देहरादून: प्रदेश में इस समय पर्यावरणीय अनुमति (ईसी) और केंद्रीय मृदा विभाग की रिपोर्ट आने के इंतजार में खनन कार्य शुरू नहीं हो पा रहा है। हाल ही में वित्त विभाग की बैठक में संबंधित विभागों ने सरकार से पर्यावरणीय अनुमति दिलाने का अनुरोध किया। वहीं, केंद्रीय मृदा विभाग भी यह स्पष्ट कर चुका है कि वह निजी पट्टों की रिपोर्ट नहीं बनाता है। इसके चलते अब ये मामले फंसते नजर आ रहे हैं।
प्रदेश सरकार ने इस वर्ष नदियों में आधिकारिक खनन के लिए ई-नीलामी व्यवस्था लागू की है, जबकि खडिय़ा यानी सोपस्टोन को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया है। हालांकि, इन सभी पट्टेधारकों के लिए पर्यावरणीय अनुमति लेना अनिवार्य किया गया है। दरअसल, पहले सोपस्टोन में पर्यावरणीय अनुमति की आवश्यकता नहीं होती थी लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के रुख के बाद शासन ने इसमें सख्ती दिखाई है।
वहीं, सरकारी उपक्रमों यानी गढ़वाल मंडल विकास निगम, कुमाऊं मंडल विकास निगम और वन विकास निगम के जरिए भी पट्टों का आवंटन किया जाता है। बीते वर्षों में ये तीनों ही निगम अपने पूरे पट्टे आवंटित करने में सफल नहीं हो पाए हैं। इसका एक कारण इन विभागों के तहत खनन करने वालों को पर्यावरणीय अनुमति मिलने में होने वाली परेशानी बताई गई।
हाल ही में वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने विभिन्न महकमों की राजस्व बढ़ाने को लेकर बैठक आयोजित की थी। जब इसमें खनन की बात आई तो संबंधित महकमों ने सरकार से यह अनुरोध किया कि पर्यावरणीय अनुमति के लिए प्रदेश सरकार पहल करे। हालांकि, इस दौरान इन्हें यह स्पष्ट किया गया कि खनन पट्टों के लिए पर्यावरणीय अनुमति संबंधित पट्टेधारक को ही लेनी पड़ती है।
यह भी माना जा रहा है कि यदि इन पट्टों के आवंटन में आगे भी पेंच फंसता रहा तो संभवत सरकार इसमें इनकी कुछ मदद कर सकती है। वहीं, हरिद्वार में खनन पट्टों को लेकर केंद्रीय मृदा विभाग ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह निजी खनन पट्टों पर रिपोर्ट नहीं देता है। इसके बाद यहां सौ से अधिक पट्टों को लेकर पेंच फंसा हुआ है। इसका मुख्य कारण पट्टेधारकों की लंबित देयता बताया जा रहा है।