चलो थोड़ा रूमानी हो जाएँ…
बड़े नाजुक दौर से गुजर रहे हैं मोहब्बत के रिश्ते
अब शहर बदलते हैं तो प्यार भी बदल जाता है..
जिस पल कोई बादल का टुकड़ा चुपके से, धरती के टुकड़े को भिगो गयाय मैं मिट्टी में मिल कर महकने लगी। जिस पल कली, फूल बन रही थी कोई उसमे रंग और खुश्बू भर रहा थाय उस पल मैं ही तो सांस ले रही थी। जब गुलाब धीरे धीरे सुर्ख हो रहे थे और दिल धड़कना सीख रहा थाय उस पल से मैं साथ हूँ सबके। मैं पत्तियों में हरापन बन कर और तुम्हारी देह में लहू बन कर बहती हूँ सही-गलत, सच-झूठ, पाप-पुण्य, पाबंदियाँ, बंदिशों से दूर है मेरा बसेरा। कठोर इतनी की सारी दुनिया का मुकाबला कर लूँ। कोमल इतनी की सांसों की भाप से मुरझा जाऊं। मेरे होने पर कभी संदेह मत करना मेरे होने की वजह मत तलाशना, मैं देह से परे हूँ सदियों से हूँ और सदियों तक रहूँगी। जितनी बार, जितना महसूस करोगे, उतनी बार ही पा लोगे मुझे, क्योकिं मैं मोहब्बत हूँ लेकिन फिर भी…….।
-संजीव कुमार शुक्ला
सच है दोस्तों सारा ब्रम्हांड भी जिस शब्द के लिए छोटा है, जिसमें से होकर गुजरते हैं पेड़ पौधे, जीव जंतु ,फूल फल, पक्षी, कीट पतंगे। कायनात की हर जीवित, मूर्त और अमूर्त वस्तु और वह शब्द है मोहब्बत-ए-मोहब्बत जो सिर्फ देती है बदले में कुछ नहीं लेती न जाने कितनी बार बड़ी मासूमियत से मोहब्बत ने यह प्रश्न किया होगा की आज की दुनिया मे मेरा वजूद क्या सिर्फ एक दिन का है , इस दुनिया ने क्या किया प्रेम को बस एक दिन के लिए सीमित कर दिया सुबह शुरू होकर शाम को खतम प्रेम के लिए इक दिन क्यों? मेरे वजूद मेरी अस्मत मेरी कशिश से इतनी बेरुखी क्यों जी हां शायद आज यही मोहब्ब्त की सबसे बड़ी बेबसी है कुछ सोचता हूँ रुकता हूँ फिर कुछ सोचता हूँ और मन के अंदर का द्रंद शब्दों मे बंध कर कागज पर उतरने लगता है मोहब्बत अपनी बानगी को खुद बडे ही सहज अंदाज मे लिपिबद्ध कर लेती है सच ही तो है उम्र जैसे ही बचपन का चोला छोड़कर जवानी की दहलीज पर कदम रखती है, दुनिया की हर चीज खूबसूरत नजर आने लगती है। जवानी में दुनिया को देखने का नजरिया ही बदल जाता है। इस उम्र में वैसे भी बड़ी से बड़ी सच्चाइयाँ नजर नहीं आती हैं और रही-सही कसर यह मोहब्बत शब्द पूरी कर देता है।
आखिर यह मोहब्बत है क्या चीज? जिसे करना तो सभी चाहते हैं, लेकिन जानता कोई भी नहीं है। यदि मोहब्बत इतनी रहस्यमय न होती तो क्या मिर्जा गालिब ‘इस इश्क के कायदे भी अजब हैं गालिब, करो तो बेहाल हैं, न करो तो बेहाल’ जैसा शेर लिखते? आपने कभी गौर किया है कि इस प्रेम, प्यार जैसे शब्दों को लेकर कितने विवाद रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह तो एक भावना है, जिसका एहसास धीरे-धीरे ही होता है, लेकिन कुछ तो कहते हैं, यह तो पहली नजर का प्यार है जो बस एक बार देखते ही हो जाता है। मोहब्बत सिर्फ इंसान या जीव मात्र के बीच नहीं होता बल्कि पानी की संगीतमय छलछलाहट , हवा के लयबद्ध स्पंदन , दरख्तों की झूमती हुई डालियों, पत्तियों की मासूम मरमराहट , झरनों के फेनिल दूधिया जल प्रपात और पुष्प के खिलने के रोमांच मे भी मोहब्बत ही है. ।ये सब क्रियाएँ प्रकृति का अपने होने के एहसास और धरती पर मोहब्बत के अस्तित्व का मौन प्रस्तुतीकरण है।
मोहब्बत एक एहसास है, प्रकृति के द्वारा जीव मात्र को दिया गया धरती का सबसे बड़ा वरदान. तमाम अनसुलझे सवालों का एकमात्र जवाब है मोहब्बत. मोहब्बत उतनी ही सरल उतनी ही जटिल और उतनी ही रहस्यमय है जितना जीवन और मृत्यु का तिलिस्म. मोहब्बत को किसी परिभाषा या शब्दों मे नहीं बांधा जा सकता. ना ही किसी उम्र, वर्ग, जाति, धर्म में इसे बांटा जा सकता है. ये तो मनुष्य मात्र के अपने दंभ और अवसाद हैं. चित्रकला, नाटक, कहानियाँ, कविताएं -प्रेम की अनुभूति, यात्रा और निष्कर्ष तो पेश कर सकती हैं लेकिन मोहब्बत का मर्म नहीं. मोहब्बत वही है जो सहज और सर्व स्वीकार्य है. लैला मजनू, शीरी फरहाद, अनारकली सलीम, शकुंतला दुष्यंत जैसे उदाहरणों मे स्त्री-पुरुष मोहब्बत की पराकाष्ठा मोहब्बत तो सिर्फ शुरुआत है जिसकी कोई परिणति कोई अंत होता ही नहीं. अंत सिर्फ देह का होता है प्रेम का नहीं. प्रेम की ऐसी ही अद्भुत मिसालें यहाँ भरी पड़ी हैं जिनकी देह खो चुकी है पर मोहब्बत जिंदा हैं कौन भूल सकता है शाहजहां-मुमताज का अमर प्रेम जिसकी जीती जागती मिसाल है ताजमहल ताज महल एक ऐसी इमारत जिसका नाम युगों युगों से अमर प्रेम कहानियों में लिया जाता है।
इस मुहब्बत की अद्भुत निशानी को तो रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘अनंत काल के गाल पर आंसू’ का नाम दिया है। पृथ्वीराज-संयुक्ता इस प्रेम कहानी मे पृथ्वीराज चैहान जितने महान योद्धा थे उतने ही दिलदार प्रेमी भी थे। कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयुक्ता से प्यार करने वाले चैहान ने दुनिया की परवाह न करते हुए अपने प्यार को अपना बनाया इसी तरह बाजीराव-मस्तानी इसमे इस प्रेम कथा के ऊपर हाल ही में फिल्म भी आयी थी जिसे हर आयुवर्ग के लोगों ने पसंद किया। एक मुस्लिम महिला से प्रेम और अपनी मोहब्बत को पाने के लिए बाजीराव का संघर्ष और इसके साथ मस्तानी का बाजीराव राव की दूसरी पत्नी के रूप में स्वीकार होने के लिए अथक प्रयास अपने आप में एक मिसाल है। विवादों से घिरी इस प्रेमकथा का अंत हुआ बाजीराव की मौत से जिसके साथ मस्तानी भी सती हो गयी।, बिम्बीसार-आम्रपाली इसमे मगध के राजा बिम्बिसार युद्ध के दौरान घायल हुए थे और इसके बाद आम्रपाली ने उनकी सेवा की जो की एक नर्तकी थी। इसी दौरान उन्हें आम्रपाली से प्रेम हो गया। एक वेश्या से शादी करने पर राजा बिंबसार को बहुत विरोध झेलना पड़ा पर अंत में प्यार की जीत हुई।
चंद्रगुप्त-हेलेना, औरंगजेब- जैनाबाई की अमरप्रेम कहनिया कौन भूल सकता है इससे भी अनोखी दास्तान इतिहास में हमें मिलती हैं. जैसे वॉर एंड पीस और अन्ना केरेनीना जैसी महान कृतियों के लेखक टोलसटॉय और द लास्ट सपर, मैडोना ऑफ द रोक्स और विश्व प्रसिद्द रचना मोनालिसा के अद्भुत कलाकार लियोनार्दो दा विन्सी का प्रेम. यद्यपि एक लेखक है और दूसरा कलाकार लेकिन दोनो में एक अद्भुत समानता है. दोनों ने ही अपनी स्वयं गढ़ी गयी कृतियों से इस कदर प्रेम किया कि ताउम्र उतना प्रेम किसी जीवंत स्त्री को नहीं कर पाए. टालस्टॉय इस उपन्यास के दौरान अपनी नायिका अन्ना के प्रेम में डूब गए. एक विवाहित स्त्री के प्रेम से कहानी निर्लिप्त भाव से शुरू होती है लेकिन धीरे-धीरे ये महसूस होने लगता है कि अन्ना के प्रति उनके ह्रदय में कोई कोमलता है जो आहिस्ता आहिस्ता विवशता और अवसाद में बदलती जाती है …सामाजिक, पारिवारिक, ममत्व आदि की विसंगतियां व असुरक्षा का मिला-जुला भाव और अंततः वो आत्महत्या कर लेती है.‘अन्ना’ कोई जीवंत चरित्र नहीं, उसे लेखक टोलस्टोय ने अपनी कल्पना से गढ़ा था लेकिन उनकी ये काल्पनिक प्रेमिका का अंत मे आत्महत्या कर लेना लेखक के अवसाद को दर्शाता है. वहीं विन्सी के बारे में कहा जाता है कि उनकी अनेकों कृतियाँ यहां वहां पडी रहती थीं लेकिन अपनी विश्व प्रसिद्ध और चर्चित मोनालिसा की कलाकृति को ताउम्र उन्होंने अपने से अलग नहीं किया उसके प्रेम में डूबे रहे. वो जहाँ गए उसे अपने साथ लेकर गए. उस कृति से उन्होंने मृत्यु पर्यंत अटूट प्रेम किया. विश्व प्रसिद्ध लेखक मार्खेज के बारे में भी कहा जाता है कि अपने एक उपन्यास की नायिका की म्रत्यु के बाद वो फूट-फूट कर रोये.। मीरा और कृष्ण के प्रेम को इस दृष्टि से देखा जा सकता है लेकिन कृष्ण की छवि मीरा के मन में पहले से थी और इन महान रचयिताओं ने अपना प्रेम खुद गढ़ा और जीवन पर्यंत उससे लिप्त रहे.। मोहब्बत के एहसास को मशहूर ब्रिटिश लेखक शेक्सपीयर ने अपने मशहूर प्रेमगीत, सॉनेट 116 में कुछ यूं बयां किया है, इश्क कभी मरता नहीं. वक्त के दायरे इसे मिटा नहीं पाते.इंसान की हस्ती मिट जाती है, मगर प्यार कयामत के बाद भी जिंदा रहता है.
शेक्सपीयर ने जितना सोचा न होगा, उनकी बातें उससे भी ज्यादा सही हैं. अगर कुदरत में प्यार के एहसास की बात करें तो ये इंसान के धरती से आने से भी पहले से मौजूद था. पर आज क्या हो रहा है आज के सामाजिक वातावरण में जब रिश्ते नितांत औपचारिक और अविश्वसनीय होकर रह गए हैं. आये दिन एक आम दंपत्ति से लेकर खास तबके तक में तलाक की घटनाएं सुनने को मिलती हैं सुबह शुरू हुई मोहब्बत शाम होते होते दम तोड़ देती है क्या अब वह कशिश नहीं रही की अब वह लोग नहीं रहे बदलते जमाने मे मोहब्बत कितनी बेमानी हो गई है खुदा के जितनी पवित्र इन रिश्तों को आज लोगो ने महज मौज मस्ती की वह दरिया बना दिया है जो चलती तो है बलखाती हुई लेकिन शाम होते होते सूख जाती है जरा जरा सी बात पर अब रिश्ते टूट जाते है वैज्ञानिक कहते हैं कि प्यार होने का सीधा सा मकसद कुदरती है. जब दो लोगों में ये एहसास पैदा होता है तो दोनों साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजारेंगे. ऐसा होगा तो दोनों में जिस्मानी रिश्ते बनेंगे और फिर अगली पीढ़ी के दुनिया में आने की बुनियाद रखी जाएगी. यही प्रकृति का बुनियादी नियम है. सभी जीव एक ही मकसद के लिए हैं. अपने जीन्स अगली पीढ़ी को सौंप दें, दुनिया से रुखसत होने से पहले. मगर, इंसान में प्यार के एहसास के कई पहलू हैं जिन्हे नकारा नहीं जा सकता आज की युवा पीढ़ी शायद कहीं बहकी हुई नजर आती है.
फेस बुक, व्हाट्सअप के इस दौर मे भरोशा कही खो गया है एक एक मैसेज पर रिश्ते टूट रहे है हम मोहब्बत की उस कशिश को नहीं महसूस कर पा रहे है जो इंसान को इतनी शक्ति और हौसला दे जाती है की इंसान दुनिया का बड़ा सा बड़ा गम बर्दास्त कर ले जाता है अपने बीते दिनों को याद कर ६२ वर्षीय अरविन्द कहते है की आज तो प्यार किसी से इजहार किसी से और शादी किसी से वह भी कितने दिन चलेगी पता नहीं वह ना जाने किस कशिश मे डूब जाते है और कहते है की एक हम है एक बार सन्नो को जब वह हाईस्कूल मे थी तब देखा था उसकी वह पहली मुस्कराहट और आज का दिन हम बस उसका हाथो मे हाथ लिए चलतेचले आए हैं इसी तरह 56 वर्षीय अविवाहित सलीम बताते है की अलीगढ़ मे ट्रेनिंग के दौरान पड़ोस मे रहने वाली हम उम्र शकीला से कुछ दिनों की मुलाकात हुई थी लेकिन उसके अब्बू ने शादी कही और कर दी थी पर उसका चेहरा इस कदर आँखों मे बसा है की जीवन मे फिर कोई अच्छा ही नहीं लगा प्रश्न यह है की मोहब्बत तो जमाने की बात हो नहीं सकती फिर आज वह एहसास क्यों नहीं है क्या इसको हम अपने बदलते परिवेश से भी जोड़ सकते है की आज के युग मे लडके और लडकिया सामाजिक रूप से इतना मिलने जुलने लगे है इतनी बात करने लगे है की उनके बीच का सहज आकर्षण कही खो सा गया है
इसी तरह पार्क मे घूमते हुए एक प्रेमी जोड़े से मैने कहा की जो साथ मे है वह आपकी कौन है वह बोला माई लव मैंने कहा यदि कल इसकी दोस्ती किसी और लडके से हो जाती है तो तो वह तपाक से बोला मै भी किसी और से दोस्ती कर लूंगा वह यही नहीं रुका उसने कहा की जीवन का एंजॉय करना चाहिए मैंने फिर उसे कहा कि तुम दोनों जिस दिन नहीं मिलते हो उस दिन कैसा फील होता है वह सहजता से बोला कुछ नहीं और खास बात यह थी कि उसके साथ खड़ी उसकी सहपाठी के चेहरे पर किसी तरह का कोई भाव नहीं था शायद मै जो जानना चाहता था वह पूरा तो नहीं मिला लेकिन इतना आभास जरूर हो गया कि अब इंसानी रिश्तो में कशिश नहीं रही। गुजरे जमाने में जो कदम प्रेमिका की गली की सड़क पर पड़ते ही लड़खड़ाने लगते थे वह आज के दौर में सरपट दौड़ रहे हैं अब ना खतो का वो जमाना रहा नहीं छिपने छुपाने का सिलसिला मगर हम अपने संवेदना और आभा कशिश को महसूस करने की क्षमता खो देंगे तो हमारे पास शायद कुछ ना बचेगा। हमें आज इस पर विचार करना होगा कि यह रिश्ते क्यों बिखर रहे हैं अपनापन कहां जा रहा है क्यों हमने मोहब्बत को बस एक सांकेतिक दिन बनाकर उसमें ढाल दिया है। अगर आप गहराई से सोचेंगे तो उत्तर अवश्य मिलेगा…
शेष फिर कभी—-