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अनुभवी मोदी पर भारी पड़े युवा राहुल गाँधी

-रहीम खान

भाजपा के हिन्दुत्व की प्रयोगशाला कहे जाने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 का जो परिणाम आया उसने एक बात स्पष्ट कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपराजेय योद्धा नहीं है। उनके खिलाफ योजनाबद्ध रूप से चुनाव लड़ा जाये तो उनके प्रभाव को ध्वस्त किया जा सकता है। यह बात गुजरात में देखने मिली जहां पर 22 साल में सबसे कम सीट 99 भाजपा जीत पाई। उस स्थिति में जबकि प्रदेश में 26 सांसद एवं 110 से ज्यादा विधायक और 3 राज्यसभा सदस्य भाजपा के थे। ऐसी मजबूत स्थिति में राजनीतिक संघर्ष के तौर से गुजरती कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रदर्शन से केवल चौकाया ही नहीं बल्कि यह भी साबित कर दिया कि भविष्य के चुनाव में वह मोदी के जादू को ध्वस्त करने में पीछे नहीं रहेगें। भाजपा अपने ही किले में उस समय मात खाई है जब केन्द्र में भी उसकी सरकार है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी ने 34 रैलियां की, जिसमें 134 सीटें प्रभावित होती है। इसमें 72 में भाजपा जीती जिसका प्रतिशत 54 और कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष सांसद राहुल गांधी ने 30 रैली की जो 120 सीटों को प्रभावित करती थी उसमें 62 में कांग्रेस को जीत मिली जिसका प्रतिशत 52 आता है। यहां लोकसभा 2014 में 165 सीटों पर भाजपा ने बढ़त बनाई थी जिसमें से कांग्रेस ने 80 सीट इस बार जीती है।

इस तरह यह प्रदर्शन यह दर्शाता है कि गुजरात में नरेन्द्र मोदी पर राहुल बहुत भारी पड़ गये। भाजपा के हार्ड हिंदुत्व के खिलाफ कांग्रेस का साफ्ट हिंदूत्व का प्रयास भी सफल रहा और राहुल को मंदिर भ्रमण का लाभ भी मिला। सच ही कहा जाता है कि लोहे को लोहा काटता है। इसलिए कांग्रेस के इस प्रयास को कहीं भी गलत नहीं कह सकते। गुजरात में पाटीदार, पटेल, ओबीसी और आदिवासी वर्ग के वोटों के बीच कांग्र्रेस की घुसपैठ मजबूत हुई है। नोटबंदी जीएसटी, किसानों की समस्या, दलित अत्याचार जैसे गंभीर मुद्दों पर कांग्रेस ने जो कदम बढ़ाए थे उसका लाभ भी उन्हें अवश्य मिला है। गुजरात में प्रतिकूल परिस्थितियों में चुनाव लड़ा था और सम्मानजनक सीटें प्राप्त किया। जबकि पूरा चुनाव का आकलन करें तो यह बात कहने में कोई संकोच नहीं है कि यहां पर जीत धु्रवीकरण की हुई है और विकास हार गया। चुनाव परिणाम से स्पष्ट है कि कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ के दृष्टिकोण से हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाड़ी और अल्पेश ठाकोरा, के साथ मिलकर जिस प्रकार से चुनाव लड़ा उसका लाभ उन्हें मिला है अगर यह गठबंधन आगे भी कायम रहा तो 2019 में जरूर कांग्रेस को अच्छे परिणाम प्राप्त होगें। कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढऩे के साथ सीटें भी बढ़ी जबकि भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा किंतु सीटे बुरी तरह कम है।

संगठन की सर्जरी जरूरी

राहुल गांधी के आक्रमक चुनाव प्रचार, भाषण शैली और आम आदमी के साथ संवाद का ही कमाल था कि आज उनके आलोचक भी उनके प्रदर्शन की प्रशंसा करते हुए गुजरात में प्रभावशील प्रदर्शन का श्रेय उन्हें देने में संकोच नहीं कर रहे है। कांग्रेस पार्टी को वक्त के साथ अपने संगठन की सर्जरी करना अति आवश्यक हो गया है। बुनियादी परिवर्तन के बिना कांग्रेस को आगे के चुनावी वैतरणी पार करना आसान नहीं होगा। अगर उसके खुद के पास कैडर बेस संगठन हो तो उसे दूसरे दलों का सहारा न लेना पड़े। हालांकि जिस दौर से कांग्रेस गुजर रही है। उसमें अगर वह छोटे दलों के सहयोग के साथ चुनावी मैदान में जा रही है तो कोई गलत नहीं है। ऐसे प्रयास हर राजनीतिक दल समय समय पर करते है। 

भविष्य के चुनाव के लिये अभी से तैयारी

कांग्रेस की कमजोरी रही है कि वह चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत बहुत देर से करती है इसमें उसे सुधार करने की आवश्यकता है। आगामी लोकसभा चुनाव 2019 के पहले आठ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होना है। मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा मार्च,2018, कर्नाटक मई,2018, मिजोरम, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ दिसम्बर,18 शामिल है। अत: राहुल गांधी को इन राज्यों की चुनावी तैयारियां जनवरी 2018 से ही कर देनी चाहिये। ताकि चुनाव आते तक वह उस राज्य में मजबूती के साथ खड़ी हो जाये। दरअसल चुनाव के करीब चुनावी तैयारी करने से पार्टी अपनी कमियों के साथ जिस राज्य में चुनाव हो रहे है वहां पर व्यवस्थित समन्जस्य स्थापित करने में पिछड़ जाती है। इसलिये आवश्यक है कि चुनाव लडऩे की जो कार्यप्रणाली है कांग्रेस की उसमें वह योजनाबद्ध परिवर्तन करें। 

रास्ता मुश्किल है पर

राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों के लिये भारतीय राजनीति में पुन: अपने स्वर्णिम दिनों में लौटने का मार्ग बेहद कठिन है परन्तु असंभव नहीं। इसके लिये जरूरी है कि कांग्रेस एक मजबूत रोड मैप बनाकर उसमें काम करे, तो वह मोदी के प्रभाव को आसानी के साथ कम कर सकती है। राहुल के आक्रमक होने के बाद गुजरात चुनाव में कांग्रेस के दमदार प्रदर्शन से निराशा के वातावरण में जीने वाले कांग्रेस नेता और उनके कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास को नई ऊर्जा प्राप्त हुई है। जिसे बनाये रखना होगा ताकि चुनाव के समय कांग्रेस अपने विरोधियों के हर चाल का मुंहतोड जवाब दे सकें। वहीं राहुल को राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के भीतर अनुशासन को मजबूती के साथ बनाये रखना होगा क्योंकि गुजरात चुनाव के मध्य मणिशंकर अय्यर के बेवजह के बयान और अधिवक्ता कपिल सिब्बल के राममंदिर का मसले पर कोर्ट पर दिये गये तर्क को भाजपा ने उठाकर जो प्रचार किया उसका नुकसान भी कांग्रेस को हुआ है।

भाजपा विकास की कितनी ही बात करे परन्तु उसका पूरा फोकश साम्प्रदायिक धु्रवीकरण पर ही होता है और गुजरात में उसने वहीं किया। भले ही चुनाव जीतने के बाद मोदी नारे लगवाये कि जीतेगा भाई जीतेगा विकास जीतेगा। वास्तविकता यह है कि उन्होंने औरंगजेब, खिलजी, पाकिस्तान, अफजल जैसे मुद्दों पर ही रेस करके गुजरात के लोगों की भावना को केस करने का प्रयास किया। कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य अहमद पटेल को अहमद मियां पटेल कहना उनके हिन्दू वोटो का ध्रुवीकरण था। बहरहाल गुजरात से कांग्रेस को जो सकारात्मक एवं रचनात्मक जनसमर्थन जनता की ओर से प्राप्त हुंआ है। उसको संभालकर आंगे बढऩे की बड़ी जिम्मेदारी इस समय राहुल गांधी के कंधों पर है। अगर वह सफलता के इस अभियान को भविष्य में होने वाले विभिन्न राज्यों के चुनाव में जारी रखते है तो 2019 के लोकसभा चुनाव का परिदृश्य वैसा नहीं होगा जैसी भाजपा के द्वारा पाली गई मीडिया प्रोपोगंडा करती है। केन्द्र सरकार की योजनाएं जमीनी स्तर पर बुरी तरह विफल है। मीडिया प्रोपोगंडा के सहारे वह चल रही है। कांग्रेस के पास अभी भी संभलने का वक्त है।

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)

 

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