ग्रीष्मकाल में भक्तों को दर्शन देने के लिए इस बार जब मां यमुना जब अपने मायके खरसाली (खुशीमठ) से यमुनोत्री धाम के लिए रवाना होंगी तो उनकी डोली मां राजराजेश्वरी के मंदिर से नहीं, बल्कि अपने ही घर (नवनिर्मित यमुना मंदिर) से प्रस्थान करेगी। खरसाली में पिछले दस साल से बन रहे यमुना मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका है। तीन अप्रैल से नवनिर्मित मंदिर में देवी यमुना की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अनुष्ठान शुरू हो रहा है, जो 11 अप्रैल तक चलेगा। इसके लिए इन दिनों तैयारियां जोरों पर हैं।
विश्व प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम, उत्तराखंड की चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव माना जाता है। मान्यता है यमुनोत्री दर्शन के बाद ही क्रमश: गंगोत्री, केदारनाथ व बदरीनाथ धाम में दर्शन किए जाते हैं। यमुनोत्री धाम के कपाट प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीय पर्व पर खोलने और शीतकाल के लिए भैयादूज के दिन बंद करने की परंपरा है।
कपाट बंद होने के बाद यमुना की उत्सव डोली को यमुनोत्री से छह किलोमीटर दूर खरसाली गांव लाया जाता है। शीतकाल के छह महीने देवी यमुना यहीं अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार खरसाली यमुना का मायका है, लेकिन अब तक यहां यमुना का यहां कोई मंदिर नहीं था। ऐसे में उत्सव डोली को विधि-विधान के साथ गांव के बीचों-बीच स्थित राजराजेश्वरी मंदिर में विराजमान किया जाता है।
वर्ष 2008 में यमुनोत्री मंदिर समिति और पुरोहित समाज ने खरसाली में यमुना मंदिर के निर्माण का फैसला किया और इसी साल काम भी शुरू हो गया। पहाड़ी शैली में बन रहे मंदिर का निर्माण कार्य अब लगभग पूरा हो चुका है।
यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित एवं मंदिर समिति के पूर्व उपाध्यक्ष पवन उनियाल ने बताया कि करीब 45 लाख की लागत से निर्मित यमुना मंदिर में रंगाई-पुताई का कार्य चल रहा है। तीन अप्रैल से तीर्थ पुरोहित चंद्रकांत उनियाल के यजमान कोलकाता निवासी मुदड़ा माहेश्वरी परिवार की ओर यमुना यज्ञ और मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान किया जाएगा।
यह अनुष्ठान आचार्य मदन मोहन शास्त्री के सानिध्य में संपन्न होगा। इसी दौरान यमुनाजी की डोली को देवी राजराजेश्वरी के मंदिर से यमुना के नए मंदिर में लगाया जाएगा। अक्षय तृतीय पर्व पर मां यमुना की डोली अपने ही मंदिर से यमुनोत्री धाम के लिए प्रस्थान करेगी।