इस द्वीप में दबा है दुनिया का सबसे बड़ा ख़जाना
ओक द्वीप पर दबे खजाने की कहानी और आर.एल. स्टीवेंसन के उपन्यास में एक विचित्र समानता है. वास्तव में देखा जाए तो इसमें शैतान बच्चों के अद्भुत अनुभव श्रृंखला के लिए एक अच्छी कहानी के लिए प्रयाप्त मसाला है. लेकिन स्टीवेंसन के उपन्यास की तरह इसका अंत सुखद नहीं है. ओक द्वीप पर दबे खजाने की खोज की कहानी सन 1975 में आरंभ होती है. 16 वर्षीय डैनियल मक गिनिस ने एक छोटे से द्वीप के दक्षिण पूर्वी तट महोन बे मैं अपनी नाव किनारे लगाई थी. डेनियल को द्वीप का वातावरण बहुत पसंद आया और वह उसे देखने अंदर चला आया. द्वीप का निरक्षण करते समय उसे ओक के कुछ गिरे हुए पेड़ दिखाई दिए. उसने देखा कि गिरे हुए पेड़ों के बीच एक पुराना विशाल वृक्ष सीधा खड़ा हुआ है. वह उससे आकर्षित हुआ. शीघ्र ही वह अपने दो दोस्तों के साथ वहां आया और तीनों ने उत्साह से वहां खुदाई शुरु कर दी. जैसे ही उन्होंने वहां की मिट्टी के कुछ परतें हटाई, तो वह देखकर दंग रह गए की वहां नीचे जाने के लिए कुछ सीढ़ियां थी.
उन्हें पक्की मिट्टी की दीवारों वाले गोल खंभे मिले, जिनपर कुदाल के निशान थे. उन्होंने खुदाई जारी रखी और 10 फुट गहरा खोदने के बाद उन्हें मिट्टी की दीवारों में ओक के तने के टुकड़े धसे हुए मिले. उन्होंने तने को बाहर निकाल लिया और 20 फूट खोदने के बाद उन्हें फिर मिट्टी का चबूतरा मिला. वे समझ गए कि यह कोई साधारण पेड़ ना था. वह क्षेत्र विशिष्ट था, जो किसी महत्वपूर्ण काम में आता था.
तीनों लड़के और लोगों से सहयोग लेने के लिए वापस लौटे. लोग बहुत डरे हुए थे, क्योंकि ओक द्वीप पर अजीब अजीब रोशनी टिमटिमाने की खबर मिलती थी जो और लोग उनका पता लगाने द्वीप पर गए थे वे गायब हो गए थे.
ऐसी कहानियां सुन कर ये तीन उत्साही युवक कुछ समय के लिए ओक के खजाने को भूल गए. लेकिन 9 वर्ष बाद उनकी तड़प ने फिर जोर मारा और उन तीनों ने जो अब युवा हो चुके थे, एक बार पूरी इमानदारी से इस काम को शुरु कर दिया. उन्होंने दोबारा खुदाई शुरु कर दी. कुछ फुट खोदने के बाद उन्हें एक-एक करके ओक के अनेक चबूतरे मिले जिनमें से कुछ खाली थे और कुछ नारियल के रेशों से ढ़के थे. लगभग 90 फुट नीचे उन्हें एक चपटा पत्थर मिला, जिस पर अनजानी भाषा में कुछ लिखा था और कुछ विचित्र निशान बने हुए थे. उस समय इस खोज पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था. एक सदी बाद यह पत्थर हेलीफैक्स में प्रदर्शन पर रखा गया. वहां एक प्रोफेसर इस अनजानी भाषा को पढ़ने में सफल हो गए. 10 फुट नीचे दो करोड़ पाउंड उन्होंने पढ़ा. दुर्भाग्य से 20वीं शताब्दी के आते आते पत्थर के लिखावट धुंधली पर गई और प्रोफेसर की बात को ही अंतिम मान लिया गया. धन के गड्ढे की खोज का काम और तेज कर दिया गया.
कुछ भी हो, उन तीन नवयुवकों द्वारा शुरु की गई खुदाई का काम 19वीं शताब्दी में अविराम चलता रहा. जब तक उनके पास धन रहा, वे इसी काम में लगे रहे. जब उनके पास धन की बहुत कमी हो गई तब उन्होंने हार मान ली और वापस लौट आए. कुछ समय तक गड्ढा यूं ही पड़ा रहा. 44 वर्ष के अंतराल के बाद कहीं जाकर सोना पाने की इच्छा रखने वाले अन्य उत्साही व्यक्तियों ने इसे खोजने का अनेक बार खतरा उठाया और इसमें पैसा भी झौंक दिया.
लेकिन हर बार गड्ढे में अचानक पानी भर जाता और उनमें उनके सभी प्रयत्न पर पानी फेर देता पानी और खुदाई करने वाले के बीच यह आंख मिचौली आज तक चली आ रही है. आज तक कोई खजाना हाथ नहीं लगा लेकिन जिस चीज़ ने उस समय के खुदाई करने वाले को हैरान कर दिया था. वह थी, गड्ढे में पानी भर कैसे जाता है. खजाना खोदने वाले स्मिथस कोव ने इस रह्स्य का उत्तर खोज निकाला. हर बार एक खास गहराई तक पहुंचने के बाद गड्ढे में पानी कैसे भर जाता है.
यह माना जाता है कि किसी ने 1975 से पहले 100 फुट के करीब खुदाई कर ली थी. 100 फुट खोदने के बाद उस व्यक्ति ने स्मिथस कोव और खंभे के बीच एक 500 फुट लंबी सुरंग बना दि. यहां उसने ऐसी कारीगिरी की कोई भी खोदने वाला एक खास गहराई से आगे ना बढ़ सके और खजाने की सही जगह को खोज ना सके. गड्ढे में पानी खुद ब खुद जाता था और जैसे ही कोई एक खास गहराई से आगे बढ़ता, पानी गड्ढे में भर जाता और चोर अलार्म जैसा काम करता.
जो भी हो, खोदने वाला अपनी राह में आने वाली रोड़े से घबराए नहीं. सन् 1931 में एडमिन हैमिल्टन 180 फुट गहरी खुदाई करने में सफल हुए. लेकिन सफलता अभी दूर थी. अनेक पराजयों के बाद सन् 1963 में एक त्रासद घटना घट गई. खंभो में काम करते समय सर्कल में खतरनाक खेल दिखाने वाला एक व्यक्ति पंप से अचानक निकली आग की लपटों में घिर गया और बुरी तरह झुलस कर मर गया. उनका बेटा और 2 अन्य व्यक्ति, बचाने के लिए अंदर कूदे थे, वे भी खत्म हो गए. खुदाई का काम कुछ समय के लिए रोक देना पड़ा. 4 वर्ष बाद एक अमेरिकी भूगर्भ शास्त्री रॉबर्ट गनफील्ड ने इस काम को फिर शुरु किया. उसने धन के गड्ढे के निकट 80 फुट चौड़ा और 130 फुट गहरा एक गड्ढा खोदा. लेकिन अफसोस कि उसके हाथ भी कुछ नहीं लगा.
सन् 1978 में ट्राइटन अलाएंस कंपनी ने पानी से भरे गड्ढे में जलपोती टेलीविजन कैमरा नीचे उतारा. कैमरे से तीन बक्से और कटा हुआ हाथ नजर आया. गोताखोरों को उसमें 235 फुट नीचे की गहराई तक उतारा गया लेकिन कैमरे से दिखाई दी चीजों की पुष्टि नहीं की जा सकी. वहां कोई बक्सा या हाथ नहीं मिला.
18 वीं शताब्दी से लेकर 20 शताब्दी के अंत तक मनी पिट का रहस्य रहस्य ही बना हुआ है. आज की स्थिति में लगता है कि शायद इस रहस्य पर से अंत तक पर्दा नहीं उठेगा. सन 1795 से पहले जिस व्यक्ति ने इसे खोदा था उसने सोचा होगा कि विज्ञान और तकनीक के विकास के साथ इस रहस्य का पर्दाफाश होगा. लेकिन यह निश्चय ही उस की भूल थी. आज तक के सभी प्रयास बेकार साबित हुए है. आज भी मनी पीट का रहस्य ज्यों का त्यों बना हुआ है.