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फरीद जकारिया बोले PAK के साथ संबंधों को बदलने में सक्षम हैं मोदी

पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन करने वाला देश है, यह उसके डीएनए में है. भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद ही सबसे बड़ी और मूल समस्या है. वह आज भी लगातार आतंकवाद का समर्थन कर रहा है. यह बात अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ फरीद जकारिया ने  कही.फरीद जकारिया बोले PAK के साथ संबंधों को बदलने में सक्षम हैं मोदी

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का आतंकवाद के साथ गठजोड़ तोड़ना बेहद कठिन है. इसकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सामान्य करना बेहद मुश्किल है. हालांकि, उन्होंने कहा कि पीएम मोदी शक्तिशाली नेता हैं. उनको उसी तरह पाकिस्तान के साथ आगे बढ़ना चाहिए, जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति रहे रिचर्ड निक्सन अपने समय में साम्यवादी चीन के साथ आगे बढ़े थे. इसी तरह मिखाइल गोर्बाचोव के नेतृत्व में सोवियत संघ के साथ अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने आगे कदम बढ़ाया था.

भारत के लिए गठबंधन जरूरी

जकारिया ने कहा कि भारत को दीर्घकालीन रणनीति समझने और उभरती भौगोलिक राजनीतिक (geo-political) व्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने के लिए एक गठबंधन बनाने की जरूरत है. भारत को यह समझना होगा कि आखिर वह क्या करना चाहता है? उसे सबसे पहले इसका फैसला करना चाहिए. भारत कभी ग्लोबल लीडर बनना चाहता है, तो कभी विकास पर फोकस करना चाहता है.

जकारिया का यह बयान दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण के बाद आया है, जिसमें उन्होंने वैश्वीकरण (globalization) का पुरजोर समर्थन किया था. दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम से इतर इंडिया टुडे से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में जकारिया ने कहा कि अब ऐसा लगता है कि हम ऐसे समय में हैं, जहां राजनीति और अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से काफी अलग है. विदेशी मामलों के जानकार जकारिया ने कहा कि हम आर्थिक रूप से समकालिक वैश्विक विकास के युग में जी रहे हैं. आज दुनिया का हर बड़ा क्षेत्र आगे बढ़ रहा है, जबकि दशकों पहले ऐसा नहीं था.

चीन के मुकाबले भारत की गति धीमी

भारत की वैश्विक स्थिति के सवाल पर जकारिया ने कहा कि नई वैश्विक व्यवस्था में चीन के उभरने के पीछे मूलभूत तथ्य हैं. चीन ने अपने गेम को समझा और उसके अनुसार आगे की रणनीति बनाई. अब भारत को अपने पॉवरफुल पड़ोसी चीन के मुकाबले के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंडे की पहचान करने की जरूरत है. आज चीन के मुकाबले भारत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, जबकि भारत की क्षमता ज्यादा है. लिहाजा भारत को अपनी क्षमता को पहचानने की जरूरत है.

जकारिया का कहना है कि क्या भारत अपनी रणनीति और लक्ष्य को जाने बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका चाहता है? CNN की मेजबानी करने वाले फरीद जकारिया ने कहा कि यह तेजी से बहाव का युग है. यहां असहजता भी ज्यादा है. उन्होंने कहा कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर भारत अपना गेम क्यों नहीं जानना चाह रहा है.

दावोस में पीएम मोदी के भाषण में रणनीतिक संदेश की कमी

अरुण पुरी के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुनिया के नेताओं के साथ कूटनीतिक पहल की तारीफ भी की. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पीएम मोदी दावोस में अपने भाषण के जरिए भारत के रणनीतिक संदेश को अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक पूरी तरह नहीं पहुंचा पाए. उनके भाषण में रणनीतिक संदेश की कमी दिखी, जिसका साफ मतलब यह है कि आपके पास एक भी रणनीति नहीं है.

जकारिया ने कहा कि भारत को एशिया में अपनी रणनीतिक बनाने की जरूरत है. चीन के मुकाबले भारत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, जबकि इसकी क्षमता ज्यादा है. लिहाजा भारत को अपनी क्षमता को पहचानने और जमीनी स्तर पर बदलाव करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि चीन निरंतर अपने विकास और अर्थव्यवस्था पर फोकस कर रहा है. साथ ही अपनी विदेश नीति पर पूरी तरह खामोश है. वहीं, रूस का रुख बिल्कुल अलग है. वह अपनी क्षमता से आगे बढ़कर अंतरराष्ट्रीय नीतियों में दखल देता है.

उन्होंने सवाल किया कि क्या मोदी का वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में उद्घाटन भाषण विदेशी निवेश को बढ़ा सकता है? जकारिया ने कहा कि पीएम मोदी कारोबार को लेकर बेहद ओपेन हैं और सुधारों को पेश किया है, लेकिन विदेशी निवेशकों को नौकरशाही और लाइसेंस राज, सरकारी बैंक और अदालतों से निपटना होगा. उन्होंने कहा कि सिर्फ दावोस में रेड कॉरपेट बिछाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि जमीन पर चीजों को बदलना होगा.

मोदी में पाकिस्तान के साथ बेहतर करने की क्षमता है…

जकारिया ने कहा, ‘मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी में पाकिस्तान के साथ कुछ बेहतर करने की क्षमता है, जिसे उन्होंने अब तक नहीं किया है. उनके अंदर वो करने की क्षमता है जो निक्सन ने चीन दौरे पर किया था.’

उन्होंने कहा कि अगर आपको याद हो, निक्सन कम्युनिस्ट देश चीन जा सकते थे और सौदा कर सकते थे क्योंकि वो एक कट्टर साम्यवादी विरोधी थे. वो कट्टर दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ थे, जो हमेशा इतना कम्युनिस्ट विरोधी रहे थे कि कोई भी उनकी साख पर सवाल नहीं करेगा.

जकारिया ने कहा कि अगर मोदी पाकिस्तान के साथ कुछ अच्छा करने का प्रयास करें तो उनकी नरमी के लिए कोई भी उन पर अटैक करने वाला नहीं है. और यह वास्तव में आपसी संबंध को बदलने और उपमहाद्वीप को रूपांतरित करने का एक मौका होगा.

भारत-पाक करें व्यापार तो होगी बड़ी जीत

उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान एक साथ व्यापार करते हैं, तो यह एक बड़ी जीत होगी.  उन्होंने कहा कि कुछ विश्लेषण में मैंने पाया है कि यह कदम भारत के जीडीपी में वृद्धि कर सकता है.

लेकिन क्या गुरिल्ला रूपी पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी में भारत पाकिस्तान के साथ समझौता कर सकता है? क्या पाकिस्तानी सेना को बातचीत में शामिल किया जा सकता है या क्या यह राजनयिक रूप से संभव है?

जकारिया ने कहा कि यह किया जा सकता है. पाकिस्तानी सेना इतनी ताकतवर है कि बातचीत में कोई समस्या नहीं आएगी. लेकिन उन्होंने वो कारण भी बताया कि क्यों पाकिस्तानी सेना ऐसा नहीं करना चाहती. वो (पाक सेना ) इस गेम को चतुराई से खेलती है ताकि वो सभी जिम्मेदारियों से छुटकारा पा सके और पर्दे के पीछे से नियंत्रण कर सके. मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान हमारे पास एक सुनहरा मौका था. शायद, कुछ चीजें बदल सकती थीं, अब वह मौका चला गया है.

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