सावधान! अपने एटीएम बंद कर रहे हैं 11 राष्ट्रीय बैंक
नई दिल्ली : रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के पीसीए (प्राॅम्प्ट करेक्टिव एक्शन) लिस्ट में आने वाले बैंकों ने पिछले एक साल में कई एटीएम बंद कर दिए हैं। ये भी तब हुआ है जब पिछले एक साल में ग्रामीण भारत सहित देश में कैश विद्ड्रॉअल 22 प्रतिशत बढ़ा है। इस लिस्ट में इलाहाबाद बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंडिय, केनरा बैंक, और यूको बैंक शामिल हैं। तो वहीं पंजाब बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी अपने एटीएम बंद किए हैं। एटीएम में यह कटौती आरबीआई के रेगुलेटरी ऑडर्स के बाद की जा रही है। सबसे ज्यादा इस बैंक ने बंद किए एटीएम बता दें कि सबसे ज्यादा एटीएम इंडियन ओवरसीज बैंक ने बंद किए हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक ने अपने 15 प्रतिशत एटीएम के शटर गिरा दिए हैं। पिछले साल अप्रैल में बैंक के एटीएम की संख्या 3,500 थी, जो अब केवल 3000 रह गई है। इसके बाद केनरा बैंक और यूको बैंक हैं, जिन्होंने अपने 7.6 प्रतिशत एटीएम बंद किए हैं। पीसीए लिस्ट से बाहर होने के बाद भी बंद किए एटीएम बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब नेशनल बैंक ऐसे दो बड़े बैंक हैं जो पीसीए से बाहर होने के बावजूद एटीएम में कटौती कर रहे हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा ने 2000 एटीएम बंद किए हैं, वहीं स्कैम में फंसे पीएनबी ने 1000 एटीएम बंद किए। प्राइवेट बैंकों के एटीएम की बढ़ी है संख्या एक ओर जहां सरकारी बैंकों के एटीएम में कटौती की जा रही है तो वहीं प्राइवेट और स्मॉल फाइनेंस बैंक (SFBs) ने इसकी कमी पूरी कर दी है। नए फीनो पेमेंट बैंक ने 2700 एटीएम मशीनें लगाई हैं, तो वहीं सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 500 नए एटीएम लगाए हैं। तो वहीं प्राइवेट बैंकों ने साल 2016 से 2017 के बीच 7,500 नए एटीएम इंस्टॉल किए। फिलहाल ये आंकड़ा उससे पिछले साल के मुकाबले कम है जब प्राइवेट बैंकों ने 15,714 एटीएम लगाए थे। एटीएम में आता है बहुत ज्यादा खर्चा एटीएम मशीनों को लेकर एसबीआई के मैनेजिंग डायरेक्टर का कहना है कि एटीएम का बिजनेस आकार्षक नहीं हैं। एक एटीएम की कीमत 2.5 लाख होती है और ऑपरेशनल कॉस्ट 4 से 5 लाख के बीच, इस पर 20 लाख रुपए और जोड़ लें जिस पर कोई रिटर्न नहीं मिलता है। अपने नेटवर्क पर नकदी और फ्री ट्रांजेक्शन का प्रबंधन करते हैं, और फिर हमारे ग्राहक अन्य बैंकों के एटीएम का उपयोग करते हैं। मार्च 2016 से दिसंबर 2017 के बीच सरकारी बैंकों के शेयर में भरी गिरावट देखने को मिली थी। इसी दौरान कमर्शियल लेंडिंग मार्केट में इन बैंकों के शेयर 32 लाख गिरे।