नई दिल्ली : कश्मीर की रहने वाली हूं, मजाहिद से शादी के बाद लोनावला आई। सब कुछ सुंदर था। मनचाहा पति और गृहस्थी का सुख, हालांकि ससुराल वाले मुझे पसंद नहीं करते थे। कुछ ही वक्त बाद हमने अपनी गृहस्ती अलग कर ली। पति कमाने जाते और मैं घर सजाती, धीरे-धीरे उनका काम चल निकला लेकिन वे घर से दूर जा रहे थे। इस बीच हमारे तीन बच्चे भी आ गए, मैं साथ रहना चाहती तो घुड़कियां मिलतीं। सब कुछ तो दे रहा हूं, बढ़िया घर, गाड़ी, नौकर-चाकर, तुम मेरे पीछे मत पड़ो। मैंने अकेले ही बच्चों का स्कूल तय किया, राशन-तेल खरीदा, बीमारी में उन्हें लेकर अस्पताल गई, अकेले ही उनके सिरहाने रात जागी। वक्त के साथ मसरूफियत बढ़ती चली गई, कई बार पति लौटकर भी कहीं और खोए दिखते, मुझे शक होने लगा लेकिन फिर भी मैं चुप रही। लगता कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा, वो लौटकर आ जाएंगे। आखिरकार हमारा प्रेम-विवाह था, मैं घर-बच्चों में लगी रही। उनका घर लौटना अब नहीं के बराबर होता था, तभी मुझे उसकी दूसरी शादी का पता चला। कुछ दिनों में सबूत भी मिल गए।
मैंने नींद की ढेर सारी गोलियां एक साथ खा लीं, तब बहनें घर आई हुई थीं, उनके कहने पर उसने इलाज करवाया लेकिन घर पर ही डॉक्टर बुलाकर।होश में आने के लंबे वक्त बाद भी लगता रहा कि ये मेरी जिंदगी नहीं, मैं किसी और का हिस्सा जी रही हूं। मैं उसी घर में रहती, वो कई बार लौटता भी, हम मिलते भी लेकिन न वो मुझसे कुछ कहता और न मैं ही कुछ पूछ पाती। अब इंतजार के कोई मायने नहीं थे। आखिरकार पिछले अगस्त मैंने अलग होने का फैसला लिया। हमारे खानदान में तलाक सिर्फ खबरों में पढ़े-सुने जाने की बात रही, मेरे घरवालों ने खूब विरोध किया। उन्हें लगता कि 16 सालों का धोखा और 16 सालों का इंतजार नाकाफी है, उन्हें लगता कि घर-गाड़ी-पैसे मिलें तो रिश्ते की जरूरत खत्म हो जाती है। मैंने कोर्ट में तलाक की अर्जी डाल दी, इस पूरे दौर में मैं अकेली रही। अलग घर में रहने के बाद भी बीती से कहां अलग हो पाते हैं! हर कोई मिसेज शेख कहता, नुसरत कहीं खो चुकी थी, उसकी तलाश आसान भी नहीं थी।
मैंने ग्यारहवीं तक पढ़ाई की थी, कहीं नौकरी मिल नहीं सकती थी, सालों से घर पर रहते-रहते लोगों से घुलने-मिलने का आत्मविश्वास भी खो चुका था। इस दौरान बेटी ने बहुत सपोर्ट किया, मैं जब भी उदास या चुप होती तो वो मुझे आगे बढ़ने को कहती, उसकी भी पापा से बेहद नाराजगी थी। ऐसे ही एक रोज इंडिया फैशन फेस्टिवल के तहत मिसेज इंडिया इंटरनेशनल का विज्ञापन दिखा। एज-लिमिट थी- 50 साल, मैं 36 साल की थी। क्वालिफिकेशन भी कुछ अलग नहीं चाहिए थी, खूबसूरत हूं, ये जानती थी और अब जरूरतमंद भी थी। फॉर्म भर तो दिया लेकिन कोई उम्मीद नहीं थी। ऑडिशन के लिए बुलावा आया तब जाकर मैंने तैयारी शुरू की। यूट्यूब पर वीडियो देखकर चलना सीखा। मेकअप के तरीके सीखे और आजमाने शुरू किए, बीच-बीच में डिप्रेशन का दौर भी आता, तब सब छोड़-छाड़ देती। दिनों तक बाल नहीं बनाती, मुसे हुए कपड़े पहने रहती। न किसी से बात, न चीत, लेकिन फिर बच्चों के चेहरे और अपना नाम वापस पाने की ख्वाहिश मुझे वापस लौटा लाती। डांस और योगा करने लगी ताकि मन खुश रहे। ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने के लिए कपड़ों और दूसरी चीजों की खरीददारी करनी थी। मैंने अपने सारे गहने बेच डाले। गहने बेचना असल में तलाक के अर्जीनामे से भी बड़ी कोशिश थी, उस नाम से और उसकी यादों से अलग होने की, ये वही गहने थे जो हमने मिलकर बड़े चाव से खरीदे थे, ये वही गहने थे जो कभी मुझे जान से अजीज हुआ करते, उनके जाने के साथ ही मेरा नया सफर शुरू हुआ। पहले शूट के लिए गोवा पहुंची तो डरी हुई मिसेज शेख की जगह एक नई नुसरत ले चुकी थी।
मैं अंग्रेजीदां लोगों को देखकर सिकुड़कर कोने में नहीं बैठती थी, खुलकर हंसती-बोलती। फाइनल राउंड हाई हील्स में चलती हुई नुसरत गिर पड़ती है, मंच पर थिरकती रौशनी एकदम से थम जाती है, संगीत और शोर दोनों ही ठिठक जाता है। सब देखते हैं- उठकर चलती हुई नुसरत दोबारा और फिर तीसरी बार भी गिर पड़ी। फाइनल तक पहुंच गई लेकिन समझ गई कि अब जीत नामुमकिन है। सवाल-जवाब शुरू हुआ, शायद पूछने वालों के लिए औपचारिकता ही रही हो लेकिन मेरी लाइनें थी- गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में… वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले…। पहली बार मैंने अपनी बात कही, पहली बार बताया कि कैसे सालों तक घर पर बच्चों के पीछे भागने वाली औरत आज ऊंची एड़ियों की सैंडल पहने स्टेज पर चल चली, गिरी और गिरकर फिर उठी, फिर चली। ताज पहनकर घर लौटी ये औरत अब सिर्फ नुसरत है और तीन खुशनुमा बच्चों की मां है, पति के प्यार ने जिंदगी को कैद बना दिया, खुद से प्यार ने उस कैद से आजादी दिलाई।