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नागालैंडः क्या मुख्यमंत्री बन पायेंगे नेफ्यू रियो

राष्ट्रीय राजनीति में ऐसी घटना बहुत कम ही देखने को मिलती है जब कोई मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी छोड़कर सांसद का चुनाव लड़ता हैं। नेफ्यू रियो लगातार तीन बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश की एकमात्र लोकसभा सीट दीमापुर से संसद पहुंचे थे। रियो ने कहा था कि वह 60 साल पुरानी नगा समस्या का हल चाहते हैं और इसलिए संसद जा रहे हैं। इससे साफ पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह नेफ्यू रियो भी राष्ट्रीय राजनीति में अपने साथ कई सपने ले कर गए थे। स्वतंत्र पत्रकार के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश में भारतीय जनता पार्टी की लहर थी और यूपीए को सत्ता से हटाने के लिए बीजेपी छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन को काफी अहमियत दे रही थी। भाजपा के शीर्ष नेताओं से रियो को भी उतनी ही अहमियत मिली और रियो ने योजना बनाई कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार में उन्हें कम से कम केंद्रीय गृह राज्य मंत्री की कुर्सी तो ज़रूर मिल जाएगी। इस बात की नागालैंड में काफी चर्चा भी हुई। साथ ही लोगों ने सोचा वे अपने प्रदेश के विकास के लिए केंद्र से ज्यादा फण्ड जुटा सकेंगे। लोकसभा चुनाव के दौरान नेफ़्यू रियो के इस फ़ैसले का समर्थन करने वाले उनकी पार्टी के कुछ नेताओं को लगा कि अगर बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो किंग मेकर की स्थिति में योगदान के लिए रियो की एक सीट भी काफ़ी अहम हो जाएगी और इसका उन्हें फ़ायदा मिलेगा, लेकिन लोकसभा के चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत ने ऐसे कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं की योजनाओं पर पानी फेर दिया। पिछले साल नगर निकाय के चुनावों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात पर जब नगालैंड में हिंसा भड़की और टीआर ज़ेलियांग को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी, उस समय रियो ने फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए पार्टी विधायकों के साथ काफ़ी गुटबाज़ी की थी, लेकिन उन्हें हासिल कुछ नहीं हुआ क्योंकि ज़ेलियांग अब उनके दोस्त नहीं बल्कि राजनीतिक प्रतिद्वंदी बन गए थे। अनगामी जनजाति से आने वाले रियो पहली बार 1989 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के लिए चुने गए थे और उनकी राजनीतिक क्षमता को देखते हुए जल्द ही एस सी जमीर ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया था। नागालैंड के एक अच्छे कारोबारी परिवार से ताल्लुकात रखने वाले रियो 1974 में कोहिमा ज़िला युवक शाखा के अध्यक्ष बनने से लेकर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट यूडीएफ की युवा शाखा के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर काम कर चुके थे, लिहाज़ा राजनीति में ऊपर उठने के लिए रियो ने अपने तमाम अनुभवों के साथ प्रदेश में शांति बहाली के लिए सरकार के इस अभियान को चलाया। प्रदेश में उनके काम की काफी तारीफ़ हुई और जमीर ने इससे प्रभावित होकर अपनी अगली सरकार में यानी 1998 में रियो को प्रदेश का गृह मंत्री बना दिया। ये नगालैंड की राजनीति का ऐसा दौर था जब जमीर ही ऐसे अकेले नेता थे जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर लोग पहचानते थे। जमीर नगालैंड से इकलौते नेता हैं जो केंद्र में मंत्री रहे हैं और इस समय ओडिशा के राज्यपाल भी हैं। रियो ने नगा मुद्दे पर बातचीत के समझौते को अवरुद्ध करने का आरोप लगाते हुए सितंबर 2002 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जमीर के नेतृत्व वाली कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। 2003 के नागालैंड विधानसभा चुनाव जीतने के बाद रियो पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने प्रदेश में जोड़तोड़ और जुगाड़ की राजनीति से कांग्रेस को पूरी तरह ख़त्म कर दिया। रियो ने कांग्रेस से जेलियांग समेत क़रीब सभी बड़े नेताओं को एनपीएफ़ में शामिल कर लिया। इसके बाद से नगालैंड में कांग्रेस कभी उभर नहीं पायी। प्रदेश में कांग्रेस का सफ़ाया करने वाले रियो ने चार साल संसद में गुजारने के बाद एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बीजेपी के साथ हाथ मिलाया है।
गौरतलब है कि एनपीएफ़ छोड़ने के बाद रियो ने नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी बना ली है और प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी के समर्थन वाले इस गठबंधन ने रियो को राज्य में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया। इस बीच नेफ़्यू रियो को विधानसभा क्षेत्र उत्तरी अनगामी 2 से निर्विरोध चुन लिया गया, उनके ख़िलाफ़ मैदान में उतरे एनपीएफ़ के एकमात्र उम्मीदवार चुपफो अनगामी ने अपना नाम वापस ले लिया था।
मंगलवार को राज्य में नई सरकार चुनने के लिए वोटिंग हो रही है। नागालैंड प्रदेश कांग्रेस के महासचिव कैप्टन जीके ज़हिमोमि ने कहा कि नागालैंड में बुरे दिन आने वाले हैं इसलिए ये लोग एनडीपीपी परिवर्तन की बात कर रहे हैं, जहां तक रियो की बात है तो उन्हें केंद्र में कुछ हासिल नहीं हुआ और अब वे उसी पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में वापसी करना चाहते हैं।

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