दिल्ली

जिंदगी का आखिरी दिन बना काम का पहला दिन

शनिवार की दोपहर 17 साल की रीता कुमारी का काम का पहला दिन था। वह बेहद खुश होकर अपने घर से निकली थीं। कुछ घंटे बाद उनकी परेशान मां बवाना इंडस्ट्रियल एरिया स्थित एफ-83 के बाहर खड़ी इंतजार करती रहीं कि न जाने उनकी बेटी कब बाहर निकलेगी! जैसे ही बिल्डिंग में आग की खबर फैली आसपास की झुग्गियों में रहने वाले रीता के रिश्तेदार वहां इकट्ठा हो गए।जिंदगी का आखिरी दिन बना काम का पहला दिन

दमकलकर्मी बार-बार भीतर जा रहे थे, आग पर काबू पाने की कोशिश कर रहे थे और एक-एक कर शव बाहर निकाल रहे थे। एक दमकलकर्मी ने बताया, ‘धुआं और आग के गोले बिल्डिंग के हर कोने में थे, शुरुआत में हमें बताया गया था कि बिल्डिंग खाली है लेकिन फर्स्ट फ्लोर से कूदकर जिस लड़के ने अपनी जान बचाई, उसने बताया कि अंदर कई लोग फंसे हुए हैं।’ बिल्डिंग में एक ही रास्ता था जिससे भीतर जाया जा सकता था या बाहर निकला जा सकता था। 
शुरुआत में दमकलकर्मियों को 4 शव मिले जिसमें तीन बेसमेंट से और एक ग्राउंड फ्लोर से बरामद हुआ था। जैसे ही कर्मियों ने ऊपर चढ़ना शुरू किया, सीढ़ियों पर दो शव मिले। दमकलकर्मी जैसे ही फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचे, तेज बदबू आने लगी और एक वर्कर का शव दिखाई दिया। 

बचाव कार्य पूरा होने के बाद एक दमकलकर्मी ने बताया फैक्ट्री में एक महिला का शव बरामद हुआ जिसने दो लड़कियों के हाथ पकड़ रखे थे, जैसे वह उन्हें सुरक्षित रखना चाहती हों। एक शख्स का शव खिड़की के पास मिला, ऐसा लग रहा था कि वह ग्रिल को तोड़कर बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सफल न हो सका। 

शुरुआती जांच में ऐसा लगता है कि आग अचानक हुए धमाके के कारण लगी और तेजी से फैल गई। कामगारों ने कहा कि छुट्टी होने के बावजूद फैक्ट्री खुली हुई थी। फैक्ट्री में पड़े विस्फोटकों ने अचानक आग पकड़ ली, तेजी से फैल गई। कामगारों के पास बाहर निकलने के लिए दो मिनट से ज्यादा का वक्त नहीं था। बिल्डिंग में कोई फायर सेफ्टी उपकरण नहीं थै। 

बीती रात फैक्ट्री के बाहर इसमें काम करने वालों के परिजनों का तांता लगा रहा, लोग पूछते रहे कि घायलों को कहां ले जाया गया है। इन लोगों में रीता की मां भी थीं, इस बात से बेखबर कि उनकी बेटी अब कभी नहीं लौटेगी। 

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