‘काला सोना’ है ये कड़कनाथ, इसका एक अंडा सत्तर रुपए, और चिकन की कीमत सुनकर उड़ जायेंगे होश
‘सोने का अंडा देने वाली मुर्गी’ की कहावत तो सुनी होगी न आपने..? चलिए आज हम आपको इससे भी एक कदम आगे लेकर चलते हैं। दरअसल, आज हम बताने वाले हैं एक सोने के मुर्गे के बारे में। सुनकर अजीब लगेगा लेकिन जो हम अपनी इस स्टोरी में आपको बताने जा रहे हैं वो आपके लिए एकदम नया होगा।
जी हां, आपने आज से पहले शायद ही दुर्लभ प्रजाति के काला मुर्गा कड़कनाथ के बारे में सुना हो। इस मुर्गे के महंगे अंडे और चिकन से हर माह लाखों का कारोबार हो रहा है। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो एक हजार कड़कनाथ से कुछ ही दिनो में दस लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
अच्छी बात यह है कि आज हजारों किसान ये धंधा कर रहे हैं। इस बात का गवाह इतिहास रहा है कि रसगुल्ले पर अधिकार को लेकर कभी पश्चिम बंगाल और ओडिशा सरकारें में वर्षों विवाद चला था ठीक वैस ही अब कड़कनाथ मुर्गे का पेटेंट कराने के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारें आपस में लड़-झगड़ रही हैं, उसका एक-एक अंडा सत्तर-सत्तर रुपए तक में बिक रहा है।
वहीं अगर कड़कनाथ के चिकन की बात करें तो यह नौ सौ रुपए प्रति किलो बिक रहा है। एक कंपनी समेत कुछ लोग सालाना इससे लाखों की कमाई कर रहे हैं। दावेदारी की असली वजह ये अकूत कमाई ही है। कारोबारियों के लिए कड़कनाथ मुर्गा ‘काला सोना’ बन चुका है।
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश में भी पालक इससे अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं। कड़कनाथ मुर्गे का पोल्ट्री फॉर्म खोलने के लिए इंडिया मार्ट पर मौजूद सेलर्स से कांटेक्ट कर ये मुर्गे प्राप्त किए जा सकते हैं।
औषधीय गुणों के लिए मशहूर
कड़कनाथ अपने स्वाद और औषधीय गुणों के लिए मशहूर है। इसका खून, मांस और शरीर काले रंग का होता है। अन्य मुर्गों की तुलना में इसके मीट में प्रोटीन अधिक मात्रा में होता है और कोलेस्ट्रोल का स्तर कम होता है। इसमें 18 तरह के आवश्यक अमीनो एसिड भी पाए जाते हैं। इसके मीट में विटामिन बी-1, बी-2, बी-6, बी-12, सी और ई की मात्रा भी अधिक पाई जाती है। यह औषधि के रुप में नर्वस डिसऑर्डर को ठीक करने के काम में भी आता है। इसके रक्त से कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
जीआई टैग को लेकर राज्यों में लड़ाई
कड़कनाथ प्रजाति का जीआई टैग लेने के लिए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारें अपना-अपना दावा पेश कर रही हैं। जीआई टैग के लिए दोनों राज्य चेन्नई के भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय तक दस्तक दे चुके हैं। छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि कड़कनाथ का दंतेवाडा में संरक्षण और प्राकृतिक प्रजनन होता है। मध्य प्रदेश का दावा है कि कड़कनाथ मुर्गे की उत्पत्ति झाबुआ जिले में हुई है। इस बीच राजस्थान के महाराणा प्रताप कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डायरेक्ट्रेट ऑफ रिसर्च के जोनल डायरेक्टर एसके शर्मा बताते हैं कि उनका केंद्र मुर्गे की प्रजाति देसी मेवाड़ी का पेटेंट करवा चुका है।
‘कड़कनाथ’ की चर्चा दिल्ली तक
इन दिनों ‘कड़कनाथ’ की चर्चा दिल्ली तक है। पहले मध्यप्रदेश सरकार ने चेन्नई के भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय यानी जीआई टैग कार्यालय में ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग’ यानी भौगोलिक संकेतक के लिए दावा दिया था। उसके बाद चेन्नई जीआई टैग रजिस्ट्री कार्यालय ने इस आवेदन को स्वीकारते हुए नोटिस जारी किया कि कड़कनाथ के मीट पर मध्यप्रदेश सरकार के दावे पर किसी को आपत्ति तो नहीं?
इसके बाद एक प्राइवेट कंपनी की मदद से छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने भी आनन-फानन में ‘कड़कनाथ’ के मीट पर अपना दावा पेश कर दिया।
हाल ही में दंतेवाड़ा में कड़कनाथ मुर्गा और मुर्गी की शादी की भी धूम मची थी। शादी में शामिल होने के लिए दंतेवाड़ा के तोता, मैना, कबूतर, गौरैया और बतख ने कुछ इस अंदाजेबयां बोली में अपने बड़े भाई कालिया कड़कनाथ मुर्गा की शादी में आने का निमंत्रण दिया था- ‘आमचो दादा चो ब्याह में जलूल जलूल इबा’।
कड़कनाथ की शादी का किस्सा
लुदरू नाग के बेटे हीरानार निवासी कालिया की शादी छह किलोमीटर दूर सुकालू राम की बेटी सुंदरी कड़कनाथ मुर्गी से रचाई गई। पहले दिन मण्डपाछादन का कार्यक्रम हुआ और दूसरे दिन तेल और मातृकापूजन हुआ। फिर कालिया की बारात निकली। बारात में क्षेत्र के आदिवासी किसान, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं और कई गणमान्य लोग शामिल हुए। बारात जब सुंदरी के घर पहुंची तब कालिया और उसके संबंधियों का स्वागत किया गया और धूमधाम से शादी की रस्में पूरी हुईं। इस क्षेत्र में दो सौ महिला और पुरुष किसानों वाले लगभग 12 समूह कड़कनाथ कुक्कुट का पालन कर रहे हैं।
इस बीच एक अखबार ने दावा किया है कि मध्य प्रदेश ने इस मुर्गे की भौगोलिक पहचान से जुड़ा जीआई टैग हासिल कर लिया है। मध्यप्रदेश ने चिकन की इस प्रजाति के लिए पहला मुर्गा पालन केंद्र 1978 में स्थापित किया था। मध्य प्रदेश का दावा है कि झाबुआ के आदिवासी इस प्रजाति के मुर्गों का प्रजनन कराते हैं। झाबुआ के ग्रामीण विकास ट्रस्ट ने इन आदिवासी परिवारों की ओर से वर्ष 2012 में कड़कनाथ मुर्गे की प्रजाति के लिए जीआई टैग का आवेदन किया था।
मशहूर मुर्गे के लिए एप पर भी कर सकते हैं ऑर्डर
मध्य प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही हैचरीज में सालाना करीब ढ़ाई लाख कड़कनाथ मुर्गों का उत्पादन होता है। बिजनेस एवं पालन के लिए कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गे मध्य प्रदेश के दतिया, झाबुआ, बुरहानपुर, कृषि विज्ञान केंद्र ग्वालियर, कृषि विज्ञान केंद्र खंडवा से प्राप्त किए जा सकते हैं। इनके अंडों को अठारह दिनों तक सेटर मशीन में रखा जाता है। इसके बाद तीन दिन हैचर मशीन में रखते हैं। यहां अंडों से चूजे बाहर निकल आते हैं। कड़कनाथ मुर्गों के लिए हैचरी लगाई जा रही है। कड़कनाथ और देशी मुर्गा मुर्गियों के फार्म बनाए गए हैं। मध्यप्रदेश के इस मशहूर मुर्गे के लिए एप पर भी ऑर्डर दिया जा सकता है। यद्यपि लोगों का कहना है कि एप दमदार नहीं है।