दिल्ली में शीत लहर बढ़ने के साथ ही तापमान लगातार गिर रहा है जिससे सांस लेने संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। डाक्टरों का कहना है कि अस्पतालों और क्लीनिक में मरीजों की संख्या में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। मरीजों को सांस लेने में कठिनाई हो रही है और छाती में भी तनाव दिखाई दे रहा है। अस्थमा के रोगियों को ज्यादा समस्या हो रही है। दिल्ली में तापमान गिरने के कारण सांस की एलर्जी, इंफेक्शन की स्थीतियों के कारण मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है। वीरवार को दिल्ली में न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया है। मूलचंद अस्पताल के मेडिकल विभाग के सलाहाकार डा.श्रीकांत शर्मा ने कहा कि बहुत से लोग छाती में तनाव जैसे लक्षणों की शिकायतों के साथ हमारे पास आ रहे हैं। इस सप्ताह सांस लेने में कठिनाई महसूस करने वालों की संख्या भी काफी बढ़ी है। वास्तव में दिवाली के बाद कुछ सप्ताहों को छोड़कर ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वायु प्रदुषण भी काफी खतरनाक स्थिती में है। सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ एलर्जी के मामले बढ़े जिससे खंसी, थकावट, लंग इंफेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, थकावट, डायबिटीज,दिल के रोगों में वृद्धि हुई जहां तक के कुछ के फेफड़े भी खराब हुए। आमतौर पर व्यक्ति एक मिनट में 15 बार और एक घंटे में 900 बार सांस लेते हैं। प्रदुषण का स्तर अधिक होने से स्वास्थ पर गंभीर बिमारियों का प्रभाव हो सकता है।
बीएलके सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल के मेडिकल विभाग के डा. आरके सिंघल ने कहा कि सांस की बिमारियों के अलावा वायु प्रदुषण से सल्फर ऑक्साइड,एनाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड के अधिक होने से बिमारियां बढ़ती हैं जिससे वायरस और बैक्टीरिया इंफेक्शन का खतरा बझ़ जाता है। जब प्रदुषण का स्तर अधिक होता है तो फेफड़े के रोग से पीड़ित लोग ही केवल इससे प्रभावित हीं नहीं होते बल्कि हर व्यक्ति गले की समस्या, नाक का बंद होने और आंखों में जलन होने की शिकायत करते हैं। बच्चे अधिक नाजुक होते हैं क्योंकि वे वयस्कों की तुलना में तेजी से सांस लेते हैं और उनका वजन भी कम होता है। अधिक तेजी से सांस लेने से उनके सांस की नली, फेफड़े अत्याधिक को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा बच्चों को अपने मुख के जरिए सांस लेना पड़ता है क्योंकि अधिक प्रदुषण से हवा दुषित हो जाती है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ओर मेडिकल साइंस के डा. जीसी खिलनानी का कहना है कि ऐसे लक्षण लंबी अवधि तक रहते हैं और नियमित इलात का उनपर शिर्घ प्रभाव नहीं होता। डाक्टरों की सलाह है कि जब वाहन में यात्रा करें तो खिड़कियों को पुरी तरह से बंद करें। जब ठंड के कारण प्रदुषण चरण सीमा पर होता है तो बाहर जाने के समय मास्क का इस्तेमाल करें। कड़ी गतिविधियों करें जिससे फेफड़ों में असर न पड़े।