लखनऊ : सरकारी मान्यता प्राप्त मदरसों में होने वाली स्नातक स्तर की कामिल और परास्नातक (पीजी) स्तर की फाजिल पाठ्यक्रमों की पढ़ाई की कोई मान्यता ही नहीं है। इन मदरसों से कामिल और फाजिल की पढ़ाई करने वालों को दी जाने वाली सनद डिग्री नहीं है। इसे सर्टिफिकेट या डिप्लोमा ही कहा जा सकता है। नतीजतन, इन पाठ्यक्रमों की पढ़ाई करने वाले युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो रहा है।
इस बाबत मदरसा शिक्षकों के संगठन आल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया ने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को हाल ही में एक पत्र लिखा है। इस पत्र में मुख्यमंत्री से अनुरोध किया गया है कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त कामिल और फाजिल स्तर के सभी मदरसों को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अरबी-फारसी उर्दू विश्वविद्यालय से सम्बद्ध करवाया जाए।
एसोसिएशन ने सुझाव दिया है कि यह कार्रवाई डा. सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के अधिनियम 1956 की ही तरह अरबी-फारसी उर्दू विश्वविद्यालय के एक्ट में संशोधन करके की जा सकती है। एसोसिएशन के राष्ट्रीय महामंत्री वहीदुल्लाह खान सईदी ने मुख्यमंत्री को लिखे गए इस पत्र में कहा है कि प्रदेश के मदरसों में उ.प्र.मदरसा शिक्षा परिषद मुंशी, मौलवी, आलिम, कामिल और फाजिल के पाठ्यक्रम संचालित करता है। मगर इस परिषद को केवल इण्टर तक के पाठ्यक्रम की ही मान्यता देने का नियमानुसार अधिकार है। डिग्री स्तर यानि स्नातक और पीजी स्तर के पाठ्यक्रमों की सम्बद्धता और मान्यता विश्वविद्यालयों द्वारा ही दी जाती है। सईदी के अनुसार प्रदेश में प्राच्य भाषाओं के मामले में 1956 में संस्कृत विद्यालयों, महाविद्यालयों के लिए वाराणसी में संस्कृत कालेजों को अपग्रेड करके डा.सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी। इसी तर्ज पर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अरबी फारसी उर्दू विवि की स्थापना की गयी। मगर उच्च शिक्षा विभाग ने अरबी फारसी उर्दू विवि की स्थापना के असली मकसद को ही नजरअंदाज कर दिया।
उच्च शिक्षा विभाग ने डा.सम्पूर्णानंद संस्कृत विवि की ही तरह अरबी फारसी विवि के एक्ट में उ.प्र.मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त कामिल-फाजिल स्तर के मदरसों की सम्बद्धता का प्रावधान ही नहीं किया। इस बाबत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती अरबी फारसी उर्दू विवि के पहले कुलपति अनीस अंसारी ने 26 मार्च 2012 और 30 अप्रैल 2012 को शासन को पत्र लिखकर अरबी फारसी मदरसों को सम्बद्ध करने का अनुरोध किया था। इसी क्रम में उ.प्र.मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार की ओर से भी शासन को पत्र लिखे गए मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। यूपी के मदरसों से कामिल और फाजिल स्तर की पढ़ाई की दरअसल डिग्री है ही नहीं, इसे सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कह सकते हैं। इन पाठ्यक्रमों की डिग्री किसी विश्वविद्यालय से ही दी जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि उ.प्र.मदरसा शिक्षा परिषद यूजीसी के मानकों पर चले। जहां तक ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अरबी फारसी विवि से इन मदरसों की सम्बद्धता का सवाल है तो इसके लिए शासन स्तर से प्रक्रिया पूरी करने की जरूरत है।