मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं, इसका फैसला आज करेगा सुप्रीम कोर्ट
मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं, इस बात का फैसला गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट करेगा. इस केस में दोपहर 2 बजे फैसला सुनाया जा सकता है. अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इसी साल 20 जुलाई को इसी केस में अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
बता दें कि इस केस में इस्माइल फारूकी फैसले के उस हिस्से पर मुस्लिम पक्ष की ओर से नए सिरे से विचार करने की मांग की गई है जिसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है.
1994 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस्माइल फारूकी केस में राम जन्मभूमि मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें. बेंच ने ये भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है.
दरअसल, अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक के मुख्य मामले यानी टाइटल सूट की सुनवाई से पहले कोर्ट इस मामले पर फैसला देगा कि क्या नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था.
क्या कहते हैं पक्षकार?
बाबरी मस्जिद केस में मुद्दई इकबाल अंसारी का कहना है कि 27 तारीख को कोर्ट जो भी फैसला करे हमें मंजूर है. लेकिन मस्जिद में मूर्ति रखी गई, मस्जिद तोड़ी गई, फैसला कोर्ट को सबूतों के बुनियाद पर करना है.
उन्होंने कहा कि मस्जिद इस्लाम का एक अंग है. मस्जिद तोड़ दी गई, तब भी नमाज जमीन पर बैठकर की जाएगी. वह जगह मस्जिद कहलाएगी. मस्जिद की जमीन ना किसी को दी जा सकती है और ना बेची जा सकती है. वह हमेशा मस्जिद ही कही जाएगी. हम कोर्ट पर विश्वास करते हैं. कानून पर विश्वास करते हैं. कोर्ट फैसला करे. इधर करे या उधर करे, क्योंकि इसके पहले इस पर इतनी राजनीति की जा चुकी है.
व्यभिचार से जुड़े मामले में भी आ सकता है फैसला
आधार कार्ड और एससी/एसटी समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण से जुड़े मामले में फैसला सुनाने के बाद गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट के लिहाज से बड़ा दिन है. गुरुवार को एक अन्य केस में सुप्रीम कोर्ट व्यभिचार से जुड़े मामले में भी फैसला सुनाएगा.