जीवनशैली
शरीर का ये है अहम तंत्र जिसे, 90 फीसदी लोग नहीं जानते होंगे इसके 10 काम
क्या आप जानते हैं कि आपके शरीर के अंदर एक ऐसा तंत्र काम है, जिसके बारे में 90 फीसदी से ज्यादा लोग नहीं जानते होंगे। ये है शरीर का आंतरिक सुरक्षा तंत्र-लिम्फेटिक ये शरीर में सफाई और स्वच्छता का काम करता है। इसके माध्यम से रक्त का तरल भाग, पोषक तत्वों के साथ सूक्ष्मतम रक्त वाहिनियों से बाहर निकलता है और कोशिकाओं को पोषक तत्व तक पहुंचाकर वापस रक्त वाहिनियों में लौट जाता है।
-इसमें 600 के लगभग क्षेत्रीय लिम्फनोड्स के समूह होते हैं। जैसे बगल में, जांघ में, पेट में, सीने में, गर्दन में व अन्यत्र, जो उस क्षेत्र से लाए गए सॉलिड व लिक्विड वेस्ट का निस्तारण करते हैं। इसमें लिम्फ छनता है और कचरे को छांटकर उनका उपयुक्त निस्तारण किया जाता है।
-इसमें 600 के लगभग क्षेत्रीय लिम्फनोड्स के समूह होते हैं। जैसे बगल में, जांघ में, पेट में, सीने में, गर्दन में व अन्यत्र, जो उस क्षेत्र से लाए गए सॉलिड व लिक्विड वेस्ट का निस्तारण करते हैं। इसमें लिम्फ छनता है और कचरे को छांटकर उनका उपयुक्त निस्तारण किया जाता है।
-शरीर के प्रवेश द्वार, नाक और मुंह के पीछे पांच टॉन्सिल्स (लिम्फनोड्स) का एक पूरा चक्र होता है, जो आने वाले विषैले पदार्थ व कीटाणुओं को रोककर, उनका विश्लेषण कर शरीर को उनके बारे में सूचित करता है। आगाह करता है। उनसे बचाता है।
-आंत की आंतरिक सतह पर भी ऐसे ही लिम्फेटिक सफाई चेक पोस्ट होते हैं। प्रवेश द्वार पर ही नहीं, छोटी आंत के निकास द्वार पर स्थित अपेंडिक्स भी यही कार्य करता है। अपेंडिक्स बेकार अंग नहीं है। यह भी अहम सूचनाएं इकट्ठी करता है।
-लिम्फेटिक में कार्यरत लिम्फोसाइट्स की दो प्रमुख श्रेणियां- ‘बी लिम्फोसाइट्स’ और ‘टी लिम्फोसाइट्स’ होती हैं। अन्य रक्त कोशिकाओं की तरह इनका उद्गम स्रोत भी बोन मैरो होती है। टी लिम्फोसाइट्स विशिष्ट योग्यता प्राप्त करने को ‘थाइमस’ नामक संस्थान में भेज दी जाती है और बी-लिम्फोसाइट्स स्प्लीन और लिम्फनोड्स में। यहां उन्हें प्रशिक्षण देकर अलग-अलग सफाई कर्म की योग्यता दी जाती है।
-स्प्लीन लिम्फेटिक की सबसे बड़ी केन्द्रीय इकाई होती है।
-शरीर के लिम्फ संस्थान में मृत कोशिकाओं, मृत रोगाणुओं आदि के निस्तारण के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं होती हैं।
-लिम्फ शरीर की सफाई व धुलाई ही नहीं करता, वरन अंगों की सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाता है।
-डॉ. गोपाल काबरा