कांग्रेस मुक्त वाली सोच का हिमाचल में स्थापित हो जाना
भारतीय संस्कृति में अतिसर्वत्र वर्जयेत का फार्मूला सभी जगह लागू होता हुआ दिखाई देता है, फिर वो राजनीतिक क्षेत्र ही क्यों न हो। कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि आप यदि सीमा से अधिक भोजन कर लेंगे तो वह अपाच्य हो जाएगा और आपके शरीर में विकार उत्पन्न कर देगा, जिससे आप रोगग्रस्त हो जाएंगे। इसी प्रकार सीमा से अधिक समय तक भूखा या प्यासा रहना भी स्वास्थ के लिहाज से नुक्सानदेह होता है। इसी प्रकार बोलचाल में अधिक कड़वाहट आपको लोगों की दृष्टि में हेय बना देती है और यदि आपने जरुरत से ज्यादा मीठा बोला तो भी आप हल्के साबित हो जाते हैं इसलिए कहा जाता है कि जो भी बोलें तोल-मोल के ही बोलें ताकि आगे चलकर आपको शर्मिदंगी का शिकार नहीं होना पड़े। राजनीति में रहते हुए यदि आप इस सूत्र का पालन नहीं करते तो बहुत जल्द आपकी छवि खराब हो जाती है और आप हाशिये पर कर दिए जाते हैं।
दरअसल खास क्या आमजन को भी किसी के भी बड़े बोल नहीं भाते हैं। इसके पीछे अति होने के साथ ही जो सोच काम करती है वह दंभ पालने वाली होती है। इसके लिए कहा जाता है कि आप अपने में दंभ नहीं पालें। कहते हैं जो ईश्वर को पसंद नहीं उसे मानव कैसे पसंद कर सकता है। यही वजह है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को कांग्रेस मुक्त करने की बात कही तो उनके अपने गृहराज्य गुजरात में न सिर्फ कांग्रेस मजबूत होती नजर आई बल्कि राहुल गांधी भी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष स्थापित होते हुए दिखे। उनकी तारीफ में विरोधियों ने भी कोई कमी नहीं रखी। हार-जीत का फैसला मतदाता का रहा इसलिए समझा जा सकता है कि आमजन को ऐसी भाषा नहीं भाती है, क्योंकि इससे दंभ के साथ ही साथ तानाशाही की बू भी आती है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर चुने गए जयराम ठाकुर का यह कहना कि प्रदेश कांग्रेस मुक्त हो गया, इसी श्रेणी में आता है। वैसे कहने को तो जयराम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के ‘मिशन कांग्रेस मुक्त भारत’ को ही आगे बढ़ाने का काम करते दिखते हैं, लेकिन उन्हें यह भी याद रखना होगा कि मोदी और शाह के गृह राज्य में ही कांग्रेस मजबूत होकर उभरी है और पिछले चुनावों की अपेक्षा राहुल के नेतृत्व में इस बार बेहतर परिणाम दिए हैं।
बावजूद इसके यह कहना कि ‘पूरे उत्तर भारत में हिमाचल ऐसा प्रदेश रह गया था जहां सभी लोग भाजपा की सरकार का इंतजार कर रहे थे और इस जीत के साथ हमारा सपना भी पूरा हो गया है और अब यह प्रदेश भी कांग्रेस मुक्त हो गया है।’ एक तरह का दंभ पालने जैसा ही है। इस स्थिति में जबकि आप एक बड़े पद का दायित्व संभालने जा रहे हों तो आपको बड़ा दिल लेकर चलना चाहिए और उसमें सभी के लिए जगह रखनी चाहिए। चूंकि लोकतांत्रिक सरकार के मुखिया के तौर पर आप मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं तो आपको चाहिए कि विरोधियों को भी उतना ही सम्मान दें जितना कि अपनी पार्टी के सदस्यों को देते हैं। विरोध को सिरे से नकारना और उन्हें कुचलने जैसी आक्रामकता दिखाना लोकतंत्र का अपमान करने जैसा ही है, जिसे विरोधी पार्टीनेता लगातार कह रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति देश की राजनीति में बेहतर नहीं है, लेकिन यह कहना कि देश कांग्रेस मुक्त होने जा रहा है सही नहीं होगा। दरअसल यह फैसला जनता-जनार्दन का होता है कि वह सत्ता की डोर किसके हाथ में देती है और किसे विपक्ष में बैठा कर सरकार के काम-काज का आंकलन करते हुए उस पर गहरी नजर रखने का काम देती है। इसे एक ईमानदार सेवक की तरह ही निभाना चाहिए, न कि खुद को बादशाह समझ अहम वाले बयान देने लगें। सभी को कुचल देने जैसे दंभ वाले बयानों से पहले तो परहेज किया जाना चाहिए और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा देश लोकतांत्रिक है जिसका असली मालिक आमजन ही है और जनादेश जो आता है उसे मानना नेताओं का कर्तव्य होता है। ऐसे में खुद को राजा साबित करने वाली सोच प्रथम सेवक होने की परिपाटी को तोड़ती नजर है।
अंतत: जहां तक जयराम के अहम का सवाल है तो वह उनमें होना लाजमी है क्योंकि उन्होंने केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए मुख्यमंत्री की दौड़ जीतने जैसा कठिन काम किया है। यही वजह है कि शिमला में हुई विधायक दल की बैठक के बाद केंद्रीय पर्यवेक्षक नरेंद्र तोमर ने विधायक दल के नेता के तौर पर जैसे ही जयराम के नाम की घोषणा की, वैसे ही उन्होंने प्रदेश को कांग्रेस मुक्त जैसा बयान देकर अपने ही करीबियों को चेता दिया कि अब जो होगा वह उनकी अपनी मर्जी से ही होगा। वैसे भी जयराम पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं, ऐसे में वो बेहतर जानते हैं कि उनका राजनीतिक दोस्त कौन साबित होने वाला है और कौन दुश्मन। यह अलग बात है कि जयराम के नाम का प्रस्ताव प्रेम कुमार धूमल ने किया, लेकिन इस दौड़ में तो वो भी शामिल थे। इससे पहले जेपी नड्डा का नाम भी सामने आया और समर्थकों के बीच खींचतान और झड़पें भी हुईं। यही नहीं बल्कि हद तो यह रही कि केंद्रीय मंत्री नड्डा को मुख्यमंत्री बनाने पर कुछ विधायकों ने उनके लिए अपनी विधानसभा सीट खाली करने तक का ऑफर दे दिया। ऐसे में जयराम के नाम पर मोहर लगना केंद्रीय नेतृत्व का उनके सिर पर हाथ होने जैसा ही है। इसलिए भी उन्हें गुरुर आया होगा। इसलिए कहा गया कि उनके बयान को अहम से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, लेकिन यदि वाकई उनकी भी सोच कांग्रेस मुक्त वाली बन गई है तो यह उनकी दंभ की पराकाष्ठा ही होगी, जिसे सही नहीं कहा जा सकता है।
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)