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गरीबों के लिए जीवनरक्षक बनी सस्ती दवाओं की नीति

नई दिल्ली : दवाइयों की दुकान चलाने वाले खावर खान यूं तो काफी कम बात करते हैं। लेकिन उस वक्त उनके चेहरे का संतोष देखते ही बनता है, जब वह गरीब मरीजों को बाजार के मुकाबले 20वें हिस्से तक कम दाम में दवाइयां मुहैया कराते हैं। खान बताते हैं, एक ऑटोरिक्शा चलाने वाले को हर महीने अपनी पत्नी की दवा के लिए 10,000 रुपये तक खर्च करने पड़ते थे, जिसमें उसकी लगभग पूरी सैलरी ही खर्च हो जाती थी। मैंने उसे 2,200 रुपये में ही दवाइयां दीं। अब उसके चेहरे के सुकून को देखा जा सकता है। ऑटोरिक्शा वाले को खान की फार्मेसी के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन अचानक वह दुकान पर पहुंच गए और उन्हें यह सस्ती दवाइयां मिलीं। जेनेरिक मेडिसिन्स की सरकार की ओर से सप्लाई के चलते देश के 5.5 करोड़ लोगों को फायदा हुआ है, जो गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। गार्जियन की रिपोर्ट में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के एक्सपर्ट्स की ओर से दी गई जानकारी के हवाले से बताया गया कि 5.5 करोड़ लोगों में से 3.8 करोड़ लोग दवाइयों पर हुए बहुत अधिक खर्च के चलते गरीबी रेखा से नीचे खिसक गए। खान का छोटा सा केमिस्ट स्टोर नई दिल्ली के जामिया नगर इलाके की घनी बस्ती में है। केंद्र सरकार की जन औषधि स्कीम के तहत खुले ऐसे तमाम स्टोर देश में गरीब तबके के लिए लाइफलाइन बने हुए हैं। इस स्कीम की शुरुआत 2008 में यूपीए सरकार ने की थी ताकि महंगी दवाएं गरीब तबके के लोगों को आसानी से मिल सकें। इसके बाद जब मोदी सरकार आई तो उसने इस स्कीम को और आगे बढ़ाया और स्टोर्स की संख्या देश भऱ में 3,000 तक करने का लक्ष्य लिया।

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