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कभी भूखे पेट गुजारी थी रातें, और बेचे गोलगप्पे, अब भारत का नाम रोशन करने को तैयार यह सुपरस्टार

कभी आपको अपना सपना जीने के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है और विपरीत परिस्थितियों से लड़कर उसे हासिल करना होता है। भारतीय अंडर-19 टीम के क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल की कहानी कुछ ऐसी ही है। तमाम कठिनाइयों से पार पाते हुए आखिरकार वह देश के लिए खेलने का अपना सपना जीने जा रहे हैं। जायसवाल का चयन आगामी श्रीलंका दौरे के लिए भारतीय अंडर-19 टीम में हुआ है और वह जल्द ही टीम से जुड़ेंगे।कभी भूखे पेट गुजारी थी रातें, और बेचे गोलगप्पे, अब भारत का नाम रोशन करने को तैयार यह सुपरस्टारकभी भूखे पेट गुजारी थी रातें, और बेचे गोलगप्पे, अब भारत का नाम रोशन करने को तैयार यह सुपरस्टार
वैसे, यशस्वी की भारतीय टीम में चुने जाने की कहानी बेहद भावनात्मक और प्रेरणादायी है, जिसे जानकर क्रिकेट फैंस उनकी ज्यादा इज्जत करेंगे। यशस्वी तीन साल तक मुंबई में आजाद मैदान ग्राउंड पर ग्राउंड्समैन के साथ मुस्लिम यूनाइटेड के टेंट में रहे। उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि आमतौर वह जिस डेयरी की दुकान पर सोते थे, वहां से उन्हें बाहर कर दिया गया था।

यशस्वी की उम्र तब महज 11 साल थी। हालांकि, उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की और सिर्फ एक ही सपना देखते हुए अपने खेल पर ध्यान देते रहे कि उन्हें टीम इंडिया के लिए खेलना है। इस बात को अब 6 साल होने को आए हैं। 17 वर्षीय मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज ने अपने खेल में गजब का सुधार किया है और वह श्रीलंका दौरे के लिए भारतीय अंडर-19 टीम से जुड़ने को तैयार हैं। मुंबई अंडर-19 कोच सतीश सामंत ने कहा कि जायसवाल का खेल असाधारण और अपरिहार्य फोकस है।
यशस्वी के पिता उत्तर प्रदेश के भदोही में एक छोटी सी दुकान संभालते हैं। यशस्वी अपने घर के छोटे बेटे हैं। वह क्रिकेट में अपना भविष्य बनाने के लिए मुंबई पहुंच गए। उनके पिता ने कोई आपत्ति नहीं उठाई क्योंकि परिवार को पालने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे।

यशस्वी के एक रिश्तेदार संतोष का घर मुंबई के वर्ली में जरूर है, लेकिन वह इतना बड़ा नहीं कि कोई अन्य व्यक्ति उसमें रह सके। संतोष मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के मैनेजर थे और उन्होंने वहां के मालिक से गुजारिश करके यशस्वी के रूकने की व्यवस्था करा दी। यशस्वी को वहां ग्राउंड्समैन के साथ टेंट में रहना पड़ता था।

यशस्वी ने बताया, ‘यह (टेंट में रहने) तब की बात है जब मुझे कलबादेवी में डेयरी छोड़ने के लिए कहा गया। पूरे दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थककर सोने चले जाता था। एक दिन उन्होंने मेरा सामना उठाकर बाहर फेंक दिया और कहा कि मैं कुछ नहीं करता हूं। मैं उनकी मदद नहीं करता, केवल सोने के लिए आता हूं। तीन सालों के लिए यह टेंट मेरा घर रहा।’

यशस्वी की एक और बड़ी बात यह है कि उन्होंने इतने दर्द सिर्फ इसलिए सहे ताकि उनके संघर्ष की कहानी कभी भदोही तक न पहुंचे, जिससे उनका क्रिकेट करियर खत्म हो जाए। कुछ मौकों पर यशस्वी के पिता पैसे भेजते थे, जो गुजारे के लिए पर्याप्त नहीं होते थे।

यशस्वी अपना पेट पालने के लिए आजाद मैदान में राम लीला के दौरान पानी-पूरी (गोलगप्पे) बेचा करते थे और फल बेचने में मदद करते थे। मगर ऐसे भी दिन थे, जब उन्हें खाली पेट सोना पड़ता था क्योंकि जिन ग्राउंड्समैन के साथ वह रहते थे, वह आपस में लड़ाई करते थे। वह लोग खाना नहीं पकाते थे तो यशस्वी को अपनी भूख मारकर सोना पड़ता था।
परिवार की याद में फफक-फफक कर रोते थे यशस्वी
यशस्वी कहते हैं, ‘राम लीला के दौरान मैं अच्छा कमा लेता था। मैं प्रार्थना करता था कि कोई टीम का साथी पानी-पूरी खाने वहां न आ जाए। कभी वो आ जाया करते थे तो मुझे उन्हें पानी-पूरे देने में बड़ा बुरा महसूस होता था।’ यशस्वी कुछ पैसे कमाने के लिए हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते रहे। कभी वह बड़े लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने जाते और रन बनाते तो सप्तान बिताने के लिए उनके पास 200-300 रुपए हो जाते थे।

यशस्वी ने याद किया, ‘मैंने हमेशा देखा कि मेरी उम्र के लड़के खाना लेकर आते थे या फिर उनके माता-पिता बड़े लंच बॉक्स लेकर आ रहे हैं। वहीं मेरे साथ मामला ऐसा था- खाना खुद बनाओ, खुद खाओ। नाश्ता नहीं था, तो किसी से गुजारिश करना होती थी कि वह अपने पैसों से मुझे नाश्ता करा दे। दिन और रात का खाना टेंट में होता था, जहां यशस्वी की जिम्मेदारी रोटी बनाने की थी। हर रात कैंडल नाइट डिनर होता था क्योंकि वहां बिजली नहीं होती थी।’

17 वर्षीय यशस्वी ने आगे कहा, ‘दिन तो सही थे क्योंकि वह क्रिकेट खेलने और काम करने में व्यस्त थे, लेकिन रातें लंबी हुआ करती थी। रातों को समय बिताना मुश्किल होता था। वह कहते हैं, मुझे अपने परिवार की बहुत याद आती थी और मैं खूब रोता था। यह सिर्फ ऐसा नहीं कि घर की याद सता रही है, लेकिन शौचालय जाने में भी दिक्कत थी क्योंकि नींद बिगड़ जाती थी। मैदान पर टॉयलेट नहीं था। मैं जिस बाथरूम में जाता था, वो फैशन स्ट्रीट के पास था, जो रात में बंद रहता था।’
यशस्वी की सफलता का श्रेय इन्हें जाता है

मुंबई अंडर-19 कोच सतीश सामंत यशस्वी के खेल से बहुत प्रभावित हैं कि और उन्हें भरोसा है कि एक दिन वह मुंबई के सबसे सफल क्रिकेटरों में से एक कहलाएगा। यशस्वी के बारे में बात करते सतीश ने कहा कि उनके अंडर-19 टीम में चयन का श्रेय जायसवाल के कोच ज्वाला सिंह को जाता है।

2011 में अपनी क्रिकेट एकेडमी की शुरुआत करने वाले ज्वाला सिंह भी क्रिकेटर बनने के लिए मुंबई आए थे, लेकिन वह सफल नहीं हुए। अब ज्वाला युवाओं का सपना पूरा करने में उनकी मदद कर रहे हैं। भदोही के यशस्वी को परेशानी में देख ज्वाला ने उसकी काफी मदद की।

बहरहाल, भारतीय अंडर-19 टीम में चयनित होने के बाद कितना दबाव महसूस कर रहे हैं पूछने पर यशस्वी ने कहा आप क्रिकेट में मानसिक दबाव की बात कर रहे हैं? मैंने अपनी जिंदगी में कई वर्षों तक इसका सामना किया है। इन घटनाओं ने मुझे मजबूत बनाया है। रन बनाना महत्वपूर्ण नहीं। मुझे पता है कि रन बनाउंगा और विकेट लूंगा। मेरे लिए जरूरी यह है कि अगले समय का खाना मिलेगा या नहीं।

बकौल यशस्वी, मुझे वह दिन याद है जब बेशर्म बन गया था। मैं अपने दोस्तों के साथ खाना खाने जाता था। पता था कि मेरे पास रुपए नहीं है। मैं अपने दोस्तों को सीधे बोलता था कि पैसा नहीं है, भूख है। जब कोई टीम का साथी उन्हें छेड़ता है या मजाक उड़ाते हैं तो वह गुस्सा नहीं होते। यशस्वी का कहना है कि उन्हें बुरा इसलिए नहीं लगता क्योंकि उनके साथियों को कभी टेंट में सोना नहीं पड़ा, न ही पानी-पूरी बेचना पड़ा और न हीं उन्हें खाली पेट सोना पड़ता है।

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