नई दिल्ली : नागपंचमी का त्योहार श्रावण कृष्ण पंचमी और श्रावण शुक्ल पंचमी इन दोनों तिथियों में मनाया जाता है। बिहार, बंगाल, उड़ीसा, राजस्थान में लोग कृष्ण पक्ष में यह त्योहार मनाते हैं जो इस इस साल 2 अगस्त को है। जबकि देश के कई भागों में 15 अगस्त को नागपंचमी मनाई जाएगी। इस अवसर पर नागों को दूध पिलाने की परंपरा न जानें कितने ही वर्षों से चली आ रही है। भविष्य पुराण के पंचमी कल्प में नागपूजा और नागों को दूध पिलाने का जिक्र किया गया है। मान्यता है कि सावन के महीने में नाग देवता की पूजा करने और नाग पंचमी के दिन दूध पिलाने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और नागदंश का भय नहीं रहता है। यह भी मान्यता है कि नागों की पूजा से अन्न-धन के भंडार भी भरे रहते हैं। मगर विज्ञान की मानें तो सांप को दूध पिलाना उसके लिए नुकसानदेय है।
आइए जानते हैं कि इस परंपरा के पीछे क्या है धार्मिक महत्व और क्या हैं वैज्ञानिक तर्क-नागपंचमी के दिन सांप को दूध पिलाने और धान का लावा अर्पित करने की परंपरा है। इस दिन सपेरे टोलियों में घर-घर घूमकर नागों के दर्शन करवाते हैं और भिक्षा मांगते हैं। श्रद्धालु नागों को दूध पिलाने के साथ सपेरे को भी दान देते हैं। विज्ञान की मानें तो सांप रेप्टाइल जीव हैं न कि स्तनधारी। रेप्टाइल जीव दूध को हजम नहीं कर सकते और ऐसे में कई बार उनकी मृत्यु तक हो जाती है। लेकिन सांपों को दूध पिलाने के पीछे सबसे कारण यह है कि दूध जहां भी रहता है वहां विषाणु या हानिकारक कीटाणु वहां से भाग जाते हैं या मर जाते हैं। यही कारण है कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परम्परा है जिससे वातावरण और मंदिर विषाणुविहीन और स्वच्छ रहे। वहीं सांप जब दूध पीता है तो उसके विष ग्रंथि ढीली हो जाती हैं और विष का प्रकोप कम हो जाता है। चूंकि आजकल सांपों के विष से अनेक दवाइयां बनाई जाती हैं इसलिये सांपों कोे दूध पिलाने से उसमें एक नई तरह का विष निर्माण होता है, जो कई रोगों के लिए बेहद लाभप्रद है।