चौथी शताब्दी में जब हमारे यहां दार्शनिक विषयों का अध्ययन-मनन प्रमुखता से होने लगा था, तब कई स्त्रियों ने अपना जीवन अध्ययन और ज्ञानार्जन को समर्पित किया था। उस युग में स्त्रियां वैदिक और दर्शन आदि की शिक्षा के अतिरिक्त गणित, वैद्यक, संगीत, नृत्य और शिल्प आदि का भी अध्ययन करती थीं। क्षत्रिय स्त्रियां धनुर्वेद अर्थात युद्धविद्या की भी शिक्षा ग्रहण करती थीं तथा युद्ध में भाग भी लेती थीं। कैकयी इसका महत्त उदाहरण रहीं। भारतीय परंपरा में गार्गी वाचक्नवी, देश की विशिष्टतम दार्शनिक और युगप्रवर्तक। गार्गी परम विदुषी थीं, वे आजन्म ब्रह्मचारिणी रहीं। आर्ष महाकाव्यों में वर्णित उच्चकुलों की स्त्रियां विविध प्रकार की विद्याओं में निष्णात होती थीं। इस प्रकार स्पष्ट है कि संहिताकाल से लेकर महाकाव्य काल तक स्त्रियों को शिक्षा का पूर्ण अधिकार था। वे पुरुषों के समान ही उपनयन संस्कार के बाद ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए अध्ययन करती थीं और उसके बाद भी उन्हें आगे विद्याध्ययन करने या गृहस्थ धर्म अपनाने, दोनों ही विकल्प प्राप्त थे।
गर्गवंश में वचक्नु नामक महर्षि थे, जिनकी पुत्री का नाम वाचकन्वी गार्गी था। बृहदारण्यक उपनिषद् में इनका ऋषि याज्ञवल्क्य के साथ बडा ही सुन्दर शास्त्रार्थ आता है। कथा के अनुसार एक बार महाराज जनक ने श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की परीक्षा लेने के लिए एक सभा का आयोजन किया। राजा जनक ने सभा को संबोधित करके कहा, ‘हे महाज्ञानीयों, यह मेरा सौभाग्य है कि आप सब आज यहां पधारे हैं। मैंने यहां पर गायों को रखा है, जिन पर सोने की मुहरें जड़ित हैं। आप में से जो श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हो वह इन सब गायों को ले जा सकता है।
तब वहां उपस्थित ऋषि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों से कहा, ‘हे शिष्यों! इन गायों को हमारे आश्रम की और हांक ले चलो। इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे। याज्ञवल्क्य ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया। उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी उपस्थित थीं। याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने के लिए गार्गी उठीं और पूछा ‘हे ऋषिवर! क्या आप अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी मानते हैं? याज्ञवल्क्य बोले, ‘मां! मैं स्वयं को ज्ञानी नहीं मानता, लेकिन इन गायों को देख मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है। गार्गी ने कहा ‘आप को मोह हुआ, किन्तु इस उपहार के लिए आप को साबित करना होगा कि आप इसके योग्य हैं। अगर सर्व सम्मति हो तो में आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहूंगी, अगर आप इनके संतोषजनक जवाब प्रदान करें तो आप इस इनाम के अधिकारी होंगे।
गार्गी का पहला सवाल बहुत ही सरल था। परन्तु उन्होंने अन्तत: याज्ञवल्क्य को ऐसा उलझा दिया कि वे क्रुद्ध हो गए। गार्गी ने पूछा था, हे ऋषिवर! जल के बारे में कहा जाता है कि हर पदार्थ इसमें घुलमिल जाता है तो यह जल किसमें जाकर मिल जाता है? अपने समय के उस सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मनिष्ठ याज्ञवक्ल्य ने आराम से और ठीक ही कहा कि जल अन्तत: वायु में ओतप्रोत हो जाता है। फिर गार्गी ने पूछा कि ‘वायु किसमें जाकर मिल जाती है? याज्ञवल्क्य का उत्तर था कि अंतरिक्ष लोक में। गार्गी याज्ञवल्क्य के हर उत्तर को प्रश्न में तब्दील करती गई और इस तरह गंधर्व लोक, आदित्य लोक, चन्द्रलोक, नक्षत्र लोक, देवलोक, इन्द्रलोक, प्रजापति लोक और ब्रह्म लोक तक जा पहुंची और अन्त में गार्गी ने फिर वही सवाल पूछ लिया कि यह ब्रह्मलोक किसमें जाकर मिल जाता है? गार्गी को लगभग डांटते हुए याज्ञवक्ल्य ने कहा- गार्गी, इतने प्रश्न मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा माथा ही फट जाए। गार्गी का सवाल वास्तव में सृष्टि के रहस्य के बारे में था। गार्गी ने विद्वान का अहमं तुष्ट किया और चुप रही। बाद में गार्गी ने याज्ञवल्क्य से दो सवाल पूछे – ऋषिवर सुनो। जिस प्रकार काशी या विदेह का राजा अपने धनुष पर की डोरी पर एक साथ दो अचूक बाणों को चढ़ाकर अपने दुश्मन पर सन्धान करता है, वैसे ही मैं आपसे दो प्रश्न पूछती हूं।
याज्ञवल्क्य ने कहा- हे गार्गी, पूछो। गार्गी ने पूछा – स्वर्गलोक से ऊपर जो कुछ भी है और पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है और इन दोनों के मध्य जो कुछ भी है, और जो हो चुका है और जो अभी होना है, ये दोनों किसमें ओतप्रोत हैं? पहला सवाल ‘स्पेस’ के बारे में है तो दूसरा ‘समय’ के बारे में है। स्पेस और टाइम के बाहर भी कुछ है क्या? नहीं है, इसलिए गार्गी ने बाण की तरह पैने इन दो सवालों के जरिए यह पूछ लिया कि सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है? याज्ञवल्क्य बोले, ‘एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी। यानी कोई अक्षर, अविनाशी तत्व है जिसके प्रशासन में, अनुशासन में सभी कुछ ओतप्रोत है। गार्गी ने पूछा कि ‘यह सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है? तो याज्ञवल्क्य का उत्तर था- अक्षरतत्व के! इस बार याज्ञवल्क्य ने अक्षरतत्व के बारे में विस्तार से समझाया। वे अन्तत: बोले, ‘गार्गी इस अक्षर तत्व को जाने बिना यज्ञ और तप सब बेकार है। ब्राह्मण वही है जो इस रहस्य को जानकर ही इस लोक से विदा होता है। इस बार गार्गी भी मुग्ध थी। अपने सवालों के जवाब से वह इतनी प्रभावित हुई कि महाराज जनक की राजसभा में उसने याज्ञवल्क्य को परम ब्रह्मज्ञानी मान लिया। इतने तीखे सवाल पूछने के बाद गार्गी ने जिस तरह याज्ञवल्क्य की प्रशंसा कर अपनी बात खत्म की तो उसने वाचक्नवी होने का एक और गुण भी दिखा दिया कि उसमें अहंकार का नामोंनिशान नहीं था। गार्गी ने याज्ञवल्क्य को प्रणाम किया और सभा से विदा ली।