यूपी में 60 फीसदी छात्राएं माहवारी के दौरान स्कूल जाना छोड़ देती हैं। वहीं, शौचालय और पानी की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होने के कारण 91 फीसदी लड़कियां कम से कम दो दिन स्कूल नहीं जा पाती हैं। यह जानकारी विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस से पूर्व रविवार को यूनिसेफ के विशेषज्ञों ने दी। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन दिनों उन्हें स्वस्थ माहौल दिया जाए तो वे बीमारी और संक्रमण से बच सकती हैं।
यूनिसेफ के विशेषज्ञों के अनुसार, 2012 में हुए एक सर्वे में सामने आया कि 86 फीसदी लड़कियां अपनी पहली माहवारी के लिए तैयार नहीं होती हैं क्योंकि उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं होता है। वहीं, जानकारी के अभाव में 64 फीसदी लड़कियों के मन में इसके प्रति डर होता है।
सर्वे के मुताबिक, 47 फीसदी माताओं का कहना है कि लड़कियों को इसके बारे में बताने की क्या जरूरत है, वह स्वयं समझ जाएंगी। विशेषज्ञों ने बताया कि वर्ष में 24 दिन लड़कियां सिर्फ इसलिए स्कूल नहीं जाती हैं कि माहवारी के दिनों में उन्हें पेट दर्द, दाग दिखने की समस्या, सेनेटरी नैपकिन, स्कूलों में शौचालय व पानी की उपलब्धता नहीं होती है।
यहां तक कि इन पांच दिनों में उनकी दिनचर्या पर फर्क पड़ता है। 44 फीसदी लड़कियां मानती है कि इन दिनों वह बहुत शर्मिंदगी और अपमानित महसूस करती हैं, जबकि 69 फीसदी लड़कियां आने-जाने में रोकटोक को सही मानती हैं।
माहवारी दिवस 28 मई को ही क्यों?
यूनिसेफ की कम्युनिकेशन एक्सपर्ट रिचा श्रीवास्तव ने बताया कि विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस पहली बार 28 मई 2013 में शुरू किया गया। 28 मई चुनने का कारण यह था कि प्रत्येक 28 दिन बाद पांच दिन माहवारी के होते हैं। तब से लगातार यह दिवस मानाया जा रहा है, जिससे समाज में इसके प्रति जागरूकता बढ़ सके।