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यूपी में शीतलहर का कहर, अप्रैल तक ठंड पड़ने के आसार
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उत्तर प्रदेश में नव वर्ष 2018 के आगमन के पूर्व से ही कड़ाके की ठंड ने दस्तक दे दिया। पहाड़ों में विशेषकर, जम्मू-कश्मीर में हुई बर्फबारी के चलते कानपुर, लखनऊ आदि शहरों में 4 जनवरी 2018 से चली शीतलहर ने शहरवासियों को परेशान कर दिया। कभी-कभी सुबह कुछ देर के लिये धूप निकल आती है, पर हल्की बदली या कुहासा होने की वजह से किसी तरह की राहत नहीं मिल रही है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना था, आने वाले सप्ताहांत तक इसी तरह का मौसम बना रहेगा। इसके बाद आसमान साफ होगा। यहां के मौसम विभाग में 4 जनवरी 2018 को अधिकतम तापमान 16 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से आठ डिग्री सेल्सियस कम रहा। इसी तरह न्यूनतम तापमान 7 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ जो अभी 7 जनवरी 2018 को 2.6 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया और सामान्य से 3-8 डिग्री सेल्सियस कम था। अधिकतम आर्द्रता 98 फीसद और न्यूनतम आर्द्रता 49 फीसद मापी गई। हवाओं की गति 7 किलोमीटर प्रतिघंटा रही। दिन में धुंध रहने के चलते अधिकतम तापमान सामान्य से कम हुआ। इस समय पहाड़ों पर जो बर्फबारी हो रही है, वह निचले स्तर पर है। वहां से आने वाली हवाएं ठंड बढ़ा रही हैं।
इसका मुख्य कारण विश्व की जनसंख्या में वृद्धि है जो 700 करोड पहुंच गई है और इससे ग्लोबल वार्मिंग में निरंतर बढ़ोत्तरी तथा जलवायु मे परिवर्तन हो रहा है । हमारी ऋतुयें भी बदल रही हैं। इसी के साथ-साथ हमरी आवश्यकतायें बढ़ी और हम पृथ्वी के खनिजों का अनाप-शनाप दोहन करने लगे। विकास की गति को बढ़ाने में पकृति का ध्यान ना देकर वृक्षों को काटना शुरू कर दिया और जलाशयों को पाटकर जमीन का उपयोग या तो खेती के लिये या उसे कालोनी वसाने में लगा दिये और कांक्रीट के जंगलात खडे़ कर दिये। बिजली व वाहनों की आवश्यकता हेतु कोयले, पेट्रोल-डीजल, गैस का अनियंत्रित ढंग से दोहनकर पूरे पारितंत्र को उलट-पलट कर दिया जिससे ऋतुओं के समय में परिवर्तन इतना अधिक हो गया कि या तो मैदानी इलाके में वारिश न होकर सूखा अथवा भीषण वर्फीली हवायें तथा समुद्र के किनारे वसे शहरों में अति-वृष्टि अथवा तूफानों से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है। यही नहीं, इसकी तीव्रता प्रत्येक वर्ष बढऋती ही जा रही है । भूकंप की बढ़ोतरी भी हो रही है।
आज जो वर्फीले तूफान अमेरिका, चीन या भारत-वर्ष आदि मे आ रहा है, उसका जिक्र उन्होने अपनी ग्लोबल वार्मिंग दृद्वितीय पुस्तक जो अप्रैल 2015 मे क्रोसिया से प्रकाशित है, लिखा है । यहा तक लोगो को सचेत किया है कि न्युयार्क (अमेरिका), ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, भारत के पहाडी क्षेत्र आदि से लोगो को नये सुरक्षित स्थलों पर बसने के लिये बाध्य होना पडे़गा।
भारत में भी ऐसा हो रहा है, क्या है कारण!
जब वैश्विक तापमान से पृथ्वी गरम होगी तो पहाड़िओं पर जहा गलेशियर है, वे भी नीचे से गरम होंगे तथा बर्फीली चट्टानों में दरारें पड़ना और बारिश में उन्ही वर्फीली चट्टानों का टूटना स्वाभाविक है। इससे जहा एक तरफ पहाड़ी इलाके अब बिल्कुल ही सुरक्षित नहीं रह गये है, वही दूसरी तरफ प्रत्येक वर्ष चाहे केदारनाथ हो या बदरीनाथ धाम हो या कोई अन्य पहाड़ी इलाका हो भीषण आपदाओं से गुजर रहे है और इनकी तीव्रता भी बढ़ती जा रही है।
यह भी देखा जा रहा है, जहां ग्लेसियर के पिघलने और शीतकाल में पुनः उस ऊंचाई तक न जमने से मैदानी इलाके में बारिश नहीं हो पा रही है, वही जब भी पहाड़ियों पर बर्फ पड़ती है, वह नीचे खिसक जा रही है । इसका मुख्य कारण है पहाड़ो पर पहले से जमी ग्लेशियर पर पुनः पड़ने वाली ग्लेशियर से गरम है तो उस पर जमेगी कैसे। वही नीचे उतर कर मैदानी इलाकों में फैल रही है और इस तरह प्रत्येक वर्ष मैदानी इलाके भी शीतलहर की चपेट में आ रहे हैं। यहा तक की रेगास्तानी इलाकों में भी वर्फ जमने लगी है।
इसका एकमात्र उपाय- हमें प्रकृति, पर्यावरण, पानी व पेड़-पौधों के महत्व को गहराई से समझना और संवेदनशील होकर उनसे सानिध्य स्थापित कर इनके क्षरण को रोकने होगा। जब हमारी पृथ्वी, जिसे हम माता कहते है, हरी-भरी होगी तो पर्यावरण स्वस्थ होगा, पानी की प्रचुरता से प्रकृति अपने पुनः पूर्व स्वरूप मे आ सकती है, जिससे ही सही अर्थों में जीवन सुखद होगा।