेयर भूमि में लेमनग्रास की रोपाई की गई। जबकि, वर्ष 2017 में ग्राम डोबा की बंजर पड़ी करीब चार हेक्टेयर भूमि पर 22 काश्तकारों ने लेमनग्रास की रोपाई की। 

यह है वर्तमान स्थिति 

वर्तमान में पीड़ा कलस्टर से जुड़े 73 काश्तकार लगभग 21 हेक्टेयर भूमि में लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं। इसमें दस हेक्टेयर भूमि में फसल तैयार है और उसकी कटाई कर आसवन किया जा रहा है। आसवन से अब तक करीब 125 किग्रा तेल प्राप्त किया जा चुका है। शेष फसल से भी करीब 325 किग्रा तेल मिलने का अनुमान है। 

यह हो रहा फायदा

वैज्ञानिक नृपेंद्र चौहन बताते हैं कि लेमनग्रास से प्राप्त तेल का बाजार मूल्य एक हजार रुपये प्रति किग्रा है। ऐसे में इस सीजन में प्राप्त तेल की कीमत लगभग 4.5 लाख रुपये होगी। गर्मी में वर्षा होने पर एक हल्की कटाई और की जाएगी, जिसमें लगभग 150 किग्रा तेल निकलेगा। 

ऐसे में दस हेक्टेयर क्षेत्रफल से पूरे वर्ष में छह क्विंटल तेल प्राप्त होगा, जिसकी कीमत करीब छह लाख रुपये होगी। 21 हेक्टेयर में फैले लेमनग्रास से प्रतिवर्ष काश्तकारों को 21 क्विंटल तेल मिलेगा और अगले आठ वर्षों तक काश्तकार इसी खेती से तेल निकाल अपनी आर्थिकी संवार सकते हैं।

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