अजब-गजबफीचर्ड

संसार में एक जीव ऐसा है, जो अजर, अमर और अविनाशी है

जिस तरह सैलामाइंडर अपने किसी भी गायब हुए अंग को नये अंग के रूप में विकसित कर सकता है, उसी तरह सुनने और देखने में भी आया है कि छिपकली की पूंछ कट जाये तो उसकी पूंछ फिर से उग आती है। उसी तरह समुद्र में रहने वाली जेलीफिश अपने जीवन को दोबारा शुरू करने की क्षमता रखते हैं।


नई दिल्ली : जेलीफिश के पास एक अद्भुत और अनोखी क्षमता है, वो अपने जीवन फिर से शुरू कर सकती हैं। भूमध्यसागर में रहने वाली जेलीफिश या ‘टुर्रीटोप्सिस डोहर्नी’ के पास एक ऐसी अद्भुत क्षमता है कि ये अपने ही सेल्स की पहचान को बदल कर दोबारा अपने जीवन युवा अवस्था में पहुंच सकती है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये किसी भी उम्र में अपना आकार-प्रकार बदलकर दोबारा वृद्धावस्था से बाल्यावस्था में आ सकती हैं।
गौरतलब है कि काल्पनिक विज्ञान पर आधारित ‘डॉक्टर हू’ नाम की टीवी सीरीज़ में कार्यक्रम का हीरो अपने आप को पूरी तरह एक नए रूप में बदल लेता है, एकदम ‘टुर्रीटोप्सिस डोहर्नी’ की तरह। टीवी सीरियल में डॉक्टर ऐसा तब करता था जब वह बुरी तरह घायल होता था या फिर मरने के क़रीब होता था। जेलीफिश के लिए खुद को कभी भी युवा बनाने की ये क्षमता ज़िंदा रहने का एक अद्भुत सिस्टम है जो वृद्ध हो जाने, बीमार पड़ने या फिर किसी ख़तरे से सामना हो जाने पर काम आती है। एक बार जब ये प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो जेलीफिश की ‘बेल’ और ‘टेंटिकल्स’ बदलकर फिर से ‘पॉलिप’ बन जाते हैं- यानी एक ऐसे पौधे की शक्ल का आकार जो पानी के नीचे खुद को सतह से जोड़कर रखता है। ऐसा ये एक प्रक्रिया के अंर्तगत करती है जो ‘सेलुलर ट्रांसडिफरेंसिएशन’ कहलाती है, जिसमें सेल सीधे तौर पर एक प्रकार से दूसरे प्रकार में बदलकर एक नए शरीर में बदल जाते हैं और ये प्रक्रिया बार-बार की जा सकती है। शोधकर्ताओं की एक टीम ने हाल ही में जेलीफिश के डीएनए के एक छोटे से हिस्से का सीक्वेंस किया।

इटली के सेलेंटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टेफानो पिराइनो इस काम में शामिल थे और अब वो ‘फीनिक्स’ नाम की एक बहुत बड़ी परियोजना का संयोजन कर रहे हैं जिससे ‘टुर्रीटोप्सिस डोहर्नी’ के सेल्स का आपसी संवाद आसानी से समझा जा सकेगा, उनका कहना है कि ‘लाइफ रिवर्सल’ का पूरा सच तभी जाना-समझा जा सकता है जब इस जीव का जिनोम पूरी तरह सुलझाया जा सके। प्रोफेसर पिराइनो ने लैब में जेलीफिश की मौत को भी देखा है जो कि दुखद है, यानी कि यह पूरी तरह अमर नहीं है। लेकिन फिर भी इसका खुद को किसी भी प्रकार में ढाल लेना अद्भुत है, साथ ही दो और जेलीफिश का भी पता चला है, जिनमें ये सब है और इसमें ‘ऑरेलिया एसपी 1’ भी शामिल हैं, जो पूर्वी चीनी समुद्र की रहने वाली है।अगर इंसान को लेकर इस प्रक्रिया को देखें तो क्या हम पुनर्जन्म ले सकते हैं? कुछ हद तक हम ये कर पा रहे हैं जैसे जलने, चोट के निशान और धूप में जली त्वचा का खुद को ठीक कर लेना इसी का संकेत हैं। हम अपने हाथों- पैरों की उंगलियों के ऊपरी सिरे दोबारा पैदा कर सकते हैं। पहले ये एक लोकप्रिय विचार होता था कि हम हर सात या दस सालों में एक नया इंसान बन जाते हैं, क्योंकि इस काल में हमारे शरीर के सारे सेल्स मर जाते हैं और नए सेल्स उनकी जगह ले लेते हैं। हालांकि ये एक मिथक ही था लेकिन यह बात सही है कि हमारे सेल्स लगातार मर भी रहे हैं और बदले भी जा रहे हैं। लेकिन जैसे- जैसे वक्त बदला, डॉक्टर पूरी तरह बदलाव की प्रक्रिया में तरक्की करते गए, हालांकि इस तरह का पुनर्जन्म बाकी जानवरों में भी होता है लेकिन यह आमतौर पर शरीर के किसी एक हिस्से तक ही सीमित होता है।

सालामैंडर : लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की डॉक्टर मैक्सीमिना युन का कहना है कि सालामैंडर पुनर्जन्म के चैंपियन हैं। कुछ तो अपने दिल, जबड़े, पूरे हाथ-पैर और पूंछ, जिसमें रीढ़ की हड्डी शामिल है, को भी पुनर्जीवित कर लेते हैं। वो ख़ास प्रक्रिया जिससे सालामैंडर ऐसा कर पाते हैं वो अभी मालूम नहीं है, लेकिन डॉक्टर युन प्रयोग कर रही हैं ‘ब्लास्टिमस’ के साथ, यानी सालामैंडर के कटे हिस्से में दोबारा शुरू होने पर उस जगह बनने वाला सेल्स का एक गुच्छा।उन्होंने और उनके सहयोगियों ने हाल ही में कुछ प्रमाण ढूंढे हैं कि सालामैंडर कुछ ख़ास तरह के प्रोटीन P53 को रोकते हैं, जिसकी वजह से सेल्स को नया रूप मिल पाता है। उदहारण के लिए इससे सेल्स को पैर के पुनर्जन्म के लिए जरूरी मांसपेशियां, कोशिकाएं और हडिड्यों के टिशू बनाने में सहायता मिलती है। उम्मीद है कि इंसान भी भविष्य में अपने फ़ायदे के लिए इस प्रक्रिया को हासिल कर पाएगा। डॉक्टर युन की टीम इसमें इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षी तंत्र) की भूमिका की भी पड़ताल कर रही है, उनके मुताबिक पहले पुनर्जन्म में अवरोध के लिए इम्यून सिस्टम सेल्स ‘मैक्रोफेगस’ को ज़िम्मेदार माना जाता था, अब पता चला है कि वे अब पुनर्जन्म के लिए सबसे ज़रूरी है। उनका कहना है कि हो सकता है यही मुख्य भूमिका में हो।ये ध्यान देने की बात है कि अलग-अलग तरह के सालामैंडर के पास पुनर्जन्म के अलग- अलग तरीके हैं। उदाहरण के लिए एक्सोलोट्ल्स, स्टेम सेल बनाने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं जो किसी भी तरह के सेल में तब्दील हो सकते हैं जहां पुनर्जन्म की ज़रूरत है।

इसके आलावा दो साल पहले इक्वाडोर के वर्षा वनों में शोधकर्ताओं ने ये महसूस किया कि मेंढकों की कुछ प्रजातियां, ‘प्रिस्टिमेंटिस मुटाबिलिस’ क्षणों में अपनी खुरदरी और कांटोंभरी त्वचा को बेहद मुलायम सतह में बदल सकते हैं। ये मेंढक करीब दस सालों से विज्ञान की नजरों में है, लेकिन ये आकार बदलने की क्षमता- भले ही उसे वातारण में घुलने- मिलने में मदद करती है, लेकिन पहले इसका पता किसी को नहीं था। नॉटिंघम ट्रेंट युनिवर्सिटी के डॉक्टर लुइस जेंटल का कहना है कि ये इतनी जल्दी होता है शायद इसलिए ही पहले इस पर किसी का ध्यान नहीं गया, ये सभी को मूर्ख बना रहा था। बाकी कई जीव इस तरह के छलावे के लिए जाने जाते हैं, इसमें ऑक्टोपस की भी कई प्रजातियां शामिल हैं जो अपने रंग और बनावट को आसपास की सतह के अनुसार ढाल लेते हैं। ये पता नहीं लग पाया है कि ये प्रक्रिया शुरु कैसे होती है। वहीँ कुछ जीव ‘मेटामॉर्फोसिस’ के जरिए एक नया आकार ले लेते हैं, इसका सबसे सही उदाहरण है ऐसे बहुत सारे ‘कैटरपिलर्स’ जो ‘क्रिसालिस’ बनाते हैं और बाद में तितली बन जाते हैं, लेकिन इसमें कुछ आश्चर्यजनक उदाहरण भी हैं।

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