दृष्टा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥
अर्थ : संजय ने कहा – हे राजन्! इस समय राजा दुर्योधन पाण्डु पुत्रों की सेना की व्यूह-रचना को देखकर आचार्य द्रोणाचार्य के पास जाकर कह रहे हैं।
हे आचार्य! पाण्डु पुत्रों की इस विशाल सेना को देखिए, जिसे आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न ने इतने कौशल से व्यूह के आकार में सजाया है।
क्रमशः