कॉमनवेल्थ में सिल्वर जीतने के बाद छलका गुरुराजा का दर्द, कहा- इससे परिवार की जरूरत पूरी करूंगा
गुरुराजा पुजारी, ये नाम कल तक गुमनाम था , लेकिन आज सबकी जुबां पर है, तो इसकी वजह है उनका सिल्वर मेडल, जिसे उन्होंने गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में जीता है. हिंदुस्तान के लिए वैसे तो ये बस एक मेडल है लेकिन गुरुराजा के लिए ये उनके जीते हुए एक मेडल से कहीं बढ़कर हैं. चांदी के तमगे से उनका नाम रौशन जरुर हुआ है लेकिन उससे भी ज्यादा ये मेडल उनके परिवार की चरमराई आर्थिक स्थिति को सुधारने का जरिया बनने वाला है. गुरुराजा कर्नाटक के रहने वाले हैं और उनके पिता ट्रक चलाते हैं. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी उनके परिवार ने उन्हें वो हर चीज दिलाई, जो उनके इस गेम को बेहतर बनाने के लिए जरूरी थी. यही वजह है कि सिल्वर मेडल जीतने के बाद गुरुराजा ने कहा कि, ” ये सिल्वर मेडल जीत जितनी मेरे लिए अहम थी, उससे कहीं बढ़कर ये मेरे परिवार की तंगहाली को दूर करने के लिए जरूरी था. इस मेडल से मुझे अब अपने करियर को दूर तलक ले जाने में भी मदद मिलेगी. ”
ट्रक ड्राइवर के बेटे हैं गुरुराजा
गुरुराजा मूल रूप से कोस्टल कर्नाटक में कुंडूपारा के रहने वाले हैं. उनके पिता पिक-अप ट्रक ड्राइवर हैं. उन्होंने 2010 में वेटलिफ्टिंग करियर शुरू किया था. शुरू में उनके सामने कई परेशानियां आईं. डाइट और सप्लीमेंट्स के लिए पैसे की जरूरत होती थी, जो उनके पास नहीं थे. उनके परिवार में आठ लोग हैं, जिनके भरन-पोषण का जिम्मा एक अकेले उनके पिता के कंधे पर था, जो पेशे से मामूली ट्रक ड्राइवर हैं. लेकिन मामूली ट्रक ड्राइवर होने के बावजूद पिता ने अपने बेटे के सपने को टूटने नहीं दिया. मेहनत रंग लाई को गुरुराजा को एयरफोर्स में नौकरी भी मिल गई, जिससे धीरे-धीरे परिवार के आर्थिक हालात थोड़े सुधरे.
कोच ने दिलाया याद – कितना जरूरी है मेडल
गुरुराजा ने गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में 249 किलो का भार उठाते हुए सिल्वर मेडल जीता है. गुरुराजा ने बताया, ‘क्लीन एंड जर्क में जब मेरे दो प्रयास खाली चले गए, तो मेरे कोच ने याद दिलाया कि मेरी जिंदगी इस मेडल पर कितनी निर्भर है. मैंने अपने परिवार और देश को याद किया और मेडल पर कब्जा किया. ‘
अब निगाहें 2020 ओलंपिक पर
गोल्ड कोस्ट में मिली शानदार कामयाबी के बाद गुरुराजा ने अपना अगला लक्ष्य भी तय कर लिया. अब वे 2020 टोक्यो ओलिंपिक की तैयारी में जुटेंगे. कमाल की बात है कि 8 साल पहले तक जिस गुरुराजा पुजारी को वेटलिफ्टिंग से डर लगता था, भार उठाने में पांव फूल जाते थे, वही गुरुराजा कॉमनवेल्थ में कमाल करने के बाद अब ओलंपिक पदक जीतने का मन बना रहे हैं.
बनना चाहते थे पहलवान, बन गए वेटलिफ्टर
गुरुराजा के मुताबिक , ‘मैंने 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में पहलवान सुशील कुमार को देखा था. उस समय मैंने भी रेसलिंग में अपना करियर शुरू करने की सोची लेकिन जब मैं अपने कोच राजेंद्र प्रसाद से मिला तो उन्होंने मुझसे वेटलिफ्टिंग करने को कहा.’
अच्छा हुआ कि गुरुराजा ने सुशील की तरह पहलवानी नहीं चुनी नहीं आज अखाड़े के मेडल तो आते लेकिन वेटलिफ्टिंग के पदकों की संख्या में इजाफा नहीं हो पाता.